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मीडिया

तालाबंदी में व्हाट्सऐप पर आ रहा है अखबार

चारु कार्तिकेय
२९ अप्रैल २०२०

तालाबंदी में अखबार बांटने का नेटवर्क अभी तक पहले जैसा वापस खड़ा नहीं हो पाया है. लेकिन व्हाट्सऐप पर रोज आने वाले गुड मॉर्निंग मैसेज की तरह अब अखबार हर रोज आपके मोबाइल पर आ रहा है.

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Indien Kalkutta Lockdown Zeitungen
तस्वीर: DW/P. M. Tiwari

जिन्हें चाय की चुस्की के साथ रोज सुबह अखबार पढ़ने की आदत हो उन्हें एक दिन भी अगर अखबार ना मिले तो दिन अधूरा लगता है. भारत में तालाबंदी के शुरू के दिनों में ऐसी हालत कई अखबार पाठकों की हो गई थी, क्योंकि अखबार घर तक नहीं पहुंच रहे थे. बाद में तालाबंदी से छूट मिलने के बाद भी, अखबारों का छपना तो जारी रहा लेकिन या तो अखबार बांटने वालों ने घर-घर जाना बंद कर दिया या लोगों ने अखबार लेने से मना कर दिया.

वैसे तो अखबार छपने की पूरी प्रक्रिया संक्रमण से मुक्त है और यह बात अखबार उद्योग बार बार कह रहा है. सरकार ने भी इस दावे को सत्यापित किया है, लेकिन अखबार बांटने का नेटवर्क अभी तक पहले की तरह वापस खड़ा नहीं हो पाया है. आवश्यकता तो आविष्कार की जननी होती ही है. इस समस्या का भी इलाज खोज लिया गया है. व्हाट्सऐप पर रोज आने वाले रिश्तेदारों के गुड मॉर्निंग संदेश की तरह अखबार अब हर रोज आपके मोबाइल पर आ रहा है.

सिर्फ देश-विदेश के अखबार ही नहीं, पत्रिकाओं के भी पीडीएफ रोज व्हाट्सऐप पर फॉरवर्ड किए जा रहे हैं. कई व्हाट्सऐप ग्रुप ही ऐसे बन गए हैं जिनका बस आपको सदस्य बनना है और फिर रोज ग्रुप पर दुनिया भर के अखबार और पत्रिकाएं पीडीएफ की शक्ल में आपको मिलती रहेंगी. आपको समय कम पड़ जाएगा लेकिन पढ़ने की सामग्री की कमी नहीं होगी.

Indien Corona-Pandemie | Leben im Shutdown
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/P. Kumar

क्या ये अवैध रूप से हो रहा है?

ये वैध और अवैध दोनों रूप से हो रहा है. कुछ अखबार और पत्रिकाएं खुद ही पाठकों को पीडीफ डाउनलोड और फॉरवर्ड करने की सुविधा दे रहे हैं. इंडिया टुडे समूह उनमें से एक है. तालाबंदी लागू होने के बाद इंडिया टुडे ने अपनी वेबसाइट पर समूह की पत्रिकाओं के पीडीएफ मुफ्त डाउनलोड करने की सुविधा उपलब्ध करा दी. इंडिया टुडे हिंदी के सम्पादक अंशुमान तिवारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि ऐसा उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए किया कि ऐसे समय में उनकी पत्रिका में छपने वाली जानकारी और विश्लेषण सबके लिए मुफ्त उपलब्ध रहे और सब अपने अपने घरों में उसे पढ़ सकें.

प्रासंगिक रहने के लिए और पाठकों में अपनी पहुंच बनाए रखने के लिए कुछ अखबारों ने अपनी सेल्स टीमों को बाकायदा रोज पीडीएफ व्हाट्सऐप पर भेजने के काम में लगा रखा है. इंडियन एक्सप्रेस जैसे भी कुछ अखबार हैं जिन्होंने डाउनलोड करने की सुविधा तो नहीं दी है लेकिन अपने ई-पेपर को वेबसाइट पर पढ़ने के लिए मुफ्त उपलब्ध करा दिया है. अखबार ने एचडीएफसी बैंक के साथ एक टाई-अप भी किया है जिसके तहत बैंक अपने ग्राहकों को इंडियन एक्सप्रेस ई-पेपर रोज ईमेल पर मुफ्त भेज रहा है. इसके पहले इंडियन एक्सप्रेस ई-पेपर को पढ़ने के लिए सब्सक्रिप्शन लेना पड़ता था.

वहीं कई अखबार और पत्रिकाएं ऐसी भी हैं जिन्होंने मुफ्त पीडीएफ डाउनलोड करने जैसी कोई सेवा उपलब्ध नहीं कराई है और अपनी वेबसाइट पर लगे पेवॉल को भी नहीं हटाया है. लेकिन उनके भी पीडीएफ रोज बन रहे हैं और व्हाट्सऐप पर घूम रहे हैं. मुमकिन है कि ये अवैध रूप से हो रहा हो और अखबारों के कॉपीराइट का उल्लंघन हो.

Indien Corona-Pandemie | Leben im Shutdown
तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/S. Pan

भविष्य के लिए चुनौती या मौका?

प्रिंट मीडिया सिमट रहा है और तालाबंदी ने प्रिंट मीडिया के संकट को और उजागर कर दिया है. संकट के इस दौर में कई अखबारों और पत्रिकाओं के दफ्तरों से एडिशनों के बंद होने, लोगों के वेतन कम किए जाने और नौकरी से निकाले जाने की खबरें आ रही हैं. इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने इसे अखबार उद्योग के लिए अभूतपूर्व संकट का काल बताया है और सरकार से दो साल के टैक्स हॉलिडे और न्यूजप्रिंट पर से कस्टम ड्यूटी हटाने की मांग की है. ऐसे में क्या अखबारों और पत्रिकाओं के मुफ्त पीडीएफ आसानी से उपलब्ध होना उनकी कमाई के लिए खतरा नहीं है?

अंशुमान तिवारी मानते हैं कि यह चुनौती है और कहते हैं कि चूंकि अभी स्थिति असामान्य है इसलिए प्रिंट उद्योग ने इस चुनौती के बारे में सोचा नहीं है. लेकिन वो कहते हैं कि आने वाले दिनों में उद्योग को इसके बारे में सोचना पड़ेगा और तकनीक की मदद से ये सुनिश्चित करना पड़ेगा कि कंटेंट को डाउनलोड और फॉरवर्ड करने पर किसी ना किसी तरह के प्रतिबंध जरूर हों ताकि कंपनियों को अपनी आमदनी मिल सके.

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