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कसाब की अपील और फांसी का विवाद

२९ जुलाई २०११

मुंबई के आतंकवादी हमले के प्रमुख आरोपी अजमल आमिर कसाब ने भारत की सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा माफ करने की अपील की है. बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ कसाब की अपील ने एक बार फिर फांसी की सजा पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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तस्वीर: AP

मुंबई की आर्थर रोड जेल के अधिकारियों का कहना है कि कसाब ने जेल अधिकारियों की मदद से अपनी अपील दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाई है. महाराष्ट्र के सरकारी वकील उज्ज्वल निकम का कहना है, "उसने अपनी अपील का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट भेज दिया है." भारत में पिछले कई सालों से किसी को फांसी नहीं दी गई है.

कसाब को नवंबर, 2008 में मुंबई के आतंकवादी हमले का दोषी करार दिया जा चुका है. पाकिस्तानी नागरिक 23 साल के कसब को पिछले साल मुंबई की एक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है, जिसके बाद इस साल बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे मंजूर कर दिया है. 26/11 के आतंकवादी हमले में कम से कम 166 लोग मारे गए थे और इससे कहीं ज्यादा घायल हो गए थे. लगभग तीन दिनों तक चले इस हमले को भारत का सबसे खतरनाक आतंकवादी हमला माना जाता है.

Flash-Galerie Anschläge Mumbai Indien 2008
तस्वीर: AP

भारत में फांसी

भारत में फांसी की सजा कानूनी है लेकिन आम नहीं है. वहां फंदे पर लटका कर मौत की सजा दी जाती है. दूसरे देशों में जहरीली सुई, गोली मार कर और बिजली की कुर्सी पर बिठा कर भी मौत की सजा दी जाती है. भारत की सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में अपने एक फैसले में कहा था कि सिर्फ दुर्लभों में दुर्लभ (रेयरेस्ट ऑफ रेयर) मामलों में ही फांसी की सजा दी जा सकती है. हत्या, हत्या के साथ की गई डकैती, बच्चे को खुदकुशी के लिए उकसाने, राष्ट्र के खिलाफ युद्ध भड़काने और सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा विद्रोह करने की स्थिति में भारत में फांसी दी जा सकती है. 1989 में इस नियम को बदला गया और इसमें नशीली दवाइयों का कारोबार करने वालों के लिए भी फांसी की सजा तय कर दी गई.

हाल के साल में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने वाले व्यक्तियों को भी फांसी की सजा देने का फैसला किया गया है. भारत में हाल के सालों में इज्जत के नाम पर हत्या के मामले भी ज्यादा संख्या में सामने आए हैं और तय किया गया है कि ऐसी हत्या के जिम्मेदार लोगों को भी फांसी दी जा सकती है.

बहुत कम हुई फांसी

भारत में पिछले 16 साल में सिर्फ एक बार किसी को फांसी दी गई है, जब पश्चिम बंगाल के धनंजय चटर्जी को 2004 में फांसी पर लटकाया गया. 25 साल की उम्र में चटर्जी ने 14 साल की हेतल पारेख नाम की किशोरी के साथ बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी थी. कोलकाता की जेल में फांसी के वक्त चटर्जी की उम्र 41 साल थी और उस समय राष्ट्रीय स्तर पर फांसी की सजा को लेकर काफी विवाद हुआ था. भारत में मानवाधिकार संस्थाएं फांसी की सजा के खिलाफ हैं. चटर्जी से पहले 1995 में सीरियल किलर ऑटो शंकर को सेलम में फांसी दी गई थी.

Flash-Galerie Anschläge Mumbai Indien 2008 Ajmal Kasab
तस्वीर: AP

लटकी हुई फांसी

भारत में निचली अदालतों में फांसी की सजा मिलने के बाद सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट भी अगर फांसी की सजा पर मुहर लगा दे तो फिर राष्ट्रपति से दया की अपील की जा सकती है. अगर राष्ट्रपति भी इस अपील को खारिज कर दे तो फांसी दे दी जाती है. इस वक्त भारत की अलग अलग अदालतों ने सैकड़ों लोगों को फांसी सुना रखी है और राष्ट्रपति के सामने 29 दया याचिकाएं लंबित हैं.

इनमें सबसे प्रमुख 2001 के संसद हमलों के आरोपी अफजल गुरु की याचिका है. अलग अलग अदालतों में फांसी की सजा होने के बाद अफजल गुरु को 20 अक्तूबर 2006 को फांसी दी जानी थी. लेकिन ऐन मौके पर इसे टाल दिया गया. अरुंधति रॉय जैसी कई कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि गुरु की फांसी को माफ कर दिया जाना चाहिए.

जल्लादों की कमी

पहले भारतीय जेलों में जल्लादों की खास पोस्ट होती थी क्योंकि उस वक्त फांसी की संख्या भी ज्यादा होती थी. लेकिन हाल के दिनों में भारत में फांसी देने वाले जल्लादों की संख्या बहुत कम हो गई है. पुराने जल्लाद या तो रिटायर हो गए हैं या फिर उनकी मौत हो चुकी है. ऐसे में फांसी की किसी नई सजा को पूरा करने के लिए जल्लाद को खोज निकालना भी बड़ी जहमत का काम है.

ऐमनेस्टी इंटरनेशल के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2007 में 100, 2006 में 40, 2005 में 77, 2002 में 23 और 2001 में 33 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन इसे अमल में नहीं लाया गया.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः ईशा भाटिया

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