1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

ऑर्डनेंस फैक्टरियों का कॉर्पोरेटाइजेशन क्यों?

प्रभाकर मणि तिवारी
१३ अक्टूबर २०२०

भारत में हथियार का निर्माण करने वाली सरकारी कंपनियों के निगमीकरण के विरोध में बीजेपी से लेकर साम्यवादी मजदूर संगठन साथ आ गए हैं. उन्होंने बेमियादी हड़ताल की धमकी तो फिलहाल वापस ले ली है लेकिन खतरा अभी टला नहीं है.

https://p.dw.com/p/3jqUq
Indien Sicherheitskräfte in Kashmir
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड (ओएफबी) की देश भर में फैली 41 इकाइयों के 70 हजार से ज्यादा कर्मचारियों ने 12 अक्टूबर से होने वाली अपनी बेमियादी हड़ताल तो केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के भरोसा दिलाने के बाद फिलहाल टाल दी है, लेकिन हथियार बनाने वाली सरकारी कंपनियों पर मंडराता खतरा अभी टला नहीं हैं. यहां बनने वाले रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं. सेना ने भी कथित घटिया उत्पादों के लिए ओएफबी को कठघरे में खड़ा किया है. उसके बाद केंद्र ने इसके कॉर्पोरेटाइजेशन यानी निगमीकरण की योजना का एलान किया था. इसके तहत ओएफबी की तमाम फैक्टरियों को अलग-अलग फैक्ट्री का दर्जा दिया जाना है. लेकिन इसके विरोध में तमाम कर्मचारी यूनियनें एकजुट हो गईं हैं. कर्मचारियों के लिए यह मुद्दा इतना अहम है कि सरकार के फैसले के विरोध में आरएसएस से संबद्ध मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संगठन (बीएमएस) भी लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस से जुड़े मजदूर संगठनों के साथ है.

सरकार के साथ टकराव

ओएफबी और केंद्र सरकार के बीच कॉर्पोरेटाइजेशन के सवाल पर टकराव कोई नया नहीं है. अंग्रेजों के समय में 200 साल पहले बनी ओएफबी का मुख्यालय कोलकाता में है. इसके तहत देश भर में 41 फैक्ट्रियां हैं और इनमें करीब 80 हजार कर्मचारी काम करते हैं. सरकार ने जुलाई 2020 में ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड को बदलकर रक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ ऑफिस बनाने का फैसला किया था. इसके मुताबिक कंपनी अधिनियम 2013 के तहत इसकी 100 प्रतिशत इकाई सरकार के पास जाने वाली थी. उसके बाद सरकार के फैसले के खिलाफ तीनों ट्रेड यूनियनों ने चार अगस्त 2020 को एक साझा नोटिस देकर 12 अक्टूबर से बेमियादी हड़ताल बुलाए जाने की बात कही.

ओएफबी से सेना को गोलाबारूद से लेकर वर्दी और जूते तक की सप्लाई की जाती है. धीरे-धीरे विभिन्न वजहों से इनकी क्वॉलिटी में गिरावट आई है. यहां बनने वाले उत्पादों की क्वॉलिटी पर लगातार उठ रहे सवालों की वजह से ही सरकार इनका कॉर्पोरेटाइजेशन करना चाहती है. इस बीच सेना और ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड के बीच जुबानी जंग भी शुरू हो गई है. सेना का आरोप है कि ऑर्डनेंस फैक्टरी बोर्ड ने खराब हथियार बनाए हैं जिसकी वजह से न सिर्फ सामान का नुकसान हुआ है बल्कि दुर्घटना में सैनिकों की जान भी जा रही है. लेकिन दूसरी ओर, ओएफबी का कहना है कि खराब रखरखाव की वजह से भी हादसे हो सकते हैं. इसके अलावा फायरिंग के गलत तरीके और हथियारों की डिजाइन में बदलाव भी इनकी वजह हो सकते हैं.

कॉर्पोरेटाइजेशन की बहस

टीकेए नायर कमिटी ने वर्ष 2000 में सबसे पहले ओएफबी के निगमीकरण का सुझाव दिया था. उसने कहा था कि इसका नाम ऑर्डनेंस फैक्टरी कॉरपोरेशन लिमिटेड किया जा सकता है. वर्ष 2004 में विजय केलकर कमिटी ने पाया कि ओएफबी की फैक्टरियों में उपलब्ध तकनीक पुरानी हो चुकी है और नई तकनीक तक इनकी पहुंच नहीं है. इस वजह से यह अपने मुख्य उपभोक्ता यानी सेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही हैं. इसलिए कमिटी ने सभी फैक्टरियों को एक ही निगम के तहत निगमित करने की सिफारिश की थी.

वर्ष 2015 में रमन पुरी कमिटी ने पाया कि ओएफबी के मौजूदा कामकाज को बदलना जरूरी है क्योंकि यह आधुनिक तरीकों के साथ सामंजस्य बिठाने में सक्षम नहीं है. इसलिए समिति ने ओएफबी को तीन या चार हिस्सों में विभाजित करने और इन्हें रक्षा मंत्रालय के सरकारी उपक्रम के रूप में बदलने करने की सिफारिश की. एक साल बाद यानी वर्ष 2016 में शेखतकर कमिटी ने भी रक्षा मंत्रालय और रक्षा बलों की व्यापक समीक्षा की और ओएफबी के निगमीकरण की सिफारिश की.

