ईडेन गार्डन में बिजली गुल- मामला सुलगा
३ जनवरी २०१०एक के बाद एक बनने वाली जांच समितियों की वजह से यह मामला और उलझ गया है. वाममोर्चा सरकार और इसके मुखिया बुद्धदेव भट्टाचार्य का पिछला रिकार्ड देखते हुए लगता है कि पूरी कवायद क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ बंगाल यानी सीएबी और उसके प्रमुख जगमोहन डालमिया को कटघरे में खड़ा करने के लिए ही हो रही है.
पुलिस पर सवाल
पुलिस आयुक्त गौतम मोहन चक्रवर्ती ने जांच रिपोर्ट आने के पहले ही कह दिया था कि वे ईडेन में आगे से दिन-रात के मैच की अनुमति नहीं देंगे. गौतम राज्य के मुख्य सचिव अशोक मोहन चक्रवर्ती के सगे भाई हैं.
इससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या दोनों भाई मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए ही इस मामले में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हैं या वे मुख्यमंत्री के इशारे पर काम कर रहे हैं.
तीन साल पहले हुए सीएबी चुनावों में बुद्धदेव ने तत्कालीन पुलिस आयुकक्त प्रसून मुखर्जी को अध्यक्ष बनवाने के लिए पूरा जोर लगाया था. उन्होंने डालमिया से चुनाव नहीं लड़ने को भी कहा था. लेकिन डालमिया नहीं माने. उस चुनाव में बुद्धदेव का उम्मीदवार कहे जाने वाले प्रसून को मुंहकी खानी पड़ी थी. चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ने डालमिया की जीत को अशुभ ताकतों की जीत करार दिया था.
कई और सवाल
ताजा मामले ने कई सवाल पैदा कर दिए हैं. मसलन सीएबी जैसी स्वायत्त संस्था के मामले में पुलिस हस्तक्षेप कैसे कर सकती है? सवाल उठ रहा है कि जब उसी सीरिज के पांचवें मैच में फिरोज शाह कोटला में खराब पिच की वजह से मैच रद्द हो जाने पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित या उनकी सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया तो वाममोर्चा सरकार ऐसा क्यों कर रही है?
तृणमूल कांग्रेस सांसद मुकुल राय कहते हैं कि सीएबी एक स्वायत्त संस्था है. वह ऐसे मामलों की जांच खुद कर सकती है. उसके कामकाज में सरकार का हस्तक्षेप ठीक नहीं है.
रिपोर्ट का इंतज़ार
दूसरी ओर क्रिकेट की राजनीति के माहिर खिलाड़ी जगमोहन डालमिया सरकार की इस सक्रियता से परेशान नहीं हैं. वे कहते हैं कि पहले रिपोर्ट तो आने दीजिए. उसके बाद देखेंगे कि ग़लती कहां हुई है. अगर हमारी ग़लती होगी तो उसे सुधार लिया जाएगा.रिपोर्ट आने के पहले ही यह कैसे कहा जा सकता है कि इस मामले की लिए कौन ज़िम्मेदार है.
सरकार की काफी किरकिरी होते देख कर मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य अब नुकसान की भरपाई के लिए मैदान में उतर आए हैं. उन्होंने शनिवार को खेल मंत्री कांति गांगुली को सभी पक्षों से रिपोर्ट लेकर इस मामले पर एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है. मुख्यमंत्री की इस पहल को पूरे मामले की लीपापोती का प्रयास माना जा रहा है. लेकिन तमाम समितियों के गठन के बावजूद इस विवाद के जल्दी सुलझने के आसार कम ही हैं.