गेमब्वाय के 25 साल
21 अप्रैल 1989 को पहली बार गेमब्वाय बाजार में आया. अटारी 2600 कंप्यूटर गेम से आज के वर्चुअल रियालिटी तक एक नजर.
सफर में
गेमब्वाय ने कई बच्चों का दिल जीत लिया और सफर का सच्चा साथी बन गया. दो गुलाबी बटनों और काले क्रॉस वाले इस खेल की कीमत शुरू में जर्मनी में 160 मार्क यानी करीब 80 यूरो थी.
अटारी 2600
गेमब्वाय से पहले टीवी से जुड़ा वीडियो गेम बाजार में आ चुका था. इसमें एक गेम था अटारी 2600, जो 1977 के दौरान अमेरिका में आ चुका था. हालांकि इसका ग्राफिक अच्छा नहीं था लेकिन यह रंगीन हो चुका था. 1990 के दशक की शुरुआत में ही तीन करोड़ अटारी 2600 बिक चुके थे.
पहला पीसी
1982 में कोमोडोर 64 आया. आम तौर पर इसे सी64 कहा जाता था. ये कंप्यूटर न सिर्फ गेम के लिए इस्तेमाल होता था बल्कि इस पर छोटे मोटे प्रोग्राम भी बनाए जा सकते थे. इसमें कोई हार्ड डिस्क नहीं थी. खेल ऑडियो कैसेट रिकॉर्डर की तरह के उपकरण कोमोडोर डाटासेट से लोड होते थे.
"मिस्टर निन्टेंडो"
हिरोशी यामाउची 53 साल जापानी कंपनी निन्टेंडो के प्रमुख रहे. 70 के दशक तक ये कंपनी जापानी ताश बेचती थी. हिरोशी ने कंपनी को नया रंग दिया. 1983 में निन्टेंडो ने फैमिली कंप्यूटर फैमिकॉम पेश किया. गेमिंग की दुनिया में निन्टेंडो ने नए झंडे गाड़ दिए.
थोड़े दिन की सफलता
जापान की कंपनी सेगा का मेगा ड्राइव वीडियो गेम 1988 में बहुत हिट रहा. अमेरिका में इसका नाम सेगा जेनेसिस पड़ा. बाद में गेम की दुनिया से सेगा निकल गई और सॉफ्टवेयर के अलावा ऑर्केड कैबिनेट बनाने लगी.
नया रूप
1990 में आया गेमब्वाय अगली सदी तक चला. इसके नए संस्करण गेमब्वाय पॉकेट, गेमब्वाय कलर, गेमब्वाय एडवांस और गेमब्वाय माइक्रो के रूप में आए. फिर गेमब्वाय सीरिज बंद हो गई और उसकी जगह निन्टेंडो डीएस (डुएल स्क्रीन) आया.
सुपर मारियो
गेमब्वाय सीरीज की अपार सफलता के बाद 1990 में निन्टेंडो कंपनी ने टीवी के लिए एक और गेम बनाया, सुपर निन्टेंडो इंटरटेनमेंट सिस्टम. अगले सालों में इसके करीब पांच करोड़ गेम दुनिया भर में बिके, इस सीरीज का सबसे पसंदीदा गेम सुपर मारियो वर्ल्ड था.
सीडी पर गेम
1994 के बाद सोनी के प्लेस्टेशन ने निन्टेंडो का बाजार छीन लिया. पहली बार वीडियो गेम सीडी पर आने लगे, कीमतें कम हो गईं और सेविंग क्षमता बढ़ गई. अभी प्लेस्टेशन गेम्स की चौथी पीढ़ी बाजार में है.
माइक्रोसॉफ्ट का आगमन
प्लेस्टेशन की अपार सफलता के कारण माइक्रोसॉफ्ट कंपनी भी वीडियो गेम्स में उतरी. हालांकि उसका पहला गेम काफी देर से 2001 में एक्सबॉक्स के नाम से आया. काइनेक्ट स्पोर्ट्स राइवल नाम के वीडियो गेम ने गेमिंग में नई जान डाली. खिलाड़ी अपने हाव भाव से बहुत कुछ कर सकते थे.
ड्रॉइंग रूम में
2006 में निन्टेंडो ने वी नाम का वीडियो गेम बाजार में उतारा. ये पहला गेम था जिसे आभासी रूप में खेला जा सकता था. अंगुलियों और शरीर की हरकत का असर स्क्रीन पर नजर आने लगा. इसके साथ वीडियो गेम की परिभाषा बदल गई.
भविष्य की ओर
अब वीडियो गेम धीरे धीरे आभासी और वास्तविक दुनिया को जोड़ने की ओर बढ़ रहा है. ओक्युलस रिफ्ट जैसे खास 3डी चश्मे से खिलाड़ी बिलकुल असली जैसा दिखाई देता है. खास सेंसर से उसकी हरकतें पकड़ी जा सकती हैं. इस तरह के उपकरणों का इस्तेमाल सैनिक ट्रेनिंग में भी होता है.