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एशियाई सागर को मथ रही है पनडुब्बियों की होड़

२० जनवरी २०१२

एशियाई देशों में सागर और उसकी संपदा पर कब्जे की लड़ाई एक नई होड़ को जन्म दे रही है नतीजा पनडुब्बियों के बेड़ों ने एशिया में सागर के नीचे भीड़ बढ़ा दी है. जल, जमीन और वायु पर ही नहीं अब पानी के नीचे भी कब्जे की जंग है.

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पनडुब्बियों की होड़तस्वीर: AP

एशिया में अब 2 अरब डॉलर कीमत वाली परमाणु पनडुब्बी भी पहुंच गई है जो यहां बैठे बैठे सैकड़ों मील दूर दुश्मन के ठिकानों को तबाह कर सकती है. कमांडर पेटरसन की यूएसएस ओकलाहोमा सिटी नाम की यह पनडुब्बी दुनिया भर की नौसेना के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द और अमेरिका की सैनिक रणनीति की सबसे बड़ी ताकत है. पनडुब्बी के कमांडर एंड्रू पीटरसन कहते हैं, "सचमुच हमारा कोई जोड़ीदार नहीं." वैसे कमांडर को भी यह पता है कि शीतयुद्ध के बाद प्रशांत महासागर के इलाके में अमेरिकी नौसेना के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती है. लगभग हर एशियाई देश ने अपने किनारों पर पनडुब्बियों की ब्रिगेड तैनात कर रखी है. कभी चीन के उकसावे का जवाब तो कभी समुद्री खजाने पर कब्जा जमाने की कोशिश समंदर में आग लगा देती है.

मुश्किल है पनडुब्बियों को ढूंढना

इन पनडुब्बियों को ढूंढना और खत्म करना बेहद मुश्किल काम है. यहां तक कि बहुत सामान्य पनडुब्बियां भी पानी के सतह पर मौजूद बड़े जहाजों या दूसरे निशानों को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं. सीमित संसाधन वाले देशों के लिए यह बड़े काम की साबित होती हैं. एशिया में इस तरह के हमलों का डर देशों को अपनी ताकत की थाह लगाने में अहम भूमिका निभाता है क्योंकि यहां तटों की सुरक्षा बेहद जरूरी है.

यूएस नेवल वार कॉलेज में पढ़ाने वाले लाइल गोल्डस्टाइन का कहना है, "इसकी वजह से यहां हथियारों की एक बड़ी होड़ शुरू हो गई है. हथियारों की यह होड़ सिर्फ चीन और उसके प्रतिद्वंदियों के बीच नहीं है. हालांकि इससे इसकी वजहों का अंदाजा हो जाता है. क्योंकि यहां दूसरे मुकाबले भी हैं." चीन अपने बेड़े को मजबूत और आधुनिक बनाने में खूब पैसा खर्च कर रहा है. भारत भी पीछे नहीं है. उसकी योजना में परमाणु ताकत से लैस पनडुब्बियों को हासिल करना भी है. इसी महीने उसे अगले 10 सालों के लिए रूस से आईएनस चक्र लीज पर भी मिल जाएगा.

उधर ऑस्ट्रेलिया में अब तक के सबसे महंगे सुरक्षा प्रोजेक्ट पर बहस चल रही है. इसमें 38 अरब डॉलर से ज्यादा की रकम खर्च कर पनडुब्बियों की ब्रिगेड का विस्तार किया जाएगा. जापान अपने 16 जहाजों के बेड़े में 8 और जहाज जोड़ने जा रहा है. दक्षिण कोरिया इंडोनेशिया को पनडुब्बी बेच रहा है. मलेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, वियतनाम, थाइलैंड, सिंगापुर, ताइवान और यहां तक कि बांग्लादेश भी या तो पनडुब्बी खरीद रहे हैं या फिर खरीदने की योजना बना रहे हैं.

उत्तर कोरिया के पास छोटे पनडुब्बियों का सबसे बड़ा बेड़ा है, आरोप है कि उसने उन्हें 2010 में इस्तेमाल किया जिसमें 46 उत्तर कोरियाई नाविक मारे गए. दोनों देशों के बीच 1953 में खत्म हुई जंग के बाद यह सबसे बड़ा हमला था.

