ओबामा का सार और संकेत वाला दौरा
२६ जनवरी २०१५एक साल पहले तक भारत का शासन एक उम्रदराज और नामी प्रधानमंत्री के नेतृत्व में थकी हुई कांग्रेस पार्टी कर रही थी. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अपने प्रांत गुजरात की सफलताओं की सीढ़ी पर चुनावों में अपनी विपक्षी बीजेपी का नेतृत्व करने की योजना बना रहे थे. लेकिन मोदी को 2002 की सांप्रादायिक हिंसा के कारण, जिसमें 1000 से ज्यादा लोग मारे गए थे, घर और बाहर दरकिनार कर दिया गया था और 2005 से अमेरिका उन्हें वीजा देने से भी इंकार कर रहा था. आज चुनावी जीत के बस नौ महीने बाद मोदी उसी अमेरिका के राष्ट्रपति की मेजबानी कर रहे हैं. अपने दूसरे भारतीय दौरे पर आए बराक ओबामा गणतंत्र दिवस के समारोह में भाग लेने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हैं. पिछले चार महीनों में यह उनकी मोदी के साथ तीसरी मुलाकात है. ओबामा का उनके नए साथी ने चाय पर चर्चा से पहले फोटोग्राफरों की लेंस के सामने गले लगाकर स्वागत किया. वे असंभव पार्टनर हैं, हार्डलाइन हिंदू राष्ट्रवादी और डेमोक्रैटिक राष्ट्रपति. लेकिन मोदी ने हर मौके का इस्तेमाल ओबामा के साथ अपनी दोस्ती दिखाने के लिए किया है. इसलिए समीक्षक सवाल पूछ रहे हैं कि मोदी के मन में सिर्फ संकेत देना था या उसमें कोई सार भी है.
जवाब दोनों है. मई 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी ने भारत को आधुनिकता के रास्ते पर डालने के लिए बहुत मेहनत की है. कुछ पड़ोसी देशों और जापान की यात्रा के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका का सफल दौरा किया. मोदी की कूटनीति का लक्ष्य सिर्फ यह प्रदर्शन करना नहीं है कि वह दक्षिण एशिया में नेतृत्व करना चाहते हैं बल्कि वे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के चोटी की मोज पर भी भारत की जगह सुनिश्चित करना चाहते हैं और विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहते हैं. मेक इन इंडिया लाखों युवा भारतीयों को रोजगार दिलवाने का मुख्य नारा बन गया है. भारत और अमेरिका के बीच इस समय 100 अरब डॉलर का कारोबार हो रहा है, दस साल पहले के मुकाबले पांच गुना. मोदी इसे 2025 तक दोगुना करना चाहते हैं. इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री का मानना है कि अमेरिका के नजदीक जाना भारत के लिए फायदेमंद रहेगा. लेकिन यह भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान के अमेरिका विरोधी विचार से मेल नहीं खाता जो हर उस इलाके में भारत की आजादी का प्रदर्शन करना चाहता है जहां उसे अमेरिका के समर्थन की जरूरत नहीं है. मोदी की कामयाबी घरेलू लड़ाई जीतने और राजनीतिक नेतृत्व को भरोसा दिलाने में है कि निकट संबंधों से दुनिया के दोनों बड़े लोकतंत्रों को फायदा होगा.
इस हिसाब से फोटो खिंचवाने के मौके और दौरे के मुद्दे एक ही भाषा बोलते हैं. ओबामा का ऐसा स्वागत किया गया जैसा पहले किसी राष्ट्रपति का नहीं हुआ. इस दौरे पर दोनों देशों ने महत्वपूर्ण समझौते किए हैं, जिनमें चीन की चुनौती का सामना करने के लिए रक्षा समझौता भी है. दोनों पक्षों ने असैनिक परमाणु समझौते पर गतिरोध को दूर करने में भी कामयाबी हासिल की है. साथ ही ओबामा ने भारत द्वारा खरीदे गए परमाणु सामानों को मॉनीटर करने की अमेरिकी मांग भी त्याग दी है. भारत के लिए मोदी की महात्वाकांक्षा और वॉशिंगटन के साथ संबंधों ने अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों को बाधा नहीं बनने दिया. लेकिन एक मामले में मोदी ने अपनी सीमा का प्रदर्शन कर दिया है. रूस के साथ भारत के निकट संबंधों के मद्देनजर मोदी ने यूक्रेन में रूस के हस्तक्षेप की ओबामा की आलोचना पर कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.
इसके अलावा मोदी ने वह किया जो उनके पूर्वगामी नहीं कर पाए. वे अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ निजी रिश्ता बनाने में कामयाब रहे हैं. इसने 21वीं सदी के दूसरे उत्तरार्ध में भारत को महाशक्ति बनाने के मोदी के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम आगे ले जाने में मदद की है. गुजरात के भूतपूर्व अछूत अतीत को पीछे छोड़ और संभव को हासिल कर राजनेता बन गए हैं.
ब्लॉग: ग्रैहम लूकस