मंथन 80 में खास
२६ मार्च २०१४मंथन में इस बार चलिए हिमालय की घाटी में, जहां जर्मनी की आखेन यूनिवर्सिटी के आर्किटेक्टों ने ऐसी इमारत तैयार की है जिसे गर्म रखने के लिए किसी ऊर्जा की जरूरत नहीं पड़ती. यह इमारत मात्र एक महीने में तैयार की गई है. इमारत को बनाने के पहले छात्रों ने खूब माथापच्ची की. घर तैयार करने के लिए छात्रों के सामने परंपरागत भारतीय अंदाज और आधुनिक वास्तुकला को साथ रखने की चुनौती थी. 3,700 मीटर की ऊंचाई पर जर्मन छात्रों को काम करने में बहुत सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. कई बार सही मशीन की कमी के कारण उन्हें हाथ से ही काम चलाना पड़ा. मकान बनाने के लिए स्थानीय चीजों जैसे पत्थर, लकड़ी और झाड़ का इस्तेमाल हुआ. लेकिन इस इमारत की सबसे खास बात यह है कि यह सर्दी में खुदको गर्म रख सकती है. मंथन में जानिए कौन सी तकनीक का इस्तमेाल करते हुए छात्रों ने गर्म रखने वाला घर कम लागत में तैयार किया.
शोध के लिए जर्मनी
इस बार मंथन में आपकी मुलाकात होगी नोबेल विजेता वोल्फगांग केटेर्ले से, जो पोस्ट डॉक्टरेट करने के लिए जर्मनी से अमेरिका गए और वहीं के होकर रह गए. उन्होंने भौतिकी के क्षेत्र में ऐसी खोज की है जिससे बिजली की बर्बादी कम की जा सकती है. लेकिन यह खोज अभी परीक्षण स्तर पर है. साथ ही जानिए केटेर्ले युवा वैज्ञानिकों के लिए क्या संदेश दे रहे हैं. वे यह भी बताएंगे कि शोध के छात्रों के लिए जर्मनी में कितनी संभावनाएं हैं.
हेडफोन का साथ
अगर आपको गाने सुनने का शौक है तो आपको तरह तरह के हेडफोन भी लुभाते होंगे. आजकल युवाओं में बड़े और रंगीले हेडफोन का बहुत चलन है. दस साल पहले तक मामला अलग था और तब सिर्फ तकनीक के प्रेमी इन बड़े हेडफोन्स को बढ़िया आवाज के लिए इस्तेमाल करते थे. लेकिन अब इनका डिजाइन और रंग बड़ी भूमिका निभाते हैं. तकनीक के साथ क्वालिटी के लिए आज ग्राहक अच्छी से अच्छी कीमत चुकाने को तैयार है. मंथन में जानिए यूरोप के हेडफोन बाजार में किस तरह के बदलाव आए हैं और यहां के संगीत प्रेमी किस तरह के हेडफोन्स के शौकीन हैं.
एक्वाकल्चर की चुनौतियां
अगर आपको मछलियों का शौक है तो मंथन की अगली रिपोर्ट आपके लिए दिलचस्प भरी होगी. दुनिया भर में मछलियों के शौकीनों की वजह से उनकी संख्या तेजी से घट रही है. मांग के मुकाबले सागर में मछलियां इतनी तेजी से नहीं बढ़ रही हैं. मछलियां की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए मछलियों की कृत्रिम खेती एक अच्छा विकल्प है. कृत्रिम खेती के जरिए दुनिया भर में हर साल 5 करोड़ टन मछलियों और सीफूड का उत्पादन होता है. मंथन में जानिए कि इस तरह की कृत्रिम खेती या एक्वाकल्चर के लिए संयंत्र बनाने वाली कंपनियों के सामने कौन कौन सी चुनौतियां हैं. देखिए मंथन 29 मार्च को सुबह 10.30 बजे डीडी नेशनल पर.
एए/आईबी