नन्हे कंधों पर बोझ
५ अगस्त २०१४स्कूल में हर दिन करीब आठ अलग अलग तरह की क्लास लगती हैं और हर क्लास के लिए कम से कम एक कॉपी और एक किताब साथ रखना जरूरी होता है. क्लासवर्क और होमवर्क की कॉपियां मिला कर जब टाइमटेबल के हिसाब से बस्ता लगाया जाता है, तो इतना भारी हो जाता है जैसे बच्चे को स्कूल जाने की सजा दी जा रही हो.
ज्यादा बोझ के कारण बच्चों की रीढ़ की हड्डी पर बुरा असर पड़ सकता है. बच्चे के लिए दस किलो उठाना वैसा ही हो सकता है जैसा किसी वयस्क के लिए तीस या चालीस किलो. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बस्ते का वजन कितना हो, जिससे बच्चे को किसी तरह का नुकसान ना हो.
संतुलन जरूरी
जर्मनी के फिजियोथेरेपिस्ट बताते हैं कि बच्चे के बस्ते का भार उसके लिए ठीक है या नहीं, माता पिता एक सामान्य से टेस्ट से इस बात का ध्यान रख सकते हैं. बच्चे से बस्ता उठा कर एक टांग पर खड़े होने के लिए कहें. अगर वह बिना अपना संतुलन खोए बस्ता उठा पा रहा है, तो वजन ठीक है. और अगर संतुलन बिगड़ रहा है, तो यह इस बात का संकेत है कि बस्ते का वजन कम करने की जरूरत है.
एक आम धारणा है कि बस्ते का वजन बच्चे के वजन के दस फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन जर्मनी की डॉक्टर कॉर्नेलिया गोएत्स इसे सही नहीं मानतीं. उनका कहना है कि बच्चे अपने वजन का एक तिहाई तक उठा सकते हैं. और पढ़ाई के कारण जहां बच्चों को कसरत करने का ज्यादा वक्त नहीं मिल पाता, उनके लिए यह लाभकारी हो सकता है.
ट्रॉली से बचें
बच्चों के कंधों पर बोझ ना पड़े, इसके लिए कुछ माता पिता उन्हें ट्रॉली भी दिला देते हैं. डॉक्टर गोएत्स ऐसा ना करने की सलाह देती हैं. उनका कहना है कि ट्रॉली इस्तेमाल करने से ऐसा लगता तो है कि बच्चे को पहियों से फायदा मिल रहा है और बोझ नहीं उठाना पड़ रहा, पर असल में ट्रॉली को खींचने के कारण उनकी कूल्हे और रीढ़ की हड्डी खराब हो सकती है.
आईबी/एएम (डीपीए)