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जापान की पनडुब्बीतस्वीर: AP

पनडुब्बियों के साथ यह तय है कि वो खुद ही अपने लिए होड़ को जन्म देती हैं. एक मुल्क के पनडुब्बी खरीदने के बाद आसपास के दूसरे मुल्कों पर उन्हें हासिल करने का दबाव बन जाता है और इसके साथ ये होड़ शुरू हो जाती है. पानी के भीतर रह कर काम करने वाली सेना तैयार करने की जल्दबाजी देशों को उनके इलाके की संपदा के बारे में भी ज्यादा लालची भी बना रही है.

चीन और अमेरिका की होड़

महादेशों के बीच पानी के जहाजों से ढोया जाने वाले सामान का करीब आधा हिस्सा दक्षिण चीन सागर से हो कर गुजरता है. मोटे तौर पर अनुमान है कि इसकी कीमत सालाना करीब 1.2 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है. इस बड़े इलाके में प्राकृतिक संसाधनों का भी एक बड़ा हिस्सा मौजूद है जो अब तक इंसान की पहुंच से दूर रहा है. सागर के नीचे करीब सात अरब बैरल तेल और करीब 900 खरब क्यूबिक फीट गैस का भंडार मौजूद है. अमेरिका के एक निजी थिंक टैंक सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी का तो कहना है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था का भौगोलिक केंद्र दक्षिण चीन सागर में है.

सोवियत संघ के टूटने के बाद अमेरिका खुले सागर में पनडुब्बियों के साथ अठखेलियां करने वाला सबसे बड़ा देश है. ऐसे में अमेरिका अगर प्रमुख समुद्री मार्गों में अपनी भूमिका को बनाए रखना चाहे तो उसे इस फौज की ताकत का बड़ा फायदा मिलेगा. अमेरिका की नौसैनिक ताकत का वर्चस्व अभी आने वाले कुछ सालों के लिए बना रहने की उम्मीद है. हालांकि किनारों पर चीन की चुनौती अपना असर दिखा रही है. गोल्डस्टाइन कहते हैं, "चीन ने पनडुब्बियों पर खास ध्यान दिया है जिसका नतीजा है कि पीएलए नेवी सबमैरिन फोर्स चीनी मिसाइलों के साथ मिल कर सेना की मजबूत बाजू बन गई है."

चीन की नौसेना के पास अब 60 से ज्यादा पनडुब्बियां हैं. इनमें नौ परमाणु पनडुब्बियां हैं. इन पनडुब्बियों पर जीन जैसी शानदार मिसाइलें भी हैं जो करीब 7400 किलोमीटर की रेंज में वार कर सकती हैं. परमाणु पनडुब्बियां सामान्य डीजल पनडुब्बियों के मुकाबले ज्यादा देर तक पानी के भीतर रह सकती हैं. वैसे इन सबके बावजूद अमेरिका के बराबर पहुंचने में चीन को अभी बहुत वक्त लगेगा. अमेरिका तक अपने मिसाइलों की रेंज पहुंचाने के लिए उसे जापान के सागर में अपनी ताकत साबित करनी होगी.

हालांकि अमेरिका ने अपनी मजबूत स्थिति को बनाए रखने के लिए प्रशांत और अटलांटिक में और ज्यादा पनडुब्बियों को तैनात कर दिया है. इराक और अफगानिस्तान में सैन्य अभियान खत्म होने के बाद ओबामा प्रशासन ने इस इलाके में नौसेना को मजबूत करने का एलान किया है. हालांकि इसके बाद भी चीन इस इलाके में एक बड़ा खिलाड़ी तो बना ही रहेगा.

प्रशांत में भौगोलिक विवादों की कमी नहीं है. ऐसे में सागर पर किसका कब्जा सबसे ज्यादा होगा इस सवाल में गर्मी पैदा करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है. जापान की चीन, दक्षिण कोरिया और रूस के साथ इस पर तूतू मैंमैं होती है तो दर्जन भर से ज्यादा देश सुदूर स्पार्टली द्वीप के लिए एक दूसरे पर संगीन ताने हुए हैं. क्षेत्रीय नौसेनाओं का मजबूत होना भी हथियार बंद लड़ाइयों को न्यौता दे रहा है.

रिपोर्टः एपी/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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