केंद्र सरकार ने ओएफबी के कॉर्पोरेटाइजेशन पर अपने फैसले के पक्ष में तीन प्रमुख दलीलें दी हैं. उसका कहना है कि ओएफबी के निगमीकरण से कामकाज और त्वरित फैसले लेने में अधिक स्वायत्तता के साथ बेहतर प्रबंधन की संभावना है. उससे बेहतर क्वॉलिटी वाले उत्पादों की समयबद्ध डिलीवरी सुनिश्चित की जा सकेगी. सरकार की दलील है कि कॉर्पोरेटाइजेशन के बाद ओएफबी उत्पादों की कीमतों के निर्धारण की प्रक्रिया सरल और बेहतर हो जाएगी. उससे वह निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा में टिका रह सकेगा. सरकार की दलील है कि नए फैसले को अमली जामा पहनाए जाने के बाद ओएफबी को धन के लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा क्योंकि यह अन्य माध्यमों से धन जुटाने में सक्षम होगा. यानी वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकेगा. वैसी स्थिति में उसे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने का रास्ता साफ हो जाएगा.

कर्मचारियों के विरोध की वजह

लेकिन ओएफबी के कर्मचारी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं. कर्मचारी संगठनों की दलील है कि इससे कई फैक्टरियां बंद हो जाएंगी और बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी होगी. एक कर्मचारी संगठन के प्रवक्ता नरेन दास कहते हैं, "रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए कई फैक्ट्रियां एक-दूसरे पर निर्भर हैं. सरकार की योजना के मुताबिक सबको अलग यूनिट बनाने की स्थिति में इनमें से कई बंद हो जाएंगी. रक्षा उपकरणों का हिस्सा कई अलग-अलग फैक्ट्रियों में बनाया जाता है. एक बंदूक के लिए स्टील कहीं और बनता है तो बैरल और दूसरे पुर्जे कहीं और बनाए जाते हैं.”

इन संगठनों की दलील है कि कई ऐसे उत्पाद भी हैं जिनको बनाने के लिए 10 से 20 फैक्टरियां आपसी तालमेल के साथ काम करती हैं. दास कहते हैं कि दुनिया में शायद ही किसी फैक्टरी में किसी उत्पाद के तमाम हिस्से बनाए जाते हैं. अलग-अलग यूनिट बनाने की स्थिति में कोई भी फैक्टरी चल नहीं सकेगी. इनकी संरचना पहले से ही ऐसी है. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बिना किसी ठोस योजना के अचानक तमाम फैक्टरियों को अलग यूनिट बनाने की स्थिति में उत्पादन तो प्रभावित होगा ही, बड़े पैमाने पर छंटनी का भी अंदेशा है. रक्षा विशेषज्ञ पीके गुहा कहते हैं, "कॉर्पोरेटाइजेशन से पहले ओएफबी में संरचनात्मक और संगठनात्मक बदलाव जरूरी हैं. पहले देश भर में फैली 42 फैक्टरियों को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है. उसके बिना जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी कदम आत्मघाती साबित हो सकता है.”

तमाम मजदूर संगठन एकजुट

सरकार की दलीलें कर्मचारी संगठनों के गले के नीचे नहीं उतर रही हैं. उन्हें इस बात का भी डर है कि हथियार बनाने वाली फैक्टरियों को पब्लिक सेक्टर कॉर्पोरेशन बनाने के बाद निजीकरण का रास्ता साफ हो सकता है. इसलिए सरकार के फैसले के विरोध मे वामपंथी ट्रेड यूनियन से संबद्ध द ऑल इंडिया डिफेंस इम्प्लॉइज फेडरेशन (एआईडीईएफ), इंटक से संबद्ध द इंडियन नेशनल डिफेंस वर्कर्स फेडरेशन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) में शामिल भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस) ने हाथ मिला लिया है. ऐसी मिसाल बिरले ही देखने को मिलती है.

ओएफबी के कॉर्पोरेटाइजेशन के खिलाफ कर्मचारियों में बढ़ती नाराजगी को ध्यान में रखते हुए रक्षा मंत्रालय ने बीते 11 सितंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में मंत्रियों की एक उच्चाधिकार समिति के गठन का एलान किया था. लेकिन कर्मचारी संगठन बेमियादी हड़ताल के फैसले पर अड़े रहे. एक अक्टूबर को रक्षा मंत्रालय ने कर्मचारी संगठनों की प्रस्तावित हड़ताल को अवैध व गैरकानूनी करार दिया था. उसके बाद नौ अक्टूबर को रक्षा मंत्रालय और तीनों फेडरेशनों के पदाधिकारियों के बीच लंबी बैठक में बेमियादी हड़ताल टालने का फैसला किया गया. बैठक में मंत्रालय ने इस बात पर सहमति दी कि मंत्रियों की उच्चाधिकार समिति और मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी कर्मचारी संगठनों से बातचीत करेंगे और बातचीत की प्रक्रिया जारी रहने तक कॉर्पोरेटाइजेशन की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जाएगा.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी