एमनेस्टी: 'विश्व के लिए एक काला साल रहा 2016'
२२ फ़रवरी २०१७2016 में बुरा खबरों का सिलसिला लगातार जारी रहा. हैरान करने वाले अमेरिकी चुनाव के नतीजे, ब्रिटेन का जनमत संग्रह, अनगिनत आतंकी हमले, अभूतपूर्व संकट में घिरे रिफ्यूजी और सीरिया, यमन, दक्षिण सूडान जैसे देशों में छिड़े युद्ध के समाचार साल भर मिलते रहे. एमनेस्टी की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि सिर्फ खबरों में ही नहीं असल में यह साल इतिहास के सबसे बुरे सालों में रहा. संगठन के महासचिव सलिल शेट्टी कहते हैं, "2016 में दुनिया वाकई एक ज्यादा डरावनी और अस्थिर जगह बन गई है."
दुनिया भर में मानवाधिकार उल्लंघन
दुनिया के 159 देशों में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के मामले दर्ज किए गए. 23 देशों में तो युद्ध अपराधों को भी अंजाम दिया गया. दक्षिण सूडान में एमनेस्टी ने दुर्व्यवहारों की विस्तृत श्रृंखला और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल तक के साक्ष्य पाए, जिन्हें युद्ध अपराध समझा जाता है.
म्यांमार में लाखों रोहिंग्या लोगों को तथाकथित "सफाई अभियान" के तहत विस्थापित कर दिया गया. फिलीपींस में राष्ट्रपति डुटेर्टे के नेतृत्व में गैरन्यायिक हत्याओं की एक बड़ी लहर चली, जिसमें ड्रग्स से जुड़े होने के आरोप में हजारों लोगों की जान ले ली गई.
इन 159 देशों में फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों का भी शामिल होना हैरान करता है. एमनेस्टी में क्राइसिस रिस्पॉन्स की निदेशिका तिराना हसन कहती हैं, "ऐसा नहीं था कि दुनिया का एक हिस्सा दूसरे से बेहतर रहा हो, 2016 में तो पूरा विश्व मानव अधिकारों के मामले में पीछे की ओर ही गया और इसे तुरंत रोके जाने की जरूरत है."
नफरत की राजनीति
रिपोर्ट में घृणा से भरे भाषणों को साल की सबसे बुरी बातों में से एक माना गया है, यूरोप हो या अमेरिका - हर जगह राजनीतिज्ञ किसी विशेष व्यक्ति समूह को बुरा भला बोलते आए. चुनाव से पहले डॉनल्ड ट्रंप के बयानों ने नफरत फैलाई, तो हंगरी के नेता विक्टर ओरबान भी प्रवासी-विरोधी विचारों को कड़े शब्दों में रखने से नहीं चूके.
चुभा निर्विकार रहना
हसन बताती हैं कि परेशानी में पड़े लोगों के प्रति उदासीन रहना और विश्व के जिम्मेदार समझे जाने वाले देशों का भी उनकी मदद के लिए पर्याप्त कदम ना उठाना बहुत खराब मिसाल बना. अब तक मानवाधिकारों के मामले में काफी अच्छा रिकॉर्ड रखने वाले देशों ने भी 2016 में निराश किया. केवल जर्मनी जैसे देशों ने एक नैतिक और सैंद्धांतिक रुख अपनाया और शरणार्थियों के लिए अपने देश और दिलों के द्वार खोले. हालांकि हसन जर्मनी की इस बात पर आलोचना करती हैं कि उसने उन देशों पर पर्याप्त दबाव नहीं बनाया जो संकटग्रस्त देशों में तबाही मचाने के लिए जिम्मेदार हैं.
हर कोई बने मानवाधिकार कार्यकर्ता
एमनेस्टी की रिपोर्ट इसकी अपील करती है लोग मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ताओं का समर्थन करें. 22 देशों में शांतिपूर्ण तरीकों से मानवाधिकारों के समर्थन के लिए खड़े होने वाले ऐसे कार्यकर्ताओं को जान से मार डाला गया. जैसे कि होंडुरास में कार्यकर्ता बेर्टा सेसेरस की हत्या किया जाना. हसन कहती हैं, "2017 वाकई वो साल है जब हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय, सरकारों और राजनीतिज्ञों का आह्वान कर कर रहे हैं कि वे मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए मजबूरी से खड़े हों."
आरपी/ओएसजे (एपी,डीपीए)