इलाज करने वाले ही टीबी के शिकार
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में टीबी के सबसे अधिक मामले भारत में ही पाए जाते हैं. देश भर में 26 लाख लोगों के शरीर में टीबी का बैक्टीरिया मौजूद है. यहां तक कि इलाज करने वाले भी खुद ही इसका शिकार हैं.
दो हफ्ते से ज्यादा खांसी?
ट्यूबरकुलोसिस या फिर क्षय रोग का बैक्टीरिया खांसी जुकाम से फैलता है. सरकार सालों से अभियान चला रही है कि दो हफ्ते से ज्यादा खांसी टीबी हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद देश में टीबी को लेकर संजीदगी नजर नहीं आती.
नर्स की मौत
कुछ वक्त पहले मुंबई के सेवरी अस्पताल की नर्स की मौत सुर्खियों में रही. यह अस्पताल खास तौर से टीबी की रोकथाम और इलाज के लिए बनाया गया है. लेकिन अस्पताल की हालत देख कर आए लोग बताते हैं कि इलाज की जरूरत सबसे पहले खुद अस्पताल को ही है.
हर रोज छह मौतें
अस्पताल के संचालक राजेंद्र नानावरे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि अस्पताल में हर रोज टीबी के चलते औसतन छह मौतें होती हैं. इतना ही नहीं, अस्पताल के कई कर्मचारी भी संक्रमित हैं.
अस्पताल की हालत
आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में कम से कम 12 कर्मचारियों की टीबी से जान जा चुकी है. हालांकि असल आंकड़ों के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. अस्पताल की हालत यह है कि वॉर्ड में बिल्लियां घूमती नजर आती हैं.
सफाई कर्मचारियों का क्या?
1200 बिस्तर की क्षमता वाले सेवरी अस्पताल के बारे में स्थानीय यूनियन अध्यक्ष प्रकाश देवदास का कहना है, "बहुत से क्लास 4 कर्मचारी, सफाई कर्मचारी बीमार होने के बाद नौकरी छोड़ कर चले जाते हैं. हम नहीं जानते कि वे जिंदा हैं या नहीं. कोई उनकी खबर नहीं लेता."
आंकड़ों की राजनीति
फाउंडेशन फॉर मेडिकल रिसर्च की निदेशक नर्गिस मिस्त्री बताती हैं कि संस्था की रिपोर्ट के अनुसार 2007 से 2011 के बीच अस्पताल में 65 कर्मचारियों की मौत हुई. इनमें से ज्यादातर रसोइये थे. हालांकि इस रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
मास्क कहां है?
भारत के अधिकतर सरकारी अस्पतालों का मंजर एक सा ही होता है. सफाई की कमी, नियमों की अनदेखी. सेवरी का भी वही हाल है. रॉयटर्स की टीम जब इस अस्पताल में पहुंची तो पाया कि डॉक्टर, नर्स और मरीज, सभी बिना मास्क के ही घूम रहे हैं.
जिम्मेदारी किसकी
सेवरी की तरह भारत के कई अस्पतालों को फेसलिफ्ट की जरूरत है. केवल टीबी के लक्षणों के बारे में लोगों को जागरूक करना ही काफी नहीं है. क्योंकि बीमारी को समझ कर लोग अस्पताल तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन जब अस्पताल ही मौत का कारण बन जाए, तो उसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी होगी?