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समाज

असम के डिटेंशन सेंटरों में मौतों का सिलसिला जारी

प्रभाकर मणि तिवारी
२८ नवम्बर २०१९

असम के छह डिटेंशन सेंटरों में ऐसे 988 लोग रह रहे हैं जिनको विदेशी घोषित किया जा चुका है. वर्ष 2016 से अब तक इनमें से विभिन्न बीमारियों के चलते 28 लोगों की मौत हो चुकी है.

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Indien Maloibari
तस्वीर: Murali Krishnan

असम के डिटेंशन सेंटरों में रहने वाले लोगों की मौत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. भारत में केंद्र सरकार ने संसद में स्वीकार किया है कि वर्ष 2016 से अब तक इनमें से विभिन्न बीमारियों के चलते 28 लोगों की मौत हो चुकी है. मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि डिटेंशन सेंटरों में हालात बेहद अमानवीय हैं और खाने-पीने व चिकित्सा की समुचित सुविधाएं नहीं हैं. लेकिन असम सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है. इन मौतों पर विवाद तेज होने के बाद राज्य सरकार ने बीते महीने इनकी जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया था. लेकिन समिति के गठन के बाद भी कम से कम दो लोगों की मौत हो चुकी है.

केंद्र सरकार ने पहली बार इन केंद्रों में मौत की बात स्वीकार की है. वैसे, इन डिटेंशन सेंटरों में रहने वालों की हालत पर पहले भी अक्सर सवाल उठते रहे हैं. बीते महीने दो लोगों की मौत के बाद उनके परिजनों ने शव लेने से भी इंकार कर दिया था. इन सेंटरों में उन लोगों को रखा जाता है जिनको विदेशी न्यायाधिकरणों की ओर से विदेशी घोषित किया जा चुका है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक सवाल के जवाब में बताया कि असम के छह नजरबंदी शिविरों में 988 विदेशी नागरिकों को रखा गया है. राय ने बताया, "असम सरकार से मिली 22 नवंबर, 2019 तक की जानकारी के मुताबिक, राज्य के छह डिटेंशन सेंटरों में 988 विदेशी लोग रह रहे है. इन सेंटरों में मेडिकल समेत सभी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं.वहां रहने वालों को अखबार, टीवी, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लाइब्रेरी, योग, ध्यान आदि सुविधाएं दी जा रही हैं. साथ ही यहां नियमित तौर पर चिकित्सा शिविर लगाए जा रहे हैं.” लेकिन मुआवजे से संबधित एक पूरक सवाल पर मंत्री ने कहा कि गैरकानूनी ढंग से देश में आने वाले और रहने वालों के पकड़े जाने पर नजरबंदी के दौरान बीमारी से मौत होने पर मुआवजा या हर्जाना देने का कोई प्रावधान नहीं है.

कौन लोग हैं डिटेंशन सेंटर में

केंद्र सरकार के दावे के बावजूद राज्य के छह डिटेंशन सेंटरों की हालत पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. वहां रहने वालों को आम कैदियों की तरह न तो काम करने का अधिकार है और न ही पैरोल समेत दूसरी सुविधाएं हासिल हैं. असम में इस साल मार्च तक कुल 1.17 लाख लोगों को विदेशी घोषित किया जा चुका था. इस साल जुलाई में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया था कि 31 मार्च 2019 तक कुल 1,17,164 लोगों को न्यायाधिकरणों ने विदेशी घोषित किया था. दस मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डिटेंशन सेंटर में तीन साल से ज्यादा रहे लोगों को रिहा किया जाए. लेकिन इसके बावजूद कई लोग लंबे अरसे से वहां रह रहे हैं.

