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समाज

ऑस्ट्रेलिया में लखनऊ कहां से आया?

विवेक कुमार
७ जुलाई २०२१

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी से करीब 235 किलोमीटर पश्चिम में एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम है लखनऊ. क्या भारत के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से इसका कोई रिश्ता है?

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तस्वीर: Vivek Kumar/DW

न्यू साउथ वेल्स में एक शहर है ऑरेंज. सिडनी से जाएं तो ऑरेंज से ठीक पहले एक गांव के बाहर लगा बोर्ड देखकर किसी भी भारतीय की निगाहें ठिठक सकती हैं. बोर्ड पर लिखा है, लखनऊ. ऑस्ट्रेलिया के इस दूर-दराज इलाके में लखनऊ कहां से आया, ठिठकी हुई निगाहों का यह सवाल जहन से पूछना लाजमी होता है.

इस सवाल का जवाब भारत और ऑस्ट्रेलिया के साझे इतिहास में छिपा है. आज ऑस्ट्रेलिया का यह लखनऊ सिर्फ तीन सौ लोगों का एक छोटा सा गांव है. लेकिन इसकी जड़ें महाद्वीप के उस वक्त में हैं, जिसे गोल्ड रश कहा जाता है, यानी वो दौर जब ऑस्ट्रेलिया में कई जगह सोने की खदानें मिली थीं और लोग सोना पाने को दौड़ पड़े थे. जिन जगहों पर सोने की खानें मिली थीं, न्यू साउथ वेल्स का लखनऊ भी उनमें से एक था.

मिट्टी ने उगला सोना

ऑरेंज के पास स्थित लखनऊ की उम्र 150 साल से कुछ ही ज्यादा है. 1850 के दशक में यहां सोने की खान मिली थी और दूर-दूर से लोग सोना खोजने इस जगह पर पहुंच गए थे, जो तब पत्रकार और खोजी विलियम चार्ल्स वेंटवर्थ की मिल्कीयत थी. ऑरेंज एंड डिस्ट्रिक्ट हिस्टोरिकल सोसायटी के मुताबिक 1852 में इस जमीन को वेंटवर्थ गोल्ड फील्ड कंपनी ने खरीदा था. यह ऑस्ट्रेलिया की संभवयता पहली गोल्ड माइनिंग कंपनी थी, जो 1860 तक काम करती रही.

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जहां कभी सोने की खान थी, वहां आज एक छोटा सा संग्रहालय हैतस्वीर: Vivek Kumar/DW

1860 में कंपनी खत्म हो गई. दो साल बाद खान और उसके आस-पास की जमीन को लीज पर दिया जाने लगा. तब सोना पाने की चाह में लगभग दो सौ लोग यहां बस चुके थे. यानी एक गांव बस गया था. उन लोगों को गांव में एक डाक खाने की जरूरत हुई. और डाक खाने के लिए गांव को नाम दिया जाना था. तब लोगों ने मिलकर एक याचिका तैयार की और उसमें नाम लिखा गया.

लखनऊ का नामकरण

इतिहासकार केरिन कुक ने अपनी किताब ‘लखनऊः अ वेरिटेबल गोल्डमाइन' में लिखा है कि इस जगह का नाम लखनऊ रखने के पीछे भारत के लखनऊ से इसका संपर्क भी हो सकता है. वह लिखती हैं,  "लखनऊ नाम कई वजहों से चुना गया होगा. तब दुनियाभर का अंग्रेजीभाषी जगत भारत के उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की घेराबंदी से हतप्रभ था, जो 1857 के सैन्य विद्रोह के दौरान हुआ था. शहर को भारतीयों ने घेर लिया था और लखनऊ के बाशिंदों को खाने-पीने की भी कमी हो गई थी. तब कई अत्याचार हुए थे. बच्चों और औरतों समेत कई ब्रिटिश कत्ल कर दिए गए थे."

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19वीं सदी के उत्तरार्ध में यह एक फलता फूलता कस्बा थातस्वीर: Vivek Kumar/DW

लखनऊ की घेराबंदी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की एक अहम घटना थी. करीब 90 दिन तक चली इस घेराबंदी के दौरान ढाई हजार से ज्यादा अंग्रेज घायल हुए थे या मारे गए थे. केरिन लिखती हैं कि लखनऊ की घेराबंदी के दौरान अंग्रेज और भारतीय सिपाहियों की लडाई में खदानों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. वे एक दूसरे की जमीनों के नीचे खदानें बनाकर उनमें विस्फोटकों से धमाका करते थे, जिससे जान और माल का बड़ा नुकसान होता था. कुक लिखती हैं, "वेंटवर्थ गोल्डफील्ड में सोने की खदान में खनन उसी तकनीक से होता था, जैसा लखनऊ में होता था."

कुछ कही सुनी बातें

ऑरेंज एंड डिस्ट्रिक्ट हिस्टोरिकल सोसायटी ने अपने शोध में पाया है कि लखनऊ के नामकरण से जुड़े सारे आधिकारिक दस्तावेज एक बाढ़ में नष्ट हो गए थे. लिहाजा लोगों के बीच कुछ किस्से बचे हैं, जो इस ऐतिहासिक नामकरण की कहानियां कहते हैं. उनमें से एक किस्सा है कि लखनऊ में डाक खाने की याचिका तब खनन कंपनी के क्लर्क रहे एक मिस्टर रे ने तैयार की थी, जो लखनऊ की घेराबंदी के दौरान घायल हुए थे और बाद में ऑस्ट्रेलिया आकर बस गए थे और उन्होंने ही इस जगह को लखनऊ नाम दिया.

ऑरेंज एंड डिस्ट्रिक्ट हिस्टोरिकल सोसायटी के फिलिप स्टीवेन्सन कहते हैं कि बहुत संभव है कि ऐसा हुआ हो. वह कहते हैं, "1863 में लखनऊ स्थापित हुआ था, यानी भारत में लखनऊ की घेराबंदी के सिर्फ छह साल बाद. और तब जिस तरह अंग्रेजी राज में लोग एक जगह से दूसरी जगह जाते थे, बहुत संभव है कि यहां भी बहुत से लोग भारत से आए हों."

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ऑस्ट्रेलिया के लखनऊ में पुराने सामान की एक दुकानतस्वीर: Vivek Kumar/DW

कुछ लोग कहते हैं कि यह लखनऊ नहीं दरअसल लक नाऊ (Luck Now) है क्योंकि जब यहां सोना मिला तो लोगों की किस्मत बदल गई. केरिन कुक भी अपनी किताब मानती हैं कि ऐसा हो सकता है. एक अनुमान के मुताबिक सोने की इस खान से 18 हजार किलो सोना निकाला गया था. जो सबसे बड़ा सोने का पत्थर मिला था, वह 76 किलो का था.

एक चमकते दमकते इतिहास की जमीन पर खड़ा यह गांव अब वक्त की धूल में ढका हुआ है. बामुश्किल तीन सौ लोगों के इस गांव में एक स्कूल तक नहीं है. लेकिन सौ साल से ज्यादा पुरानी कुछ इमारतें हैं, जो ऑस्ट्रेलिया को भारत से जोड़ती हैं.

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