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घाना के चुनावों में ध्यान खींचती महिला उम्मीदवार

४ दिसम्बर २०२०

घाना में सात दिसम्बर को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में मुकाबला दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच है. आर्थिक मुश्किलों से जुड़े वही पुराने मुद्दे हैं. पहली बार उपराष्ट्रपति पद पर एक प्रमुख पार्टी की महिला उम्मीदवार है.

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Ghana | Plakat von Nana Akufo-Addo
तस्वीर: Katrin Gänsler

घाना, पश्चिम अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. पूरी दुनिया में सबसे अधिक महिला-स्वामित्व कारोबार वाले देशों में उसका भी नाम आता है. इसके बावजूद संसद की सिर्फ 13 प्रतिशत सीटें महिलाओं के पास है. घाना की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेशनल डेमोक्रेटिक कांग्रेस (एनडीसी) ने पूर्व शिक्षा मंत्री जेन नाना ओपोकु-आग्येमान को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. उनका कहना है कि पार्टी का ये फैसला राजनीति में अन्य महिलाओं को आने के लिए प्रेरित करेगा.

69 वर्षीय ओपोकु-आग्येमान ने जुलाई में अपना नामांकन दाखिल करने के बाद चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि "इस महत्त्वपूर्ण फैसले की बदौलत ही बहुत से लोग अपना वोट देने के लिए अब ज्यादा जोश में आ गए हैं.” उन्होंने अन्य महिलाओं के लिए दरवाजा खोले रखने का वादा भी किया. उनका और एनडीसी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार, पूर्व राष्ट्रपति जॉन महामा का सीधा मुकाबला सत्ताधारी न्यू पैट्रियोटिक पार्टी (एनपीपी) के उम्मीदवारों, राष्ट्रपति नाना अकुफो-आडो और उपराष्ट्रपति महामुदाबावुमिया से है.

Ghana Der Fischer Togbe Madugo am Strand
गरीबी चुनावों का बड़ा मुद्दातस्वीर: Berlin Producers

राजनीतिक पासा

कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि ओपुको-आग्येमान का नामांकन, चुनावी दौड़ में बढ़त हासिल करने की एनडीसी की एक राजनीतिक चतुराई है. इस नजरिए को अक्टूबर में हुए एक पोल के जरिए भी बल मिला. घाना की मार्केट रिसर्च कंपनी, एमएसआई-एसीआई के पोल में बताया गया था कि 70 प्रतिशत लोग उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में थे.

35 वर्षीय तकनीकी उद्यमी काफुई आनसन-येवु का कहना है, "असली जीत तो यही है, अब भले ही वो जीतें या नहीं.” घाना की राजधानी अक्रा में उन्हें और उनके दोस्तों को उम्मीद है कि ये उम्मीदवारी राष्ट्रीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की एक शुरुआत की तरह काम करेगी. राष्ट्रपति पद के 12 उम्मीदवारों में तीन महिलाएं भी हैं, हालांकि मतदाता आमतौर पर एनपीपी और एनडीसी के बीच से ही अपनी पसंद का नेता चुनते हैं. 1992 से दोनों दलों की ही बारी बारी से सरकारें बनती रही हैं.

महामारी के साए में

घाना में सात दिसंबर को संसदीय चुनाव भी होंगे लेकिन मुख्य राजनीतिक दल 2016 के मुकाबले इस बार कम संख्या में महिला उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार रही हैं. लिहाजा कुछ रिपोर्टो के मुताबिक महिला सांसदों की संख्या इस बार कम रहना तय है. तेल, सोने और कोका के मुख्य उत्पादक देश, घाना की अर्थव्यवस्था भी अन्य देशों की तरह कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है. चंद महीनों पहले लगाया गया कड़ा लॉकडाउन असंगठित क्षेत्र के लिए बहुत बुरा गुजरा. घाना के राष्ट्रीय सकल उत्पाद का एक तिहाई हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है और इसी सेक्टर के दस में से नौ रोजगार महिलाओं के पास हैं.

इस साल की दूसरी तिमाही में, करीब 40 साल के दरमियान पहली बार, अर्थव्यवस्था सिकुड़ी है. वैसे अगले साल इसमें करीब छह प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है. राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों ने आर्थिक बहाली के लिए ज्यादा खर्च का वादा किया है. सत्ताधारी एनपीपी के वादे में किराया समर्थन योजना भी शामिल है, जबकि विपक्षी उम्मीदवार महामा ने दस लाख नौकरियां देने का वादा किया है.

Screenshot | Q Ghana News Africa
पूर्व राष्ट्रपति जॉन महामातस्वीर: Isaac Kaledzi

सीधा मुकाबला

दोनों नेताओं के बीच ये तीसरा सीधा मुकाबला है. 2012 के पहले मुकाबले में बहुत कम वोटों के अंतर से महामा की जीत हुई थी. 2016 के चुनावों में वो छह प्रतिशत से अधिक के अंतर से एनपीपी नेता अकुफो-आडो से हार गए थे. स्वयंसेवी शोध समूह घाना सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक डेवलपमेंट ने सितंबर-अक्टूबर के दरमियान 2400 नागरिकों के बीच मत सर्वेक्षण किया था जिसके मुताबिक 70 प्रतिशत लोग अकुफो-आडो के पक्ष में हैं. 275 सीटों वाली संसद में राष्ट्रपति की पार्टी को हल्का बहुमत मिलने की संभावना है.

संस्था के निदेशक कोजो असांते ने अकुफो-आडो की पार्टी एनपीपी का हवाला देते हुए कहा कि कौन किसे वोट देगा ये पोल में नहीं दिखाया गया है लेकिन ये कमोबेश तय है कि पलड़ा उसका ही भारी है. घाना के चुनावों में नीतिगत मुद्दों और प्रचार के दौरान किए गए वादों का ही जोर रहता है. क्षेत्र के अन्य देशों से उलट, घाना की राजनीति में सजातीय गठबंधनों की कोई निर्णायक भूमिका नहीं रहती है.

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