असम में हर साल भयावह हो रही है बाढ़ की समस्या
२० जुलाई २०२०कोरोना की मार से जूझ रहे असम में इस साल बाढ़ कहर ढा रही है. अब तक सौ से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. काजीरंगा नेशनल पार्क में नौ गैंडों समेत 110 जानवरों की मौत हो चुकी है. हर साल बाढ़ के मौके पर तो केंद्र व राज्य सरकारें सक्रिय हो जाती हैं, लेकिन पानी उतर जाने के बाद फिर सब कुछ जस का तस हो जाता है. देश में असम में ही सबसे पहले बाढ़ आती है. कोसी नदी को जिस तरह बिहार को शोक कहा जाता है उसी तरह ब्रह्मपुत्र को असम का अभिशाप कहा जा सकता है. यह राज्य में बाढ़ का दूसरा दौर है. हर साल इसकी भयावहता बढ़ती ही जा रही है. आखिर हर साल आने वाली बाढ़ की वजह क्या है और क्या इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता?
बाढ़ की स्थिति
कोरोना महामारी के बीच इस साल असम में बाढ़ आफत बनकर आई है. राज्य के 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं और 70 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं. बाढ़ और भूस्खलन से 117 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से फोन पर बातचीत में स्थिति का जायजा लिया. उन्होंने इस मुश्किल वक्त में असम सरकार को हर संभव मदद का आश्वासन दिया है. असम के जल संसाधन मंत्री केशव महंत ने बताया कि ज्यादातर नदियों के खतरे के निशान से ऊपर बहने की वजह से बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है. मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने मृतकों के परिवारवालों को चार लाख रुपए देने का ऐलान किया है.
बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान एक सींग वाले गैंडों के लिए मशहूर काजीरंगा नेशनल पार्क को पहुंचा है. पार्क का लगभग 90 फीसदी हिस्सा पानी में डूब गया है. हालांकि पार्क में जानवरों के जीवित रहने और घास और दूसरी वनस्पतियों के लिए पार्क में सालाना जलजमाव जरूरी है. लेकिन निदेशक पी. शिवकुमार बताते हैं, "पहले पानी भरने पर तमाम जानवर ऊंची जगहों पर चले जाते थे. लेकिन अब ज्यादातर हिस्सा डूब जाने की वजह से भारी दिक्कत हो रही है. यह लगातार दूसरा साल है जब पार्क लगभग पूरी रह डूब गया है.” बीते साल भी राज्य को भयावह बाढ़ से जूझना पड़ा था और जान-माल का भारी नुकसान हुआ था. लेकिन इस साल कोविड-19 की वजह से समस्या कई गुनी गंभीर हो गई है.
पुरानी है बाढ़ की समस्या
वैसे, बाढ़ असम के लिए नई नहीं है. इतिहासकारों ने अहोम साम्राज्य के शासनकाल के दौरान भी हर साल आने वाली बाढ़ का जिक्र किया है. पहले के लोगों ने इससे बचने के लिए प्राकृतिक तरीके अपनाए थे. इसलिए बाढ़ की हालत में जान-माल का नुकसान कम से कम होता था. भारत, तिब्बत, भूटान और बांग्लादेश यानी चार देशों से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी असम को दो हिस्सों में बांटती है. इसकी दर्जनों सहायक नदियां भी हैं. तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अपने साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आती है. वह गाद धीरे-धीरे असम के मैदानी इलाकों में जमा होता रहता है. इससे नदी की गहराई कम होती है. इससे पानी बढ़ने पर बाढ़ और तटकटाव की गंभीर समस्या पैदा हो जाती है.
असम सरकार ने वर्ष 2015 में जारी एक रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 1954 से भूमिकटाव की वजह से 3,800 वर्गकिलोमीटर जमीन ब्रह्मपुत्र में समा चुकी है. यह सिक्किम के क्षेत्रफल का लगभग आधा है. केंद्रीय जल आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 1953 से 2016 के बीच सालाना औसतन 26 लाख लोग बाढ़ की चपेट में आते रहे हैं और औसत 47 लोगों की मौत होती रही है. इसके अलावा हर साल प्रांत की 123.39 करोड़ की संपत्ति नष्ट होती है. वर्ष 2004 में आई बाढ़ में जहां 1.26 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे वहीं मृतकों की तादाद भी 497 पहुंच गई थी. नुकसान के लिहाज से 2012 की बाढ़ सबसे भयावह थी. उस साल 3,200 करोड़ का नुकसान हुआ था.
