1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कैसे याद किए जाएंगे आरके पचौरी

१४ फ़रवरी २०२०

भारत के जाने-माने पर्यावरणविद् राजेंद्र कुमार पचौरी का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. उनके नेतृत्व में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल ने 2007 में साझा तौर पर नोबेल शांति पुरस्कार जीता था.

https://p.dw.com/p/3XlBn
Rajendra Pachauri IPCC
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/G. Osan

पचौरी के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं. उनके निधन की घोषणा 13 फरवरी को देर रात द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) ने की. पचौरी ने 2016 तक टेरी की अध्यक्षता की थी. पचौरी 2002 से 2015 तक संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अध्यक्ष भी रहे. उन्हें दोनों संस्थानों से तब इस्तीफा देना पड़ा जब टेरी की एक कर्मचारी ने उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. 

पचौरी के खिलाफ जो आरोप थे उनमें 29 वर्षीय महिला को अश्लील संदेश, ईमेल और व्हाट्सऐप संदेश भेजना शामिल था. लेकिन पचौरी ने इन आरोपों से इंकार कर दिया था और उनके वकीलों ने दावा किया था कि उन्हें बदनाम करने के लिए उनके संदेशों को हैक किया था. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में अदालत में शिकायत भी दर्ज करवाई थी लेकिन मुकदमा पूरा नहीं हो सका.

आईपीसीसी और अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को 2007 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था. नोबेल कमेटी ने कहा था कि इन दोनों को पुरस्कार मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन के बारे में जानकारी बढ़ाने के लिए और उसका मुकाबला करने के उपायों की नींव रखने के लिए दिया गया था. पचौरी को भारत सरकार ने 2001 और 2008 में सिविलियन पुरस्कारों से भी नवाजा था.

Friedensnobelpreisträger Galerie
नोबेल पुरस्कार से सम्मानिततस्वीर: picture-alliance/dpa

टेरी के मौजूदा अध्यक्ष नितिन देसाई ने वैश्विक सस्टेनेबल विकास के क्षेत्र में पचौरी के योगदान की सराहना की. देसाई ने एक वक्तव्य में कहा, "उनकी अध्यक्षता में आईपीसीसी ने जलवायु परिवर्तन के बारे में आज होने वाली चर्चाओं की नींव रखी."

2002 से 2015 तक आईपीसीसी के उपाध्यक्ष रहे प्रोफेसर जाँ-पास्कल वान पर्सेल ने कहा कि एक विकासशील देश से आने वाले पचौरी को दूसरों से कहीं पहले जलवायु नीतियों और सस्टेनेबल विकास के एजेंडे के बीच तालमेल बिठाने की जरूरत की तरफ ध्यान दिलाने का श्रेय मिलना चाहिए.

प्रोफेसर वान पर्सेल ने ट्वीट किया, "दुर्भाग्य से, वह कभी कभी अति-आत्मविश्वासी हो जाते थे, जैसा कि वह तब हुए थे जब उन्होंने आईपीसीसी की रिपोर्ट में एक छोटी सी गलती को तुरंत मानने और सुधारने से इनकार कर दिया था. इसकी वजह से जिस संस्था की वे अध्यक्षता कर रहे थे, उसे काफी तीखी और अनावश्यक आलोचना का सामना करना पड़ा था."

सीके/एके (एपी)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

जानिए, कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत?