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कैसे एक दशक में अर्श से फर्श पर पहुंच गई तोशिबा

२२ दिसम्बर २०२३

जापानी कंपनी तोशिबा का नाम टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज से कट गया है. 74 साल तक शेयर बाजार में एक बड़ी कंपनी बने रहने के बाद यह कंपनी अब इस हाल में कैसे पहुंच गई?

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2010 में बर्लिन में तोशिबा
जापान की तोशिबा कंपनी शेयर मार्किट से बाहर हुईतस्वीर: AP

कभी तोशिबा इतना बड़ा नाम हुआ करता था कि मध्यम और उच्च वर्गीय घरों में इसका कोई ना कोई इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट होता था. टीवी, कंप्यूटर, स्पीकर और ऐसे ही कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बाजार में तोशिबा एक बड़ा नाम था और इसे जापानी तकनीक की एक मिसाल माना जाता था. लेकिन अब आलम यह हो गया है कि कंपनी शेयर बाजार में बने रहने लायक भी नहीं रही.

तोशिबा की हालत पिछले एक दशक में ही खराब हुई है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरती इसके उत्पादों की मांग ने कंपनी के अंदर होने वाले घोटालों और उथल-पुथल को मिलाकर इसे इस हाल में पहुंचा दिया कि अब उसे नए मालिकों के साथ फिर से शुरुआत करनी पड़ रही है.

2015 से गिरावट

तोशिबा के पतन की शुरुआत 2015 में हुई जब यह बात सामने आई कि कंपनी की अलग-अलग शाखाओं में बड़े पैमाने पर आंकड़ों की धांधली की जा रही है. इस धांधली में कंपनी के कई बड़े अधिकारियों का नाम शामिल होने के आरोप लगे. खुलासे में पता चला कि सात साल तक कंपनी ने अपने मुनाफे को असलियत से कहीं ज्यादा दिखाया था. तोशिबा को असल में जो मुनाफा हो रहा था, उससे 1.59 अरब डॉलर ज्यादा दिखाया गया.

2020 में एक बार फिर बड़ा खुलासा हुआ कि आंकड़ों की धांधली की जड़ें और कही हैं. इसके बाद यह भी खुलासा हुआ कि कंपनी के प्रशासन में बड़ी अनियमितताएं हुई हैं और शेयरधारकों के फैसलों में कई तरह की गड़बड़ियां हैं.

2021 में हुई एक जांच में पता चला कि तोशिबा ने देश के वाणिज्य मंत्रालय के साथ मिलकर विदेशी निवेशकों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. तब विशेषज्ञों ने कहा कि इसकी वजह से कई विदेशी निवेशक जापान में निवेश करने से झिझकने लगे और तोशिबा ने जो किया उससे जापान के पूरे शेयर बाजार को नुकसान हुआ.

झटके पर झटके लगे

इससे पहले तोशिबा को एक बड़ा झटका तब लगा था जब अमेरिका कि वेस्टिंग हाउस इलेक्ट्रिक कंपनी दीवालिया हो गई. दरअसल, 2016 में तोशिबा ने ऐलान किया कि वह एक परमाणु बिजली घर का निर्माण करेगी. 2015 में यह प्रोजेक्ट वेस्टिंग हाउस ने खरीदा था.

लेकिन एक साल बाद ही वेस्टिंग हाउस दीवालिया हो गई और तोशिबा का परमाणु बिजली का व्यापार तो ठप्प होने के कगार पर पहुंचा ही उसके छह अरब डॉलर की अन्य व्यापारिक गतिविधियां भी मुश्किल में पड़ गईं. उसे अपना मोबाइल फोन और मेडिकल उपकरण का व्यापार बेचना पड़ा. उसने तोशिबा मेमरी नाम से उसकी चिप बनाने वाली कंपनी बिकने के लिए बाजार में आई लेकिन डील होने के बाद भी कई महीने तक अटकी पड़ी रही क्योंकि एक साझीदार के साथ विवाद हो गया.

हालत यह हो गई थी कि जब दुनियाभर की कंपनियां भविष्य की तकनीक में निवेश कर रही थीं तब तोशिबा को धन जुटाने के लिए अपनी संपत्तियां बेचनी पड़ रही थीं. तब भी कंपनी शेयर बाजार से नाम कटने के कगार पर पहुंच गई थी लेकिन 2017 में डूबते को तिनके का सहारा मिला जब 2017 में कंपनी को 5.4 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला.

उतार चढ़ाव के इस दौर ने कंपनी को बिकने की हालत में पहुंचा दिया और जून 2022 में उसके पास आठ खरीददारों के ऑफर आए और आखिरकार इस साल की शुरुआत में जापानी निवेशकों के समूह जापान इन्वेस्टमेंट कॉर्प ने तोशिबा को 14 अरब डॉलर में खरीद लिया.

कैसा होगा भविष्य

तोशिबा को जिस जापान इंडस्ट्रियल पार्टनर्स (जेआईपी) समूह ने लिया है वह फाइनेंशल सर्विसेज फर्म ऑरिक्स के अलावा चुबू इलेक्ट्रिक पावर और कंप्यूटर चिप बनाने वाली कंपनी रोम का भी निवेशक है. जेआईपी ने सोनी की लैपटॉप बनाने वाली कंपनी और ओलिंपस की कैमरा बनाने वाली कंपनी में भी निवेश किया है. 2014 में जब जेआईपी ने सोनी के वायो लैपटॉप के व्यापार को खरीदा था तो उसके बाद से वह मुनाफा कमाने की स्थिति में पहुंच गई है.

नए निवेशकों ने अपनी योजनाएं तो अभी उजागर नहीं की हैं लेकिन कंपनी को छोड़कर जा रहे अध्यक्ष का कहना है कि नए मालिकों का ध्यान डिजिटल सेवाओं पर होगा. लेकिन तोशिबा कहीं ज्यादा बड़ी कंपनी और उसकी चुनौतियां भी ज्यादा हैं. एक लाख से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनी जापान की आर्थिक और सामरिक स्मृद्धि के लिए भी अहम है इसलिए लोगों की इस पर पैनी निगाह रहेगी.

रिपोर्ट: विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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