आरएनए खोलेगा अपराध के राज
२२ नवम्बर २०१४कई गोलियां लगने से यहां एक शख्स की मौत हुई. अब सबूत जुटाये जा रहे हैं. फिंगर प्रिंट्स के अलावा जांचकर्ताओं को फॉरेंसिक सबूतों की तलाश है. डीएनए विश्लेषण यानि जेनेटिक फिंगर प्रिंट की मदद से कई अपराधियों को पकड़ा जा चुका है.
नए शोध में पता चला है कि डीएनए के छोटे भाई कहे जाने वाले माइक्रो आरएनए यानी राइबोन्यूक्लिक एसिड से भी बड़ी मदद मिल सकती है. बॉन यूनिवर्सिटी के फॉरेंसिक संस्थान में फॉरेंसिक जेनेटिक विशेषज्ञ कोर्नेलियुस कोर्ट्स डीएनए की ही तरह माइक्रो आरएनए का सबूतों के तौर पर इस्तेमाल करने पर काम कर रहे हैं, "डीएनए की मदद से आप पता लगा सकते हैं कि वह कौन है, कौन मारा गया या किसने हथियार छुआ. आरएनए से मैं पता लगा सकता हूं कि क्या हुआ. इससे मैं आंतरिक अंगों के सुराग पता लगा सकता हूं. सबूतों को अलग अलग कर सकता हूं."
कब क्या हुआ
हिंसक अपराधों की जांच में वारदात के सिलसिले के पता करना अहम है. मौके पर मिले सबूतों को बहुत ध्यान से देखना पड़ता है. उदाहरण के लिए चाकू से लिए नमूने में माइक्रो आरएनए मिल सकता है, "इस मामले में एक उदाहरण ऐसा हो सकता है कि जब हम इस तरह का कोई हथियार देखते हैं, जिस पर खून लगा है, तो अपराध की गंभीरता इस बात से पता लगाई जा सकती है कि हथियार शरीर में कितना अंदर गया. अगर इससे अंदरूनी अंग घायल हुए हैं, जैसे कि लीवर, तो चाकू की नोंक पर लीवर के टिशू मिल सकते हैं और अपराध की सजा में यह अहम भूमिका निभा सकते हैं."
यौन अपराध के मामले में भी माइक्रो आरएनए का विश्लेषण मदद कर सकता है. खून की तरह ही वीर्य में भी माइक्रो आरएनए का पता लगाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सबूत जुटाने में सावधानी बरती जाए. इसकी अहमियत समझाते हुए कोर्नेलियुस कोर्ट्स कहते हैं, "जरूरी यह जानना है कि घटनास्थल पर क्या हुआ होगा, क्या यह यौन अपराध है? लिहाजा ये मालूम होना चाहिए कि नमूने कहां से लिए गए जननांगों से या फिर शरीर के ऊपरी हिस्से से. क्या नमूने में वीर्य का भी अंश है. खुली आंखों से ये नहीं पता चलता. लेकिन अगर नमूने में माइक्रो आरएनए और स्पर्म्स मिलें तो मजबूत सबूत मिलता है."
हिंसा का पक्का सबूत
रिसर्चर नमूनों को कई तरह के रसायनों में रखते हैं. इससे माइक्रो आरएनए के सबूत अलग अलग हो जाते हैं. खास विश्लेषण कर माइक्रो आरएनए का प्रोफाइल बनाया जाता है, जो घटना के बारे में विस्तार से जानकारी देता है.
कुछ मीटर के फासले से गोली चले तो खून और ऊतकों के धब्बे मिलते हैं और माइक्रो आरएनए भी. भले ही पहली गोली के बाद और भी गोलियां चली हों लेकिन पहली बार में निकले आरएनए के सबूत वैसे ही रहते हैं. भले ही शव मिले या न मिले. नमूनों से पता चल जाता है कि गोली सिर पर लगी या कहीं और. कोर्ट्स के मुताबिक, "दिमाग के ऊतक तब मिल सकते हैं जब सिर में गोली लगी हो. हमें ऐसे माइक्रो आरएनए की तलाश थी जो सिर्फ मस्तिष्क के टिशू में मिलते हों. अगर हमें यह मिल जाते हैं तो यह तय है कि गोली सिर पर लगी थी."
माइक्रो आरएनए से घटनाक्रम के बारे में काफी कुछ पता चलता है. अगर इस तकनीक के सभी प्रयोग सफल हुए तो कुछ सालों बाद पुलिस भी इसका इस्तेमाल कर सकेगी.
रिपोर्ट: मार्टिन रीबे/एएम
संपादन: ओेंकार सिंह जनौटी