इंसानी गतिविधियों का असर
विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानी गतिविधियों ने भी परिस्थिति को और जटिल बना दिया है. बीते करीब छह दशकों के दौरान असम सरकार ने ब्रह्मपुत्र के किनारे तटबंध बनाने पर तीस हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं. एक गैर-सरकारी संगठन आराण्यक के पार्थ जे. दास कहते हैं, "इन तटबंधों को कम समय के लिए अंतिम उपाय के तौर पर बनाया जाना था. नदी के कैचमेंट इलाके में इंसानी बस्तियों के बसने, जंगलों के तेजी से कटने और आबादी बढ़ने की वजह से समस्या की गंभीरता बढ़ गई है.” पर्यावरणविद् अपूर्व बल्लभ गोस्वामी कहते हैं, "बीते कुछ वर्षों से राज्य में बाढ़ की फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है. काजीरंगा नेशनल पार्क के अलावा लाओखोवा वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और पवित्रा वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी भी पानी में डूब गए हैं. असम में बाढ़ की समस्या का दीर्घकालीन समाधान जरूरी है.”
मशहूर पर्यावरणविद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने वर्ष 2008 में एक रिपोर्ट में कहा था कि ब्रह्मपुत्र से अकेले गुवाहाटी के पास स्थित पांडू में सालाना प्रति वर्गकिमी 908 टन गाद जमा होती है. इस लिहाज से इस नदी को दुनिया के पांच शीर्ष नदियों में शुमार किया जा सकता है. असम की मौजूदा सरकार ने कुछ साल पहले ब्रह्मपुत्र में जमा गाद साफ करने के लिए 891 वर्ग किलोमीटर की लंबाई में ड्रेजिंग की योजना बनाई थी. मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने तब ड्रेजिंग कार्पोरेशन आफ इंडिया के अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर बैठक भी की थी. उसमें तय हुआ था कि पहले इलाके का सर्वेक्षण कर एक कार्य योजना तैयार की जाएगी. केंद्र सरकार ने भी लगभग 40 हजार करोड़ की इस योजना को मंजूरी दे दी थी. लेकिन यह मामला अब तक फाइलों में ही बंद है. हालांकि विशेषज्ञों ने इसके औचित्य पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि एक बार गाद की सफाई से खास फायदा नहीं होगा. चूंकि यह एक सतत प्रक्रिया है, इसलिए ड्रेजिंग भी हर साल करनी होगी.
असम में बाढ़ आने की वजह
विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मी में तिब्बत के ग्लेशियरों के पिघलने और उसके तुरंत बाद मानसून सीजन शुरू होने की वजह से ब्रह्मपुत्र और दूसरी नदियों का पानी काफी तेज गति से असम के मैदानी इलाकों में पहुंचता है. पर्यावरणविद् अरूप कुमार दत्त ने अपनी पुस्तक द ब्रह्मपुत्र में लिखा है कि पहाड़ियों से आने वाला पानी ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ा देता है. यही वजह है कि राज्य में सालाना बाढ़ की समस्या गंभीर हो रही है. इसके अलावा भौगोलिक रूप से असम ऐसे जोन में है जहां मानसून के दौरान तो देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले ज्यादा बारिश होती ही है, इलाके में जल्दी-जल्दी आने वाले भूकंप भी समस्या को और गंभीर बना देते हैं.
अरूप कुमार दत्त बताते हैं, "वर्ष 1950 में आए भयावह भूकंप ने क्षेत्र की टोपोग्राफी बदल दी थी. इसका भी बाढ़ के परिदृश्य पर गंभीर असर पड़ा है. उस भूकंप की वजह से ब्रह्मपुत्र की सतह दो से तीन मीटर तक ऊपर आ गई थी. नतीजतन नदी की क्षमता कम हो गई थी. यही वजह है कि 1950 के बाद बाढ़ का असर गंभीर हुआ है.”
दूरगामी कदमों की जरूरत
बाढ़ की समस्या के लिए मानवीय गलतियां भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं. आबादी बढ़ने के साथ ही नदी के कैचमेंट इलाके में बस्तियां बन गई और जंगल तेजी से काटे जाने लगे. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन की भी इस समस्या में अहम भूमिका है. सिविल इंजीनियर रामकुमार शर्मा कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी, तेजी से कटते जंगल और ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन ने मिल कर बाढ़ की समस्या को गंभीर बना दिया है. इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश में बीते कुछ वर्षों के दौरान पनबिजली परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर बांधों की मंजूरी दी गई है. उसके बाद खासकर वहां और पड़ोसी असम में बाढ़ की विनाशलीला तेज हुई है.
केंद्र सरकार की संस्था ब्रह्मपुत्र बोर्ड के सचिव वीडी राय बताते हैं कि बाढ़ से होने वाले नुकसान पर अंकुश के लिए बोर्ड पूरे साल कई उपायों पर काम कर रहा है. इसके तहत समय-समय पर संवेदनशील इलाकों का सर्वेक्षण किया जाता है और कई जगह अलग-अलग ढांचे बनाए जा रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि असम की बाढ़ पर अंकुश लगाने और जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए बहुआयामी उपाय जरूरी हैं. हर साल जो इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनको संवेदनशील की श्रेणी में रख कर वहां अलग उपाय किए जाने चाहिए. इसके अलावा नदियों के करीब किसी स्थायी निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
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