कोरोना: आपदा के समय में विपक्ष की मुश्किलें
२३ मार्च २०२०प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू का आह्वान किया और पूरा देश उनके पीछे चल पड़ा. लोकतंत्र में सरकार का काम शासन करना है और विपक्ष का काम सरकार का नियंत्रण करना. और ये जिम्मेदारी संकट की घड़ी में भी होती है. लेकिन कोरोना जैसे विनाशकारी संकट के समय खुद सरकार भी कोई कदम उठाने से पहले विशेषज्ञों पर निर्भर करती है. कभी अपने विशेषज्ञों पर तो कभी पश्चिमी देशों या अंतरराष्ट्रीय संगठनों के विशेषज्ञों पर. कोरोना का मामला भी ऐसा ही है. किसी को पता नहीं कि इससे निबटा कैसे जाए. न कोई दवा है और न कोई टीका. रोकथाम के लिए टीका बनाने में कम से कम दो साल लगेंगे तो दवा बनाने में कुछ और ज्यादा. ऐसे में एकमात्र रास्ता है महामारी के प्रसार को रोकना और जो बीमार हो गए हैं उनका इलाज करना.
और जब समस्या से निबटने की स्थिति हो तो प्रशासन सब कुछ के केंद्र में होता है. विपक्ष की परेशानी ये होती है कि सरकारी कदमों की आलोचना कैसे की जाए. वे न तो प्रशासनिक और स्वास्थ्य अधिकारियों को हतोत्साहित कर सकते हैं और न ही चुप रहकर सारा श्रेय सरकार को लेने दे सकते हैं. आगे नदी तो पीछे नाले वाली स्थिति है. ऐसे में विपक्ष सरकार को कंट्रोल करने की अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाए. कोरोना पर भारत ने तेज प्रतिक्रिया की है, लेकिन शुरू में इसे बाहर से आने वाली समस्या मानकर ज्यादा ध्यान अंतरराष्ट्रीय परिवहन के नियंत्रण पर दिया. इस समय का इस्तेमाल स्वास्थ्य व्यवस्था का आकलन करने और उसे मजबूत बनाने में किया जा सकता था. भारतीय विपक्ष अपने अपने तरह से इस मुद्दे पर काम कर रहा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
सीपीएम नेता सीतराम येचुरी भी मजदूरों और कामगारों के हितों की रक्षा के लिए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही उनकी नजर कोरोना की मार झेल रहे छोटे उद्यमियों पर भी है
राज्यों में भी विपक्ष सरकार का समर्थन करने के बावजूद अपने समर्थक तबकों के लिए वित्तीय मांग कर समर्थकों को इकट्ठा रखने की कोशिश कर रहा है. बिहार में कुछ महीनों में चुनाव होने वाले हैं और मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की सरकार पर दबाव बनाए रखा है.
पश्चिम बंगाल में भी चुनाव होने वाले हैं और वहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी से जबरदस्त मुकाबले का अनुभव कर रही है. उनकी रणनीति फिलहाल बीजेपी से सीधे टकराव से बचने की है. सत्तारूढ़ क्षेत्रीय पार्टी होने के कारण उनका पूरा ध्यान अपने प्रांत पर है तो केंद्र सरकार का विरोध करने का जिम्मा तृणमूल सांसद डेरेक ओब्रायन ने उठा रखा है.
अमेरिका में जो बाइडेन की छाया ब्रीफिंग
दूसरे देशों में भी हालत अलग नहीं है. अमेरिका में डेमोक्रैटिक पार्टी और पार्टी के राष्ट्रपति पद के भावी उम्मीदवार भी ऐसे ही संकट का कामना कर रहे हैं. लेकिन सीनेट में डेमोक्रैटिक पार्टी ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के विरोध का रास्ता अपनाया है. उसकी पहल पर सीनेट ने रविवार को राष्ट्रपति के 2 अरब डॉलर के कोरोना सहायता पैकेज को ठुकरा दिया. डेमोक्रैटिक सीनेटरों का आरोप है कि इस पैकेज में बड़े उद्योगों की तो मदद की गई है लेकिन कामगारों की पर्याप्त मदद नहीं की जा रही है.
राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रैटिक दावेदार और पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडेन ने कोरोनो वायरस को राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा गंभीरता से नहीं लिए जाने के आरोप में खुद अपनी ब्रीफींग शुरू करने की बात कही है. हालांकि वे डेलावेयर में अपने घर में आइसोलेशन में हैं, लेकिन वे सोमवार से कोरोना महामारी पर प्रेस को संबोधित करना शुरू करेंगे. इसके लिए उन्होंने अपने घर में लाइव स्ट्रीमिंग तकनीक लगाया है ताकि वे स्वास्थ्य इमरजेंसी पर अपनी राय दे सकें. जो बाइडेन का कहना है कि राष्ट्रपति के बार बार गलतबयानी और कोरोना वायरस के खतरे को कमतर बताए जाने के कारण अमेरिकी लोगों को सूचना देने और उनकी सुरक्षा के लिए छाया ब्रीफिंग जरूरी है.
जर्मनी में भी विपक्ष की मिलीजुली रणनीति
संकटकाल में जर्मनी में भी चांसलर अंगेला मैर्केल और उनकी सरकार पर भी लोगों की नजरें हैं. विपक्षी पार्टियां सरकार का समर्थन से लेकर विरोध करने तक विभिन्न नीतियां अपना रही है. चांसलर की सत्ताधारी सीडीयू पार्टी को मुख्य विरोध साझा सरकार में शामिल एसपीडी के नेताओं से ही मिल रहा है, जो देश की राजनीति में संतुलन की कोशिश कर रही है. जब बवेरिया में चांसलर की पार्टी सीडीयू की सहोदर सीएसयू के मुख्यमंत्री ने कर्फ्यू लगाया तो विरोध एसपीडी की ओर से विरोध हुआ जो राष्ट्रीय स्तर पर एक जैसे नियमों की मांग कर रही थी या फिर सख्त कर्फ्यू का विरोध कर रही थी.
जर्मनी की विपक्षी पार्टियां कोरोना के संकट में असहाय महसूस कर रही हैं, क्योंकि सिर्फ सरकार का विरोध करना इस समय काफी नहीं है. जनमत संग्रहों में इस समय लोकप्रियता की नाव पर सवार ग्रीन पार्टी सरकार का समर्थन कर रही है. पार्टी के मैनेजर मिषाएल केलर का कहना है कि पार्टी दलगत राजनीति नहीं कर रही है. वामपंथी पार्टी डी लिंके स्वतंत्र रूप से काम करने वालों, कर्मचारियों और कम आय वाले कामगारों के लिए सुरक्षा की मांग कर रही है तो छोटे उद्यमों का समर्थन करने वाली पार्टी फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी ने संतुलित बजट की मांग छोड़ दी है और सरकार से आर्थिक अवनति को रोकने के कदम उठाने की मांग की है. वहीं धुर दक्षिणपंथी एएफडी राज्यों और केंद्र में कोरोना पर क्या रवैया अपनाए, इस पर विभाजित है.
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