ग्रीस समझौते से नाखुश आईएमएफ
१५ जुलाई २०१५ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास की रणनीति को उनके लोग बहुत अच्छे से समझ नहीं पा रहे हैं. पहले जनमत संग्रह में ना में जवाब दे कर लोगों ने प्रधानमंत्री में अपने विश्वास का प्रमाण दिया और फिर सोमवार को जब सिप्रास ने यूरोपीय संघ की शर्तों को स्वीकार लिया, तब लोगों में उन्हें ले कर निराशा नजर आई. शर्तों के अनुसार सिप्रास अगर देश के श्रम कानून, पेंशन योजना और टैक्सों में बड़े बदलाव लाते हैं, तो अगले तीन साल तक उन्हें 86 अरब यूरो का राहत पैकेज दिया जा सकता है. पांच सालों में यह तीसरा राहत पैकेज होगा.
यूरोजोन की सरकारों की हिस्सेदारी इसमें 40 से 50 अरब तक की होगी, जबकि बाकी की राशि आईएमएफ जुटाएगा तथा सरकारी संपत्ति को बेच कर इसे पूरा किया जाएगा. अब ग्रीस की संसद को फैसला लेना है कि उसे ये शर्तें मंजूर हैं या नहीं. सिप्रास के लिए संसद से इसे पारित कराना एक बड़ी चुनौती तो ही, साथ ही आईएमएफ का ग्रीस में अविश्वास भी मुश्किल खड़ी कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक रिपोर्ट जारी कर यूरोजोन के समझौते की निंदा की है. आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि यूरोजोन की सरकारें जितना आंक रही हैं, ग्रीस की आर्थिक स्थिति उससे काफी ज्यादा खराब है. आईएमएफ के एक अधिकारी ने कहा कि ईयू को एक ठोस योजना बनाने की जरूरत है क्योंकि "मौजूदा समझौता ना ही विस्तृत है और ना व्यापक." वहीं राजनीतिक जानकार इस बात की भी निंदा कर रहे हैं कि रिपोर्ट के छप जाने से पहले रविवार को ही जब इस बारे में पता था, तो सोमवार को हुई बैठक में लेनदारों ने उस पर चर्चा क्यों नहीं की.
सिप्रास के लिए यह रिपोर्ट इसलिए भी मुश्किलें ले कर आई है क्योंकि उन्हीं की सीरिजा पार्टी के 30 नेता उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि प्रधानमंत्री अगर अपनी पार्टी के मंत्रियों को ही अपना मत नहीं समझा पा रहे हैं, तो देश की जनता को कैसे राजी करेंगे. सिप्रास ने कहा है कि उनके लिए भी यह समझौता मजबूरी है और वे इसकी "पूरी जिम्मेदारी" लेते हैं. उन्होंने कहा, "मैं इससे पूरी तरह सहमत नहीं हूं लेकिन मैंने इस पर हस्ताक्षर किए ताकि मैं देश को तबाही से बचा सकूं." एक टेलीविजन इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि संसद में बिल के पारित ना होने या फिर सुधार योजना के विफल होने की स्थिति में क्या वे इस्तीफा देंगे, उन्होंने कहा, "एक प्रधानमंत्री का काम है लड़ना, सच्चाई बयान करना, फैसले लेना, भाग जाना नहीं."
इस बीच ग्रीस के वित्त मंत्री ने बयान दिया है, "यह एक मुश्किल समझौता है. सिर्फ वक्त ही बताएगा कि आर्थिक रूप से यह कितना सही है." ग्रीस मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार वामपंथी दल बिल के खिलाफ खड़ा होगा और दोबारा दिरहम की ओर लौटने की वकालत करेगा. मुश्किल वक्त के दौरान भी देश में सिप्रास की लोकप्रियता कम नहीं हुई है. एक सर्वेक्षण के मुताबिक 68 फीसदी लोगों ने कहा कि यदि समझौता नहीं हो पाता और देश में नई गठबंधन सरकार बनती है, तो उस हाल में भी देश की कमान सिप्रास की ही हाथों में रहनी चाहिए.
आईबी/ओएसजे (एएफपी, डीपीए)