गिर के जंगलों में क्यों मर रहे हैं शेर
२ अक्टूबर २०१८इतनी बड़ी संख्या में शेरों की मौत ने अधिकारियों में खलबली मचा दी है, 500 से ज्यादा कर्मचारियों को इस अभयारण्य के बचे हुए शेरों की छानबीन करने में लगाया गया है. वन के मुख्य संरक्षक दुष्यंत वासवाडा ने बताया है कि आपसी लड़ाई और संक्रमण के कारण शेरों की मौत हुई है. समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में दुष्यंत वासवाडा ने कहा, "बीते हफ्ते आठ शेरों की मौत हुई, जिनमें चार की मौत वायरल इंफेक्शन के कारण हुई जबकि चार दूसरे शेर प्रोटोजोआ इंफ्केशन के कारण मरे." इससे पहले के सप्ताह में अधिकारियों ने 13 शेरों के मौत की जानकारी दी थी.
स्थानीय मीडिया में ऐसी खबरें थी कि इन शेरों की मौत केनाइन डिस्टेंम्पर वायरस के कारण हुई है. यह वायरस कुत्तों से दूसरे जंगली जीवों में जाता है और घातक है. हालांकि वन अधिकारी इससे साफ इनकार कर रहे हैं. उनका कहना है कि सीडीवी की मौजूदगी की पुष्टि होने की बात गलत है. सीडीवी ने 1994 में तंजानिया के सेरेन्गेटी अभयारण्य के करीब 1000 शेरों की जान ले ली थी. वासवाडा का कहना है, "अब तक पुष्टि नहीं हुई है, जांच जारी है. हमें उम्मीद है कि यह सीडीवी नहीं है. हम बचाव के लिए सभी उपाय अपना रहे हैं और बहुत सारे वैक्सीन आयात किए गए हैं." उनका यह भी कहना है कि सर्वे में पता चला है कि शेरों की मौत एक खास इलाके में ही हुई है.
हालांकि समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में गुजरात के पर्यावरण मंत्री गनपत वसावा ने कहा है कि भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने केनाइन डिस्टेम्पर वायरस को चार शेरों की मौत के लिए जिम्मेदार बताया है. पांच शेरों की अभी भी जांच चल रही है जबकि 31 दूसरे शेरों को एनिमल केयर सेंटर ले जाया गया है और उन्हें अलग रखा जा रहा है. हालांकि इन शेरों में बीमारी के कोई लक्षण अभी नजर नहीं आए हैं.
गिर वन को एशियाई शेरों को लुप्त होने से बचाने के लिए स्थापित किया गया था. इस अभयारण्य के अस्तित्व में आने के बाद शेरों की आबादी तेजी से बढ़ी. 1913 में यह संख्या घट कर महज 13 पर पहुंच गई थी लेकिन 2015 की गणना के दौरान करीब 523 शेरों के होने की बात कही गई. पूरे भारत के शेर गिर के वन में ही रहते हैं यह करीब 1400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है.
एनआर/एमजे (डीपीए, एएफपी)