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समाज

कैसा होता है रेपिस्ट का दिमाग?

१० सितम्बर २०२०

हर आदमी तो बलात्कारी नहीं होता लेकिन कोई भी आदमी बलात्कारी कैसे बन जाता है? उसके दिमाग में ऐसा क्या चलता है, जो वो औरत को भोग की वस्तु समझने लगता है?

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Symbolbild Gewalt gegen Frauen
तस्वीर: picture alliance/dpa

बलात्कार पीड़ित शारीरिक और मानसिक रूप से किन परेशानियों से गुजरता है, पिछले कुछ वक्त में इस पर काफी चर्चा होती रही है लेकिन क्या आपने कभी इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की है कि कोई भी व्यक्ति बलात्कारी कैसे बन जाता है? ऐसा नहीं है कि किसी एक विशेष प्रकार के व्यक्ति के बारे में कहा जा सके कि यह बलात्कारी होगा. रेपिस्ट कोई भी हो सकता है. यह बात आपको डराने के लिए नहीं कही जा रही है, बल्कि इसका सिर्फ इतना मतलब है कि किसी व्यक्ति विशेष के साथ यह शब्द नहीं जोड़ा जा सकता.

अमेरिका के साइकॉलोजिस्ट डॉक्टर सैमुएल समिथिमैन ने 70 के दशक में एक शोध किया था. इसके लिए उन्होंने 50 ऐसे पुरुषों से बात की जिन्होंने माना था कि उन्होंने बलात्कार किया है. ये सभी पुरुष अलग अलग तरह के पृष्ठभूमि से थे, इनका सोशल स्टेटस भी एक दूसरे से अलग था और सोच विचार में भी ये एक दूसरे से काफी अलग थे. लेकिन कुछ चीजें थी, जो इस शोध में निकल कर आईं. मिसाल के तौर पर ये सभी व्यक्ति महिलाओं के प्रति द्वेषभाव रखते थे, इनमें सहानुभूति की कमी थी और ये सभी नार्सिसिस्ट थे यानी ये अहंकार से इतने भरे थे कि इन्हें अपने आगे कुछ नहीं दिखता था.

Westbengalen | Proteste | Gewalt gegen Frauen
भारत में महिलाओं पर अत्याचार का विरोध होता रहा हैतस्वीर: DW/P. Samanta

अमेरिका की मनोवैज्ञानिक शेरी हैम्बी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि बलात्कार का मुख्य कारण यौन संतुष्टि नहीं, बल्कि खुद को सामने वाले पर हावी करना होता है. उन्होंने बताया, "बलात्कार के ज्यादातर आरोपी युवा पुरुष होते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यार दोस्तों में ये अपनी छवि इसी तरह से बेहतर बनाते हैं. ये बता कर कि वे सेक्स के लिहाज से कितने सक्रिय हैं. अगर वे ज्यादा सेक्स नहीं कर रहे होंगे तो दोस्त उनका मजाक उड़ाएंगे. ऐसे में कई पुरुषों को घबराहट होने लगती है कि उनकी इज्जत घट जाएगी." शेरी हैम्बी कहती हैं कि समाज के अलावा कई बार इस तरह का दबाव पुरुषों पर मीडिया के कारण भी बढ़ जाता है. उन्हें लगने लगता है कि अपनी मर्दानगी साबित करने का यही एक तरीका है कि औरतों का शोषण करें.

बलात्कार करने वाले पुरुष महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट के रूप में देखते हैं. उन्हें लगता है कि महिलाओं का काम ही है आदमियों की शारीरिक जरूरतों को पूरा करना. उनकी सच्चाई हकीकत से परे होती है. मिसाल के तौर पर, यह मानना कि लड़की की ना में भी हां है या फिर ये सोच लेना कि ना कह कर वो उन्हें दरअसल रिझाने की कोशिश कर रही है. अमेरिका की एक और मनोवैज्ञानिक अन्टोनिया ऐबी ने बताया कि उन्होंने जिन बलात्कारियों पर शोध किया था, उनमें से एक का कहना था कि "वह औरत नखरे ज्यादा दिखा रही थी", इसलिए उसका रेप कर दिया. एक अन्य का कहना था कि "शुरू में तो हर औरत ना ही कहती है."

Westbengalen | Proteste | Gewalt gegen Frauen
आत्मरक्षा अभियानों के बावजूद नहीं घट रहे बलात्कार के मामले तस्वीर: DW/P. Samanta

एक अन्य बलात्कारी ने उनसे कहा, "(बलात्कार के बाद) ऐसा लगा जैसे मैंने वो हासिल कर लिया जिसका मैं हकदार था, ऐसा लगा जैसे मैंने उसे मुझे रिझाने का इनाम दे दिया." इस व्यक्ति ने दो बार बलात्कार किया था और दोनों ही अनुभवों में उसने खुद को "हिम्मत से भरा, उत्तेजित और रोमांचित" महसूस किया. शेरी हैम्बी के अनुसार जिन समाजों में महिलाओं को नीचा माना जाता है, वहां बलात्कार जैसी घटनाएं ज्यादा होती हैं. वे कहती हैं, "ऐसे समाज में पुरुषों को हमेशा से सिखाया जाता है कि वे अपनी भावनाओं से जुड़ ना सकें. ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आता कि वे अपनी भावनाओं से कैसे डील करें.

रेपिस्ट कई तरह के होते हैं. कोई मौके का फायदा उठाने की फिराक में रहता है, तो किसी का मकसद महिला को नीचा दिखाना, उसकी "इज्जत उतारना" होता है, कोई ऐसा भी होता है जिसके अंदर अपार गुस्सा भरा होता है और वह रेप के जरिए अपना गुस्सा निकालने की कोशिश कर रहा होता है. ऐसे व्यक्ति को लगता है कि क्योंकि अतीत में किस्मत ने उसके साथ बुरा किया है, इसलिए उसे दूसरों के साथ और खास कर महिलाओं के साथ कुछ गलत करने का अधिकार है.

ऐसा कम ही होता है कि कोई बलात्कारी इस बात को स्वीकार भी करे कि उसने बलात्कार किया है. जो अपनी गलती मान भी ले, वो अपनी सफाई में कुछ ना कुछ तैयार रखता है. सच्चाई यह है कि बलात्कार या किसी भी तरह का यौन शोषण अपराध है और कोई भी बहाना उसे जायज नहीं ठहरा सकता. महिलाएं अकसर अपने साथ हुई ज्यादती को लेकर चुप रहती हैं. और इस चुप्पी के चलते समाज में रेपिस्ट खुले घूमते हैं और दूसरों को अपना निशाना बनाते रहते हैं.

रिपोर्ट: फाराह आकेल/आईबी

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