कथक सम्राट बिरजू महाराज नहीं रहे
१७ जनवरी २०२२बिरजू महाराज का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ. वह 83 साल के थे. बिरजू महाराज कथक नृत्य परंपरा से जुड़े प्रख्यात लखनऊ घराना से ताल्लुक रखते थे. उनके दादा, पिता, चाचा सभी मशहूर कथक नर्तक रहे थे. लखनऊ घराना के कथक नर्तक नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से शुरू हुई कथक परंपरा की विरासत से जुड़े थे.
बिरजू महाराज लखनऊ के प्रख्यात कालका-बिंदादीन घराने में पैदा हुए थे. उनका पूरा नाम था, बृजमोहन नाथ मिश्रा. प्यार से पुकारने का नाम था बिरजू. आगे चलकर वह इसी नाम से जाने गए. उनके दादा कालिका प्रसाद मशहूर कथक नर्तक थे.दादा के भाई बिंदादीन भी कथक नर्तक थे. कालिका और बिंदादीन के ही नाम पर लखनऊ का यह घराना शुरू हुआ था. पिता जगन्नाथ महाराज, जिनका लोकप्रिय नाम अच्चन महाराज था, वह भी दरबार में कथक नर्तक थे. बिरजू महाराज को अपने पिता और चाचाओं से नृत्य की तालीम मिली. 7 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति दी थी.
नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से संबंध
कथक में नर्तक अपनी भाव-भंगिमा को कथानक प्रस्तुत करने का जरिया बनाता है. उसके शरीर के अलग-अलग हिस्से, मसलन- हाथ, उंगलियां, चेहरा, भवें, पांव की थिरकन, कमर की लचक, कलाइयों की गति...ये सभी एक लयबद्ध तरीके से भाव की अभिव्यक्ति का माध्यम बनते हैं. माना जाता है कि कथक शैली की शुरुआत मंदिरों के भीतर हुई. वहां महाभारत और रामायण जैसी प्राचीन भारतीय ग्रंथों से जुड़ी कथाओं को काव्यात्मक तरीके से पेश किया जाता था. आगे चलकर यह मंदिरों से बाहर निकली और राज दरबारों का प्रश्रय पाने लगी.
कथक को आगे बढ़ाने में लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह का भी योगदान है. वाजिद अली शाह खुद भी कलाकार थे. कविताएं लिखते थे. नृत्य भी करते थे. उनके संरक्षण में कथक का लखनऊ घराना विकसित हुआ. लखनऊ परंपरा के कथक नर्तक, जिनमें खुद बिरजू महाराज भी शामिल थे, खुद को नवाब वाजिद अली शाह के दरबार से शुरू हुई इसी कथक परंपरा की विरासत से जोड़ते थे. सत्यजीत रे ने 1977 में 'शतरंज के खिलाड़ी' फिल्म बनाई थी. इसमें नवाब वाजिद अली शाह से जुड़ी कहानी भी है. इसमें बिरजू महाराज ने कोरियोग्रफी की थी.
देश भर में शोक
बिरजू महाराज ना केवल खुद एक निपुण नर्तक थे, बल्कि वह कथक के बेहद सम्मानित गुरु भी थे. वह भारत के कई बड़े नृत्य संस्थानों में बच्चों को कथक सिखाते थे. 90 के दशक में उन्होंने दिल्ली में अपना नृत्य स्कूल 'कलाश्रम' शुरू किया. उन्बें तबला और नाल बजाने का भी बहुत शौक था. कई तरह के वाद्य यंत्रों में उनकी निपुणता थी.
इसके अलावा वह खुद भी बहुत अच्छे गायक थे. ठुमरी, दादरा और भजन गाया करते थे. 'शतरंज के खिलाड़ी' में फिल्माया गया गीत 'कान्हा मैं तोसे हारी' भी बिरजू महाराज ने गाया था. दिलचस्प यह है कि इस भैरवी को लिखा था, बिंदादीन महाराज ने. जो रिश्ते में बिरजू महाराज के दादा कालिका प्रसाद के सगे भाई थे. बिंदादीन महाराज ने ही बिरजू महाराज के पिता अच्चन महाराज को कला की तालीम दी थी. इस फिल्म में नवाब वाजिद अली शाह के दरबार को दिखाया गया था. बिरजू महाराज के पूर्वज खुद भी कभी इस दरबार का हिस्सा रह चुके थे.
बिरजू महाराज के निधन पर कई बड़ी हस्तियों ने शोक जताया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्वीट करके लिखा कि बिरजू महाराज के निधन से वह बेहद दुखी हैं. नरेंद्र मोदी ने यह भी लिखा कि बिरजू महाराज की मौत पूरे कला संसार के लिए ऐसी क्षति है, जिसकी कोई भरपाई नहीं हो सकती है.
एसएम/एनआर(एपी)