कब समझेंगे कि लड़की को पढ़ाने से क्या होगा
२५ जुलाई २०१७जी20 जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में बेहतर भविष्य के लिए लक्ष्य तय किये जाते हैं. नेता, विशेषज्ञ, कार्यकर्ता जुटते हैं और विश्व के सामने खड़ी कुछ वर्तमान चुनौतियों पर चर्चा करते हैं. अशिक्षा, लिंग भेद, वर्कफोर्स में कुशल लोगों की कमी, तकनीक और आईटी विकास की सीमित पहुंच ऐसी ही चुनौतियां हैं.
ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को शिक्षित बनाना, वर्कफोर्स में शामिल करना और अपने अपने क्षेत्र में आने वाले कल की लीडर के रूप विकसित करने के विचार पर कमोबेश सभी की सहमति भी है. फिर वो क्या बात है जिसके कारण इन नेक इरादों को अमली जामा पहनाना इतने सालों से एक असंभव सा लक्ष्य बना हुआ है. कारण यह कि आज भी जमीनी स्तर पर सभी लोग लड़कियों की शिक्षा के असल मायने और उसके फायदे नहीं समझ सके हैं और इसीलिए इसे इतना महत्व नहीं देते.
यह बात इतनी सीधी है भी नहीं कि खुद ब खुद समझ आ जाये. और यहीं पर केंद्र और राज्य की सरकारों, सरकारी और निजी संस्थानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और जागरुक नागरिकों की भूमिका अहम हो जाती है. सवाल उठना वाजिब है कि जब शिक्षा सबके ही लिये अहम है तो खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा पर जोर क्यों हो? आखिर एक लड़की को शिक्षित बनाने और लड़के को शिक्षित बनाने में अंतर कहां आता है? आइए इन सवालों की पड़ताल करते हैं.
यह तो साफ है कि जब किसी लड़की को पढ़ाई पूरी करने का मौका मिलता है तो इससे उसके व्यक्तिगत जीवन में कई फायदे मिलते हैं. आत्मविश्वास, नौकरी, आर्थिक आत्मनिर्भरता और परिवार में आर्थिक समृद्धि लाने जैसे ये फायदे तो लड़के-लड़कियों दोनों ही के लिए समान हैं. लेकिन अब इन तथ्यों पर ध्यान दीजिये जो शिक्षित लड़की के लिए लड़कों से अलग हैं. जैसे कि उच्च शिक्षा पाने वाली लड़कियां देर से शादी करती हैं, परिवार छोटा रखती हैं, बच्चे को जन्म देते समय ऐसी मांओं की जान जाने की संभावना कम होती है और इनके बच्चों के जीवित बचने की संभावना ज्यादा. पढ़ी लिखी महिलाओं में एचआईवी/एड्स जैसे संक्रमण भी कम होते हैं.
फायदों की सूची अभी यहां खत्म नहीं होती है. असल में लड़कियों को मिली शिक्षा का असर उनके व्यक्तिगत स्तर तक ही नहीं रहता बल्कि एक तरह से पूरे समाज पर असर डालता है. विकासशील देशों में शिक्षा और गरीबी के बीच संबंध की तलाश करते हुए अपनी एक स्टडी में अमेरिकी संस्थान ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट ने पाया कि विश्व के 65 ऐसे मध्यम और कम आय वाले देश सालाना करीब 92 अरब डॉलर केवल इसलिए गंवा रहे हैं क्योंकि वे अपनी लड़कियों को लड़कों के बराबर शिक्षा नहीं देते. इसी संस्था का अनुमान है कि अगर गरीब देश अपनी लड़कियों को लड़कों जितनी भी स्कूली शिक्षा देने लगें, तो केवल इसी कदम से विश्व की 12 फीसदी गरीबी कम हो जाएगी.
बीते दशकों और हाल के सालों में प्राइमरी शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में आज भी सभी लड़कियों को सेकेंडरी स्तर तक की शिक्षा देना संभव नहीं हो सका है. भारत की 60 फीसदी से कम लड़कियां सेकेंडरी स्कूलों में दाखिला लेती हैं और इनमें से बहुत कम इस शिक्षा को पूरा कर पाती हैं. शिक्षा का यह स्तर प्राइमरी शिक्षा से महंगा भी पड़ता है.
सरकारें चाहें तो इस समस्या को मोबाइल फोन, इंटरनेट और दूसरी स्मार्ट तकनीकों में निवेश कर हल कर सकती हैं. इससे ना केवल शिक्षकों और स्टूडेंट्स के लिए पढ़ने और पढ़ाने को रोचक बनाया जा सकता है बल्कि शिक्षा के स्तर में मौजूद वर्तमान अंतर को तेजी से पाटा भी जा सकता है. वो ऐसे कि शिक्षा में आईटी के विस्तार से उन लड़कियों को भी फायदा मिल सकता है, जो अपने आसपास अच्छे स्कूल, कालेज ना होने के कारण पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाती हैं. गांव में अच्छा स्कूल ना होने पर लड़कों को तो कहीं और पढ़ने भेज दिया जाता है लेकिन कई लड़कियों की शिक्षा इसी कारण रोक दी जाती है.
शिक्षा को लेकर जागरुकता बढ़ने और इसमें निवेश किये जाने से हालात जरूर सुधरेंगे. लेकिन साथ ही जरूरत होगी शिक्षा के नये तरीकों और नये नये उपायों की. भारत जैसे देश में सबका विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक इसका नेतृत्व शिक्षित महिलाएं ना कर रही हों. लड़कियों की शिक्षा से ना केवल उनका खुद का, उसके परिवार का, उनके समाज का बल्कि सीधे सीधे देश का आर्थिक विकास भी जुड़ा हुआ है. इधर समाज में शिक्षित लड़कियों की संख्या बढ़ेगी और उधर अपने आप कई नकारात्मक सामाजिक मानदंडों की बेड़ियां टूटेंगी. इससे दिन प्रतिदिन वैश्विक और आर्थिक मोर्चे पर प्रगति करते भारत का दुनिया में मान और बढ़ेगा और अपनी ही बहू-बेटियों से भेदभाव करने के लिए बदनाम भारतीय समाज के चेहरे से लैंगिक भेदभाव का कालिख भी मिटता चला जाएगा.