“आतंकियों को नहीं मिलेगी जमानत”
२२ फ़रवरी २०१७उच्चतम न्यायालय ने कहा "अगर आप निर्दोष लोगों की हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हैं तो पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देकर ऐसी मांग नहीं कर सकते. जिस पल आप ऐसे अपराध में दोषी पाए जाते हैं उसी वक्त से आपका नाता अपने घर-परिवार से टूट जाता है.”
नौशाद ने 27 फरवरी को अपनी बेटी की शादी में शामिल होने के लिए न्यायालय में एक महीने की छूट मांगी थी और अंतरिम जमानत के लिए अर्जी दाखिल की थी.
नौशाद ने अपनी याचिका में कहा कि वह अपनी जिदंगी के करीब 20 साल पहले ही जेल में काट चुका है और इस मामले के अलावा वह कभी किसी अन्य आपराधिक मामले में शामिल नहीं रहा. उसने बताया कि 24 अक्टूबर को उसने जेल प्रशासन के जरिये दिल्ली सरकार से अपनी बेटी की शादी के लिए पैरोल का अनुरोध किया था लेकिन उसे कोई जवाब नहीं दिया गया.
मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की तीन सदस्यीय बेंच ने मोहम्मद नौशाद की जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
साल 1996 में दिल्ली के लाजपत नगर इलाके में हुए बम धमाके के मामले में निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने मोहम्मद नौशाद को दोषी करार दिया था. इस धमाके में 13 लोगों की मौत और 38 लोग जख्मी हो गए थे. निचली अदालत ने नौशाद को मौत की सजा सुनाई थी जिसे उच्च न्यायालय ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा "आप यह नहीं बोल सकते कि मेरा कोई बेटा या बेटी है. आप कोई जमानत नहीं मांग सकते. आप निचली अदालतों से मिली सजा को चुनौती जरुर दे सकते हैं. उसकी सुनवाई हम कर सकते हैं और इस पर फैसला भी दे सकते हैं. लेकिन आपको अंतरिम जमानत की अनुमति नहीं होगी क्योंकि निचली अदालत ने आपको सजा दी है और इस सजा को उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा है. अगर आप बिना सोचे समझे लोगों को मार सकते हैं तो उसके लिए आपको कोई जमानत नहीं दी जा सकती.”
नौशाद की सजा को उम्रकैद से मौत में बदलने के लिए सीबीआई की अपील न्यायालय में पहले से ही लंबित है.