गोल लाइन तकनीक
क्रिकेट में डिसीजन रिव्यू सिस्टम पर भले ही सहमति नहीं बन पाई हो, लेकिन फुटबॉल के लिए फीफा ने तय कर लिया है कि 2014 के फुटबॉल वर्ल्ड कप से गोल लाइन तकनीक का इस्तेमाल करेगी.
तकनीक की मदद
ब्राजील में होने वाले वर्ल्ड कप के साथ फुटबॉल में नया इतिहास लिखा जाएगा. इस वर्ल्ड कप से फुटबॉल में गोल लाइन तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया जाएगा.
क्या है तकनीक
सॉकर वर्ल्ड कप फुटबॉल 2014, में जर्मनी की कंपनी गोलकंट्रोल की गोल लाइन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके तहत स्टेडियम में कैमरे लगाए जाएंगे और गेंद पर नजर रखी जाएगी.
कई तरीके
जर्मनी के फ्राउनहोफर संस्थान ने गोल लाइन तकनीक का एक तरीका विकसित किया. इसमें बॉल के अंदर कॉपर के तार लगते हैं. इंटेलिजेंट गोल गेंद की लाइन क्रॉस चुंबकीय क्षेत्र बनता है और रेफरी की घड़ी तक संदेश पहुंचता है.
गेंद में चिप
एक दूसरी कंपनी ने गेंद में चिप लगाई. टर्फ के नीचे लगी केबल के जरिए गेंद के गोल में पहुंचते रेफरी तक संदेश पहुंचता है.
फीफा का यस
जिस तकनीक को फीफा ने स्वीकृति दी उस तकनीक के तहत हर गोल के आस पास सात कैमरे लगाए जाते हैं. यानी कुल 14 कैमरे मैदान की छत के नीचे लगे होते हैं.
घड़ी अहम
जितनी भी तकनीक गोल पर नजर रखने के लिए बनाई गई, वह सभी रेफरी की घड़ी से जुड़ी हुई हैं. लेकिन गोलकंट्रोल की 3डी तकनीक से एक सेकंड के अंदर रेफरी तक गोल की खबर पहुंच जाती है.
टेनिस में
2005 से टेनिस में हॉक आई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जो दर्शकों तक गेंद का रास्ता पहुंचाती हैं और हर गेंद का विश्लेषण कर सकती है.
पसंदीदा
टेनिस में यह तकनीक दर्शकों की पसंद बन गई. अंपायर का फैसला अगर गलत होता है तो खिलाड़ी को या तो अंक मिलता है या फिर एक बार और उस प्वाइंट के लिए खेलने का मौका दिया जाता है.
क्रिकेट में
डिसीजन रिव्यू सिस्टम को लेकर क्रिकेट में लंबा विवाद चल रहा है. भारतीय क्रिकेट बोर्ड यानि बीसीसीआई ने अभी भी इसकी मंजूरी नहीं दी है, जबकि कई अंतरराष्ट्रीय मैचों में इसका इस्तेमाल हो रहा है.