एंडी वारहॉल और उनकी कारें
1986 में ऑटोमोबाइल की 100 वीं वर्षगांठ पर डाइम्लर कंपनी ने पॉप आर्ट के दिग्गज एंडी वारहॉल को बेंज की कहानी कहती पेंटिंग्स की एक सिरीज बनाने को कहा. उसे इन दिनों जिंगेन के म्यूजियम आर्ट एंड कार एमएसी में देखा जा सकता है.
असली या वारहॉल का अंदाज
प्रदर्शनी के आयोजकों को इस पर नाज है कि वारहॉल की तस्वीरें म्यूजियम में डाइम्लर के ओल्डटाइमरों के साथ दिखाई जा रही हैं. वारहॉल की कारों में दुनिया की पहली मोटरवाली बग्घी से लेकर पंखों जैसे गेट वाली गाड़ियां शामिल हैं. 80 तस्वीरों का ऑर्डर मिला था लेकिन वारहॉल अपने निधन तक सिर्फ 40 तस्वीरें बना पाए.
कैसे हुई शुरुआत
29 जनवरी 1886 को कार्ल फ्रीडरिष बेंज ने पेटेंट कार्यालय में 0.8 पीएस की गाड़ी रजिस्टर कराई जिसकी अधिकतम गति 18 किलोमीटर प्रति घंटा थी. गाड़ी की पहली सवारी उनकी पत्नी बैर्था बेंज ने अपने पति की जानकारी के बिना की. 100 किलोमीटर की यात्रा के दौरान दो ग्रामीण किशोरों ने गाड़ी को शैतान समझ लिया.
स्क्रीन प्रिंटिंग
एंडी वारहॉल ने पेटेंट कराई गई गाड़ी को कोलाज का रूप दे दिया जो सचमुच खतरनाक तो नहीं दिखता, लेकिन रंग बिरंगा जरूर है. विश्व प्रसिद्ध कलाकार की कार्स सिरीज इस बात का सबूत है कि कला और प्रोडक्ट डिजाइन एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं. वराहॉल इस, सिरीज में भी अपनी छवि के अनुरूप रहे हैं.
पूरी लक्जरी
1924 के अंत में मर्सिडीज बेंज 15/70 के साथ दो लक्जरी मॉडल बाजार में आए. महिलाएं उसके सुंदर डिजाइन की कायल हो गईं तो मर्द 100 और 140 पीएस वाली उसकी मोटर के. खुली गाड़ी भी उतनी ही लोकप्रिय हुई जितनी पुलमन लिमोजीन.
रेस के मैदान पर
सिल्वर ऐरो का नाम सुनते ही रेस प्रेमियों का दिल उछलने लगता है. पांच दशकों तक बेंज की फर्राटा गाड़ी टॉप क्लास में तहलका मचाती रही. उसने अनगिनत पुरस्कार जीते. पहले सिल्वर ऐरो डब्ल्यू 25 ने 1934 में ही अपनी पहली रेस जीती. बाद में आने वाली गाड़ियों ने सात अंतरराष्ट्रीय रेसें जीतीं.
आठ सिल्वर ऐरो
सिल्वर ऐरो एंडी वारहॉल की सिरीज के लिए महत्वपूर्ण उम्मीदवार था जिसका उन्होंने अपने काम में कई बार इस्तेमाल किया. रेस वाली यह गाड़ी कुछ कुछ मुर्गे जैसी दिखती है. पॉप आर्टिस्ट ने इस प्रसिद्ध कार को कुछ व्यंग्यात्मक रंग दे दिया है.
रेस की कला
कार बनाने वालों को नियमों का कड़ाई से पालन करना पड़ता है. डब्ल्यू 125 कार 750 किलोग्राम वाले फॉर्मूले पर बनी थी जिसके आधार पर 1934 से ग्रां प्री गाड़ियां बनती थी. उसके अनुसार गाड़ियों का वजन पेट्रोल, तेल, पानी और टायर के बिना 750 किलो से ज्यादा नहीं होता था. वारहॉल का नियम था उसे रंग बिरंगा होना चाहिए.
1969 की हाई टेक
प्रायोगिक कार सी 111 अपने समय की सुपर स्पोर्ट कार थी जिसकी अधिकतम स्पीड 300 किलोमीटर प्रति घंटा थी. हालांकि ऑटोमोबाइल कंपनी को इसके लिए ढेर सारे ऑर्डर मिले लेकिन बाजार के लिए उसका कभी उत्पादन नहीं हुआ. वारहॉल की तस्वीरों में कारें उड़ने के लिए तैयार कीड़ों की तरह दिखते हैं.
पंखों वाली कार
मर्सिडीज बेंज 300 एसएल को 1954 में न्यूयॉर्क में पेश किया गया. 250 किलोमीटर की अधिकतम रफ्तार के साथ यह अपने समय में बाजार में उतरने वाली सबसे तेज गाड़ी थी. उठाकर खोली जाने वाले दरवाजों के कारण उसे गलविंग का नाम मिला. 1999 में मोटर स्पोर्ट के पत्रकारों ने इसे सदी की स्पोर्ट कार चुना.
सपने की कार
मैक म्यूजियम में चल रही प्रदर्शनी कारों और कला के पारखियों को आकर्षित कर रही है. बाडेन वुर्टेमबर्ग के जिंगेन शहर में यह प्रदर्शनी मई 2015 तक देखी जा सकती है.