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समाज

अमीरों और गरीबों के बीच पिस रही हैं महिलाएं

२१ जनवरी २०१९

अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमीरों और गरीबों में बढ़ते फासले का असर खास कर महिलाओं पर पड़ रहा है.

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Ein Oxfam-Zeichen wird an einer Wand in Corail, einem Lager für Vertriebene des Erdbebens von 2010, am Stadtrand von Port-au-Prince, Haiti gesehen
तस्वीर: Reuters/A.Martinez Casares

दावोस में होने वाली सालाना विश्व आर्थिक फोरम से ठीक पहले ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट जारी कर दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों का ध्यान अमीरों और गरीबों में बढ़ते फासले की ओर खींचने की कोशिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2018 के बीच में मात्र 26 लोगों के पास उतनी संपत्ति थी जितनी दुनिया के कुल 3.8 अरब गरीब लोगों के पास है. यह आंकड़ा स्विस बैंक क्रेडिट सुइस और फोर्ब्स पत्रिका की दुनिया के सबसे रईस लोगों की सूची के आधार पर तैयार किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार इन 26 लोगों की दौलत प्रति दिन औसतन ढाई अरब डॉलर की दर से बढ़ रही है. 

ऑक्सफैम के कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानयीमा ने अपने बयान में कहा कि यह "अस्वीकार्य" है, "जहां एक तरफ कंपनियां और रईस कम टैक्स का फायदा उठा रहे हैं, वहीं लाखों लडकियां शिक्षा के अधिकार से महरूम रहती हैं और महिलाएं मातृत्व में देखभाल के अभाव से जान गंवा रही हैं." रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर दुनिया के सबसे रईस एक फीसदी लोगों की संपत्ति पर मात्र 0.5 फीसदी ज्यादा टैक्स लगा दिया जाए, तो इससे उतना धन मिल सकता है जिससे लाखों गरीब बच्चियां स्कूल जा सकेंगी और लाखों महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकेंगी.

ब्यानयीमा ने कहा कि सरकारों को सुनिश्चित करना होगा कि बड़ी कंपनियां और धनी लोग अपने हिस्से का कर चुकाएं और फिर इस कर का लड़कियों और महिलाओं के कल्याण के लिए सही तरह से निवेश किया जा सके. उनका कहना है कि दावोस में मिलने वाले लोगों के पास वह ताकत है कि वे दुनिया में फैलती इस असमानता का अंत कर सकें. ब्यानयीमा खुद हर साल इस सम्मेलन में हिस्सा लेते हैं. वे कहते हैं, "समाधान हैं और इसीलिए तो हम दावोस में आते हैं, ताकि इन नेताओं को याद दिला सकें कि आपने वायदे तो किए हैं, अब कुछ कर के भी दिखाएं. नीतियां हैं, उपाय सिद्ध भी किए जा चुके हैं."

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में सुझाया है कि महिलाएं अपनी जिंदगी के जो लाखों घंटे बिना किसी मेहनताने के घर के काम करती हैं, परिवार का ध्यान रखती हैं, उसकी ओर भी ध्यान दिया जाए और महिलाओं को बजट से जुड़े फैसलों में हिस्सेदार बनाया जाए. साथ ही सरकारों को हिदायत दी गई है कि बिजली, पानी और बच्चों की देखभाल पर ज्यादा खर्च किया जाए ताकि बगैर मेहनताने वाले काम करने में महिलाओं को कम से कम वक्त लगे. इसके अलावा जन सुविधाओं के निजीकरण से बचने की भी बात कही गई है.

ऑक्सफैम की रिपोर्ट हर साल जारी होती है और हर साल ही इस पर खूब चर्चा भी होती है. लेकिन इसके आलोचकों का कहना है कि रिपोर्ट पश्चिमी देशों के कुछ चुनिंदा अध्ययनों के आधार पर तैयार की जाती है और इसके नतीजे व्यवहारिक नहीं होते. अमीरों से धन ले कर गरीबों में बांटने की ऑक्सफैम की रॉबिन हुड वाली नीति भी लगातार सवालों के घेरे में रहती है.

आईबी/एके (रॉयटर्स, एएफपी)

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