चुनाव का बाजार
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जितना साल 2014 के चुनावों में खर्च हो रहा है इतनी बड़ी राशि शायद ही पहले खर्च हुई होगी. पार्टी से लेकर उम्मीदवार पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं. प्रचार के नायाब तरीके निकाले जा रहे हैं.
चुनावी 'संदेश'
चुनावी मौसम में दुकानदार राजनीतिक पार्टियों के प्रति लगाव रखने वाले ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह तरह के उपाय निकाल रहे हैं. कोलकाता में बिकती चुनावी मिठाई. यह संदेश हैं जिस पर विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनावी चिह्न बने हैं.
कुछ मीठा हो जाए
चुनाव के मौके पर कोलकाता के एक हलवाई ने भारत की चार प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के चुनाव चिह्नों वाली मिठाई बनाई है. मिठाई मित्रों और रिश्तेदारों के अलावा चुनावी रैलियों में भी बांटी जा रही हैं.
एक छत के नीचे कांग्रेस-बीजेपी
चुनावी सामग्री सप्लाई करने वाले दुकानदारों के पास इतने ऑर्डर है कि उन्हें सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है. चुनावी टोपी, छतरी, टी शर्ट और बिल्ले की खूब मांग है. महंगाई के कारण इनके दाम भी तेजी से बढ़े हैं.
चीन से मदद
मांग बढ़ने के साथ ही स्थानीय थोक विक्रेताओं ने चीन में उत्पादकों को ठेका दे दिया है. चीनी माल सस्ता भी होता है और ज्यादा आकर्षक भी.
काले धन का इस्तेमाल
हाल ही में जारी एक शोध से पता चला है कि चुनाव में 30,000 करोड़ रुपये के अनुमानित खर्च का एक तिहाई कालाधन हो सकता है. इस साल के चुनाव में खर्च होने वाली अनुमानित 30 हजार करोड़ रुपये की राशि अब तक का रिकॉर्ड चुनावी खर्चा है.
फेसबुक से ट्विटर तक
पिछले आम चुनावों के मुकाबले इस बार चुनाव में सोशल मीडिया का भी इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है. राजनीतिक दल और नेता फेसबुक और ट्विटर अकाउंट की मदद से वोटरों में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं.