एड्स का खतरा अभी खत्म नहीं
१ दिसम्बर २०१४पिछले साल एचआईवी से संक्रमित होने वाले लोगों की तादाद उन एचआईवी पॉजीटिव लोगों से कम थी, जो एड्स को दूर रखने वाली दवा पाने वाले लोगों की कतार में शामिल हुए. पहली दिसंबर को मनाए जाने वाले एड्स दिवस के मौके पर जारी एक रिपोर्ट में अफ्रीका में गरीबी और रोगों की रोकथाम में लगे संगठन वन अभियान ने चेतावनी दी है कि इस मुकाम पर पहुंचने का मतलब यह नहीं है कि एड्स का अंत करीब आ गया है. इसकी एक वजह धन का अभाव भी है. एचआईवी को काबू में रखने के लिए जरूरी संसाधनों में 3 अरब डॉलर की कमी है.
वन संगठन के निदेशक एरिन होलफेल्डर ने कहा, "हम वैश्विक स्तर पर एड्स के खिलाफ लड़ाई में उच्चतम स्थान को पार कर चुके हैं लेकिन सभी देश वहां नहीं हैं और सफलताएं आसानी से रुक सकती हैं या विफलता में बदल सकती हैं." एड्स महामारी की वजह बनने वाला ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस एचआईवी खून, वीर्य और मां के दूध से फैलता है. अभी तक इस संक्रमण का कोई उपचार नहीं है लेकिन एंटीरेट्रोवायरल दवाओं से एड्स को वर्षों तक रोका जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2013 में 3.5 करोड़ लोग एचआईवी से संक्रमित थे. इनमें 21 लाख लोग पहली बार संक्रमित हुए जबकि 15 लाख लोगों की एड्स से मौत हो गई. एड्स का सबसे ज्यादा असर दक्षिणवर्ती अफ्रीका में है. तीस साल पहले पता चली इस महामारी में अब तक 4 करोड़ लोग मारे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र संस्था यूएनएड्स ने बताया है कि जून 2014 तक विश्व भर में 1.36 करोड़ लोग एड्स को रोकने वाली दवा ले रहे थे जबकि 2010 में यह संख्या सिर्फ 50 लाख थी.
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में एचआईवी से लड़ने में खासी कामयाबी पाई है लेकिन बड़े शहरों में दवाओं की नियमित आपूर्ति न होने के कारण स्थिति बिगड़ सकती है. सेक्स वर्करों, ट्रांसजेंडरों और नशेड़ियों के बीच संक्रमित लोगों को दवा उपलब्ध करा कर और कंडोम के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर भारत को एचआईवी संक्रमित लोगों की संख्या कम करने में सफलता मिली है. मगर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि दवाओं की नियमित आपूर्ति और टेस्ट की गारंटी नहीं होती है तो भारत फिर से खतरे के जोन में वापस लौट सकता है.
एमजे/आरआर (रॉयटर्स)