लाइब्रेरी को चुकाने पड़ गए 2250 यूरो
१ नवम्बर २०१८एक अच्छे पुस्तकालय के बिना कॉलेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई की कल्पना करना ही मुश्किल है. यहीं पर ऐसी दुर्लभ किताबें मिलती हैं जिन तक आम तौर पर छात्रों और शिक्षकों का पहुंचना मुश्किल होता है. भारत में स्टूडेंट अकसर किताब को लाइब्रेरी से ले कर उसकी कॉपी करा लेते हैं और फिर किताब लौटा देते हैं. लेकिन जर्मनी में ऐसा करना मुमकिन नहीं है. कॉपीराइट कानून के तहत कई तरह के नियम हैं. मिसाल के तौर पर आप किसी किताब के 20 पन्नों से ज्यादा की फोटोकॉपी नहीं कर सकते. अगर आपके पास इस ज्यादा फोटोकॉपी किए हुए पन्ने मिले, तो आप पर जुर्माना लग सकता है. लेकिन अगर किताब कुछ सालों से प्रकाशित ही ना हो रही हो, तो ऐसे में उसकी कॉपी बनाने की इजाजत है.
ऐसे में लोग अकसर लाइब्रेरी से किताब ले कर लंबे समय तक उसे लौटाते ही नहीं हैं, खास कर शिक्षक. जर्मनी के क्रेफेल्ड शहर की एक साइकॉलोजी की प्रोफेसर ने भी ऐसा ही किया. प्रोफेसर जीना केजटेले ने 2015 के समर सेमेस्टर में यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से 50 किताबें लीं थीं. नियम के अनुसार जुलाई तक इन किताबों को लौटाना था. लेकिन प्रोफेसर सितंबर में लाइब्रेरी पहुंचीं. इस पर उन्हें 2250 यूरो का बिल थमा दिया गया. लाइब्रेरी के नियम के अनुसार देर से किताब लौटाने पर प्रति दिन हर किताब पर दो यूरो का जुर्माना लगता है. बाद में इसे बढ़ा कर पांच यूरो कर दिया जाता है और 30 दिन तक भी किताब ना लौटाने की स्थिति में प्रतिदिन 20 यूरो का जुर्माना गिना जाता है. इस तरह से अधिकतर जुर्माना 25 यूरो प्रति दिन का होता है.
प्रोफेसर ने इतना बड़ा जुर्माना देने से इनकार किया और मामले को अदालत में ले गईं. उन्होंने कहा कि शिक्षकों के प्रति लाइब्रेरी का यह रवैया सही नहीं है और इतना बड़ा जुर्माना बेतुका है. प्रोफेसर के वकील ने यह दलील भी दी कि वे शहर से बाहर थीं और ऐसे में उन्हें लाइब्रेरी के नोटिस मिले ही नहीं. लेकिन जज पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि इस तरह का जुर्माना बेहद जरूरी है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि किताबें समय रहते लौट आएं और बाकी के लोग भी उनका इस्तेमाल कर सकें.
आईबी/एके (डीपीए, एएफपी)
जर्मन बच्चे कितने पढ़ाकू, कितने बिंदास