केरल और बंगाल में हड़ताल का व्यापक असर
७ सितम्बर २०१०महंगाई, श्रम कानूनों का उल्लंघन और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश के खिलाफ हो रही इस हड़ताल में एआईटीयूसी, सीटू, एचएमएस, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एआईसीसीटीयू और मजदूर व कर्मचारियों के कई और संघ भी हिस्सा ले रहे हैं. सीपीआई सांसद और एआईटीयूसी के महासचिव गुरुदास दासगुप्ता ने बताया कि इससे पहले ट्रेड यूनियनों ने एक पांच-सूत्री घोषणापत्र तैयार किया जिसमें सरकार से महंगाई रोकने के लिए कदम उठाने को कहा गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ.
उन्होंने कहा, "ट्रेड यूनियनें सरकारी क्षेत्र के विनिवेश के खिलाफ आंदोलन करती रही हैं. वे इसलिए भी नाराज है क्योंकि श्रम कानूनों का उल्लंघन हो रहा है." ट्रेड यूनियनें असंगठित क्षेत्र की सामाजिक सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की मांग कर रही हैं. दासगुप्ता ने बताया, "हम देश में नौकरियां कम होने और उन्हें कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरियों में तबदील करने का विरोध कर रहे हैं."
दासगुप्ता ने कहा सिर्फ हड़ताल "अंतिम बात" नहीं है. अगर स्थिति में सुधार नहीं आया तो कर्मचारी अगले साल फरवरी में संसद तक मार्च करेंगे. उनके मुताबिक, "ट्रेड यूनियनों को हाशिए पर नहीं डाला जा सकता. उनकी आवाज सुननी होगी. हम सामाजिक न्याय और जो दौलत मजदूर पैदा कर रहे हैं, उसमें एक हिस्सा चाहते हैं. बस इतनी सी बात है."
बीजेपी से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) इस हड़ताल में शामिल नहीं है. संघ की दिल्ली इकाई की उपाध्यक्ष किरन दत्ता का कहना है, "यह हड़ताल राजनीति से प्रेरित है. यह मजदूरों के कल्याण के लिए नहीं है. इसलिए बीएमएस इसमें हिस्सा नहीं ले रहा है."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः महेश झा