एनआरसी की अंतिम सूची जारी होने से पहले इन विदेशी न्यायाधिकरणों के कई फैसलों की वजह से असम में विवाद की स्थिति पैदा हुई थी. इसके साथ ही न्यायाधिकरणों की ओर से लोगों को विदेशी घोषित करने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठे थे. दरअसल, इस साल मई महीने में कारगिल युद्ध में शामिल रहे सेना के पूर्व अधिकारी मोहम्मद सनाउल्लाह को विदेशी घोषित कर उन्हें एक डिटेंशन सेंटर में भेज दिया गया था. हालांकि कुछ दिन बाद ही उनको रिहा कर दिया गया. उनके परिवार ने विदेशी न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ गुवाहाटी हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी.इसी तरह एक बुजुर्ग महिला को भी विदेशी घोषित कर ऐसे सेंटर में भेज दिया गया था. उसे उन्हें तीन साल हिरासत में रखने के बाद रिहा किया गया. इस मामले में पुलिस ने स्वीकार किया था कि वह गलत पहचान की शिकार हुईं. दरअसल पुलिस ने मधुमाला दास की जगह 59 वर्षीय मधुबाला मंडल को पकड़ लिया था.

समिति गठित

बीते महीने इन केंद्रों में रहने वाले दो लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत के बाद राज्य सरकार ने सीमा पुलिस के डीआईजी के नेतृत्व में एक विशेष समीक्षा समिति का गठन किया था. यह समिति तमाम डिटेंशन सेंटरों का दौरा कर वहां की हालत की समीक्षा कर उनमें सुधार की सिफारिश करेगी. यह समिति उन सेंटरों में रहने वालों को मिलने वाले भोजन और दूसरी परिस्थितियों की समीक्षा कर सरकार को तीन महीने में रिपोर्ट सौंपेगी.

इन सेटरों में रहने वालों की हालत पर सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदार ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. उससे पहले भी कई संगठन इस बारे में जनहित याचिकाएं दायर कर चुके हैं. बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इन डिटेंशन सेंटरों के लिए एक मैनुअल तैयार करने को कहा था. लेकिन अब तक यह तैयार नहीं हो सका है. सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग आदेश के बावजूद हालात में खास सुधार नहीं हुआ है. यही वजह है कि इन सेंटरों में रहने वाले असमय ही मौत के मुंह में समा रहे हैं.

इन सेंटरों के साथ ही राज्य के विभिन्न जिलों में काम कर रहे लगभग सौ विदेशी न्यायाधिकरणों की कार्यप्रणाली पर भी अक्सर सवाल उठते रहे हैं. कई संगठन न्यायाधिकरणों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता के अभाव का आरोप लगाते रहे हैं. अब असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) की अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद संभावित विदेशियों को रखने के लिए सरकार ने 10 नए डिटेंशन सेंटर बनाने का फैसला किया है. इनमें से पहला सेंटर ग्वालपाड़ा में 46 करोड़ की लागत से बन रहा है. वहां तीन हजार विदेशी कैदियों को रखा जा सकेगा.

अमानवीय हालात

असम के सिलचर स्थित एक गैर-सरकारी संगठन ने राज्य के डिटेंशन सेंटरों में अमानवीय परिस्थिति होने का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि वहां मौलिक सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं. उसका आरोप है कि इन सेंटरों में रहने वालों को समुचित इलाज तक नहीं किया जाता. नार्थ ईस्ट लिंगुइस्टिक एंड इथिनिक कोआर्डिनेशन कमिटी के सदस्य शुभ्रांशु भट्टाचार्य कहते हैं, "डिटेंशन सेंटरों की हालत बेहद अमानवीय है. वहां न तो साफ-सफाई है और न ही मौलिक सुविधाएं.” संगठन की दलील है कि इन केंद्रों को जेलों से अलग कर वहां रहने वालों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.

भट्टाचार्य कहते हैं, "केंद्र व राज्य सरकारों के साथ ही न्यायपालिका को भी इन डिटेंशन सेंटरों की अमानवीय परिस्थिति को सुधारने की पहल करनी चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में वहां मौतों की सिलसिला जारी रहने का अंदेशा है.”

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