कछुए का जादुई कम्पास
अंडे देने के लिए समुद्री कछुए आखिर इतनी दूर से उसी तट पर कैसे पहुंच जाते हैं, जहां वे खुद जन्मे थे? वैज्ञानिक बताते हैं कि वे धरती के चुंबकीय क्षेत्र के हिसाब से खुद दिशा का अंदाजा लगाते हैं.
शरीर में कम्पास
लॉगरहेड कछुए धरती के चुंबकीय क्षेत्र को अपने कम्पास या दिशा सूचक की तरह इस्तेमाल करते हैं. वे अपने घर के रास्ते का चुंबकीय पैटर्न याद कर लेते हैं. 'करेंट बायोलॉजी' में छपी एक स्टडी में बताया गया है कि कछुए इसी तरह उस समुद्र तट का रास्ता याद रखते हैं जहां उन्होंने आंखें खोली थीं.
चुंबकीय इशारे समझना
कछुओं में खास चुंबकीय सेंस होने के कारण ही वे करीब 12 साल बाद भी अपने घर का रास्ता नहीं भूलते. कई हजार किलोमीटर की दूरी तय कर वे अपने तट पर पहुंचते हैं. हर जगह की चुंबकीय स्थिति और पैटर्न अलग होते हैं.
केवल कछुए ही नहीं
कबूतर, कई प्रवासी पक्षी, केकड़े, कुत्ते और गायों जैसे कई जानवरों में ऐसे पैटर्न याद रखने की क्षमता होती है. चुंबकीय क्षेत्र के ही हिसाब से कोई गाय हमेशा एक ही दिशा में खड़ी होकर चरती है.
सबसे कठिन परीक्षा
क्या हो अगर किसी जगह का चुंबकीय क्षेत्र थोड़ा बदल जाए? नॉर्थ कैरोलाइना यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पता किया है कि ऐसे बदलावों होने पर कछुओं के अंडे देने की जगह भी उसी हिसाब से बदल जाती है.
सुरक्षित ठिकाने की तलाश
इस स्टडी में यह पता नहीं चलता कि कछुए बिल्कुल अपने जन्म की जगह पर ही अंडे देते हैं. इसके लिए वह तापमान, बालू की गुणवत्ता और तट से दूरी जैसी बातों का भी ध्यान रखते हैं.
हमारे लिए अदृश्य
धरती की चुंबकीय रेखाएं उसके केन्द्र में स्थित मिश्रधातुओं की विद्युतीय तरंगों के कारण पैदा होती हैं. इंसान में इस चुंबकीय क्षेत्र को महसूस करने का गुण नहीं होता. 2014 से शुरू हुए यूरोपीय स्पेस एजेंसी के स्वॉर्म मिशन से धरती के चुंबकीय क्षेत्र को दिखाने वाली अभूतपूर्व स्पष्टता वाली तस्वीरें मिलने लगी हैं.