चिंपाजियों के प्रेम में जेन
२४ सितम्बर २०१०शायद ही दुनियाभर में जेन गूडॉल जैसा कोई वैज्ञानिक होगा जिसने 50 साल से भी ज़्यादा किसी एक मुद्दे पर काम किया होगा. जो जानवरों की भाषा समझता हो. यही जेन गूडॉल की खासियत है वो चिंपांजियों की भाषा समझती हैं. अब जेन गूडॉल पर जर्मनी में एक फिल्म रीलीज़ हुई है, जिसका शीर्षक है जेन्स जर्नी यानी जेन की यात्रा.
गहन शोध
क्या चिंपाजी भी बुद्धिमान हैं. क्या जीन्स के अलावा मनुष्य और चिंपांजियों के बीच भावनाओं, सामाजिक और परिवारिक व्यवहार में भी सामानताएं हैं. जेन गूडॉल के पहले शायद ही किसी ने ऐसा सोचा था. 50 साल से जेन अफ्रीकी देश तांज़ानिया में चिंपांजियों के साथ रह रहीं हैं. "उन पर गौर से नज़र रखते हुए, एक ऐसा दिन आया कि मैंने उनका विश्वास जीता. कैसे. एक चिंपाजी पता नहीं क्यों दूसरों की तरह मुझसे नहीं डरता था. मैने उसका नाम रखा. डेविड ग्रेबीर्ड यानी डेविड ग्रे डाढ़ी वाला. और उसका विश्वास जीतने के साथ ऐसा हुआ कि शायद दूसरों के मन में भी वह विचार आया, कि हां, यह महिला उतनी डरावनी नहीं है जितनी वह लगती है."
नया तरीका
अपने शोध में जेन ने कुछ ऐसा किया जिसकी वजह से उनको काफी आलोचना झेलनी पढी. उन्होने चिंपांजियों को नाम दिया. वैज्ञानिक इसे बहुत बुरा मानते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि वैज्ञानिक इसके साथ भावुक हो जाता है और रिश्ते जोडने लगता है जिसकी वजह से उसकी पारदर्शिता खत्म हो जाती है. जेन ने ऐसा कभी नहीं माना. 76 साल की जेन गूडॉल की वजह से आज यह पता चला है कि चिंपांजी भी मांस खाते हैं और वे अपने काम में औजारों का इस्तेमाल करते हैं. वे एक दूसरे को झप्पी देते हैं, चुंबन देते हैं, लेकिन बहुत ही बर्बर भी हो सकते हैं और दूसरे चिंपाजी को मार सकते हैं किसी एक भावना की वजह से. चिंपांजियों के बीच रहने के कारण जेन का कहती हैं कि उसने सीखा कि मनुष्य भी आखिरकार जानवर ही है. खासकर यह देखते हुए कि मनुष्य किस तरह से पृथ्वी को नष्ट कर रहे है. जेन गुडॉल बहुत ही चिंतित हैं. "जब मैं मेरे तीन पोते पोतियों को देखतीं हूं या मेरी बहन के पोते पोतियों को देखतीं हूं, तब मै सोचती हूं कि जब मै उनकी उम्र की थी, तब दुनिया कैसी थी. तबसे अब तक हमने कैसे पृथ्वी को नुकसान पहुंचाया. समझ ही नहीं आता है कि मै क्या महसूस करूं, गुस्सा, हताशा, दुख. कहते हैं कि हमे पृथ्वी अपने बच्चों से किराए में मिली है, लेकिन हम अपने ही बच्चों को कुछ बदले में तो नहीं दे रहे हैं. इसलिए मै यही कहूंगी की हमने पृथ्वी को उनसे छीना है, चोरी की है, हमने." जेन का मानना है कि मनुष्य को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए, इसलिए वे शाकाहारी भी हैं.
बचपन से पसंद
जब जेन बच्ची थी, वे अपने परिवार के साथ लंदन में रहतीं थी. उन्हें आज भी वह दिन याद है जब उनके पिता ने उन्हे एक खिलौना दिया, एक छोटासा चिंपांजी. जेन ने उसका नाम जुबली रखा और शायद उसी वक्त उनको यह महसूस हुआ कि वह चिंपांजियों के बारे में और जानना चाहतीं हैं और शायद उनको अपनी किस्मत पाने के लिए बहुत दूर जाना होगा. फिर भी जेन ने सबसे पहले सेक्रेटरी का काम सीखा. 1957 में संयोग से वे केनिया पहुंची, जहां उनकी मुलाकात लुईस लीकी से हुई जो अलग नस्लों के बंदरों के व्यवहार पर शोध कर रहे थें. उन्होने देखा कि जेन के अंदर कुछ ऐसे नए सोच विचार है जो शोध के लिए सिर्फ अनोखे ही नहीं, बहुत ही फायदेमंद भी हो सकते हैं.
बुद्धिमान जेन
लुईस लीकी की मदद से जेन ने फिर ब्रिटेन के मशहूर केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पीएचडी की, जबकी उन्होंने बीएससी या ऐमएससी ही नहीं किया था. जेन दुनिया में सिर्फ आठवीं ऐसी व्यक्ति हैं जिनको अपने अच्छे काम के कारण पीएचडी करने की इजाजत दी गई. अमेरिका की अभिनेत्री ऐंजेलीना जोली संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत की तरह ही जेन गूडॉल भी हैं. वे बतातीं हैं. "वह मेरे लिए हमेशा प्रेरणा की स्रोत थीं. अकसर ऐसा होता है ना, कि जब आप किसी से मिलते हैं तब आपको इस बात का डर रहता है कि क्या वह व्यक्ति ऐसा ही है जैसा कि आपने कलपना की थी, या अलग है. लेकिन जेन गूडॉल तो मेरी कल्पनाओं से भी बड़ी निकली. एक दिन हम दोनों का किसी छत पर इंटरव्यू तय किया गया था. मुझे छत पर जाकर बहुत ठंड लग रही थी. लेकिन जेन जॉगिंग कर रही थी. उनकी सोच मेरे विपरीत यह थी कि कितना अच्छा मौका है ताजी हवा महसूस करने का और अपनी सहत के लिए कुछ करने का. इनकी हर बात को लेकर सकरात्मक सोच और उनकी बुद्धि मेरे लिए बड़ी सीख थी."
जेन कहतीं है कि साल के 365 दिनों में से 300 दिन वह बाहर होती है. लंबी कद की, दुबली पतली, सफेद बालों वाली जेन, अपनी कोमल आवाज़ और विनम्रता के साथ सब को मुग्ध कर सकतीं हैं. वे कहतीं है कि पृथ्वी को बचाने के लिए एक ही उम्मीद बची है कि युवाओं यानी अगली पीढी को पर्यावरण संरक्षण में शामिल किया जाए.
रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न
संपादनः आभा एम