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समाज

कहां नहीं हैं बच्चियों पर झपटते दरिंदे

शिवप्रसाद जोशी
२७ अगस्त २०१८

'देवभूमि' के रूप में प्रचारित उत्तराखंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. इन अपराधों के साथ साथ दूसरा चिंताजनक पहलू पहाड़ी बनाम मैदानी का भी उभर रहा है. पुलिस की सूझबूझ से उत्तरकाशी में एक बड़ा मामला टल सका.

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Symbolbild Kindesmisshandlung Bestrafung
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Pleul

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक 12 साल की लड़की से बलात्कार और हत्या के मामले पर पुलिस तहकीकात जारी है. मृतका की बड़ी बहन के बयान के हवाले से पुलिस ने टिहरी जिले के एक आदमी को हिरासत में लिया है. बताया जाता है कि खच्चर चलाने वाला ये आदमी अकसर लड़की के घर आया जाया करता था और शराबी था. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बड़ी बहन ने बताया कि वो उस पर शादी करने का दबाव बना रहा था. डराने धमकाने से तंग आकर वो अपने रिश्तेदारों के पास चली गई तो शराब के नशे में उसने छोटी बहन को उठा लिया.

इससे पहले, लड़की की लाश मिलने के बाद करीब दो दिन तक स्थानीय लोगों ने जमकर प्रदर्शन किया और इलाके में बाहर से आए मजदूरों और फल सब्जी विक्रेताओं को अपने गुस्से का निशाना बना दिया. मारपीट के अलावा तोड़फोड़ की सूचनाएं भी मिली है. बताया जाता है कि पुलिस को लोकल इंटेलिजेंस से ये सूचना मिली थी कि मामले को सांप्रदायिक रंग या पहाड़ी बनाम मैदानी का रंग भी दिया जा सकता है. पुलिस समय पर मुस्तैद हुई और मामले को उग्र नहीं होने दिया.

इलाके में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं और अफवाहों के लिए कड़ी हिदायत भी दी गई. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी संजय गुंज्याल की ओर से स्थानीय प्रदर्शनकारियों को भरोसा दिलाते हुए अभियुक्त को फौरन पकड़ने का आश्वासन दिया गया. इस बीच मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार को लड़की के परिवार की सुरक्षा करने और अपराधियों का जल्द से जल्द पता लगाने को कहा है. गढ़वाल के कई हिस्सों में घटना के विरोध में प्रदर्शन जारी हैं और पुलिस से गहन जांच की मांग की जा रही है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ो के मुताबिक उत्तराखंड में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी देखी गई है. 2015 में जहां महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर 28.2 थी, वहीं 2016 में ये बढ़कर 30.6 पर पहुंच गई. 2016 में उत्तराखंड के पुलिस स्टेशनों में 1588 मामले दर्ज किए गए. 2015 में 1465 मामले सामने आए थे. ज्यादातर अपराध घरेलू हिंसा, दहेज, अपहरण, यौन उत्पीड़न और बलात्कार से जुड़े थे.

11 हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड की स्थिति फिर भी हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर से बेहतर बताई गई है. उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल राज्य के 13 जिलों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर काबू पाने के लिए विशेष पुलिस यूनिटों के गठन का फैसला किया था. लेकिन महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाए जाने की भी जरूरत है.

एक आंकड़े के मुताबिक नौ हजार से ज्यादा पुरुष पुलिसकर्मियों के सापेक्ष सिर्फ हजार से कुछ ज्यादा महिला पुलिसकर्मी उत्तराखंड में हैं. जाहिर है कॉन्स्टेबल और महिला सबइंस्पेक्टर के पदों पर महिलाओं की ज्यादा से ज्यादा नियुक्ति की जरूरत है. आला पदों पर भी महिला पुलिस की संख्या भी नगण्य ही है. जेंडर संवेदनशीलता और जेंडर इक्वॉलिटी के विमर्शों के दौर में इस ओर अधिक तत्परता से ध्यान दिया जाना चाहिए.

बलात्कार जैसी जघन्यता को क्षेत्रीय या सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी दुर्भाग्यपूर्ण है. इससे सामाजिक तानाबाना तो कमजोर पड़ता ही है, शांति और भाईचारा भी प्रभावित होता है. जानकारों का कहना है कि अगर एक दूसरे पर संदेह करने और पड़ोसी को संदिग्ध मानने की मनोवृत्ति पनपेगी, तो समाज के रूप में ये बिखराव ही होगा.

ये भी महत्त्वपूर्ण है कि बेरोजगारी, संसाधन विहीनता और बांधों और अन्य बड़े निर्माणों की वजह से देश में तीव्र आंतरिक माइग्रेशन, विस्थापन या अंतरराज्यीय पलायन होता रहा है. ऐसे में एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले कामगारों के प्रति दुराव या वैमनस्य रखना भी न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता. क्योंकि फिर किसी भी राज्य के राजनीतिक अवसरवादी, अन्य राज्य के मूल निवासी को अपने यहां से खदेड़ने की मुहिम छेड़ बैठेगें. कुछ लोग सिर्फ भावनावश ये काम करेंगे तो अनेकता में एकता का भारतीय दर्शन भी कहां रह जाएगा. संविधान की अवहेलना जो होगी सो अलग.

पिछले दिनों दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों और दिल्ली आदि जगहों पर देखा जा चुका है कि पूर्वोत्तर के छात्रों के साथ किस तरह का व्यवहार हुआ था. महाराष्ट्र में भी बाहरी कामगारों को लेकर मुखर राजनीति होती रही है. ये भी सही है कि राज्य सरकारों को अपने यहां रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं इतनी दुरुस्त करनी चाहिए ताकि आम लोगों को इधर से उधर भटकते न रहना पड़े. 

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