कैमरे में कैद खूनी संघर्ष के साक्ष्य
केन्या में रहने वाली फोटोग्राफर आड्रियाने ओहानेसियन को उनकी बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया गया है. ओहानेसियन ने साउथ सूडान के गृहयुद्ध और सूडान के पश्चिमी इलाके दारफूर के संकट को अपनी तस्वीरों में बखूबी कैद किया है.
साहस की मिसाल औरतें
यह पुरस्कार असोसिएटेड प्रेस (एपी) की बहादुर फोटोपत्रकार आन्या नीड्रिगहाउस की याद में शुरु हुआ. सन 2014 में ड्यूटी पर अफगानिस्तान भेजी गई नीड्रिगहाउस की वहां हत्या कर दी गई थी. उनके नाम पर शुरु हुए इस पुरस्कार की इस बार विजेता बनीं ओहानेसियन ने दक्षिण सूडान के हालात को अपनी फोटो में दर्शाने का जोखिम भरा काम किया है.
जलने की पीड़ा
ऐडम अब्देल नामका 7 साल का यह बच्चा सूडानी सरकार के हवाई हमले में बुरी तरह जल गया. तब वह दारफूर के अपने घर में अपने परिवार के साथ ही था. राष्ट्रपति ओमार बशीर ने विद्रोही सेनाओं को कुचलने के लिए युद्ध छेड़ रखा है, जिसमें अब तक करीब 5 लाख लोग मारे जा चुके हैं और 30 लाख से अधिक अपने ही देश में बेघर हो गए हैं.
गुफाओं में रहने को मजबूर
2015 में सूडानी सरकार ने दारफूर के सारोंग इलाके में हमले किए थे, जिसके बाद से सैकड़ों महिलाएं और बच्चे गुफाओं में रहने को मजबूर हैं. दक्षिण सूडान की जातीय हिंसा में अब तक लाखों लोग मारे जा चुके हैं. इन जातीय हिंसाओं ने जुलाई 2011 में सूडान से अलग होकर नया देश बने दक्षिण सूडान के भविष्य पर भी सवाल खड़े कर दिये हैं.
एक ही मकसद
विद्रोही सूडान लिबरेशन आर्मी (एसएलए) अब दो-फांक हो चुकी है. दो मुखिया अब्दुल वाहिद अल-नूर और मिन्नी मिन्नावी अपने अपने दांव चला रहे हैं. इसके अलावा एसएलए के ही तीन और स्प्लिंटर समूह भी हैं, जो अपना अपना अजेंडा चला रहे हैं. दिसंबर 2013 में राजधानी जूबा में शुरू हुई हिंसा का कारण राष्ट्रपति सल्वा कीर और पूर्व उप राष्ट्रपति रीक मशार के बीच सत्ता संघर्ष रहा.
चट्टानों का आसरा
दारफूर के पहाड़ी इलाकों में चट्टानों के पीछे खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करते लोग. पेट्रोलियम खनिजों की बहुतायत वाले दक्षिण सूडान की अर्थव्यवस्था हिंसा के लगातार जारी होने के कारण काफी चरमरा गई है. 22 साल लंबे गृहयुद्ध के दौरान वहां 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे. दक्षिण सूडान आज भी जातीय पहचान को लेकर बेहद संवेदनशील है.