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अफगानिस्तान में पाकिस्तान अमेरिका के साथ नहीं

२८ अप्रैल २०११

अमेरिकी राष्ट्रपति ने तो तुरंत कह दिया कि आतंकवाद से जंग में पाकिस्तान सहयोगी बना रहेगा लेकिन अमेरिका में ही ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके मुताबिक इस बात के पक्के संकेत हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तान अमेरिका के साथ नहीं है.

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अफगानिस्तान में साथ पर सवाल जवाबतस्वीर: AP

दक्षिण एशियाई मामलों के माने हुए अमेरिकी जानकार ने कहा है कि इस बात के पर्याप्त संकेत मिले हैं कि अफगानिस्तान की लड़ाई में पाकिस्तान अमेरिका के साथ नहीं है. हेरिटेज फाउंडेशन की लीसा कर्टिस ने साफ साफ कहा, "पिछले एक साल के दौरान इस बात के पर्याप्त संकेत मिले हैं कि पाकिस्तान अफगानिस्तान के लिए अमेरिकी नीति का हिस्सा नहीं है. यह बात किसी के लिए चौंकाने वाली नहीं है."

अमेरिकी दामन छोड़े

लीसा अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जरनल में छपी खबर पर प्रतिक्रिया दे रही थीं. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा ने हाल की काबुल यात्रा के दौरान अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से कहा कि अफगानिस्तान को अमेरिका का दामन छोड़ कर, पाकिस्तान और चीन की मदद लेकर तालिबान से शांति वार्ता और अफगानिस्तान का पुनर्निर्माण शुरु करना चाहिए.

अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी ने इन खबरों को खारिज करते हुए कहा, "गिलानी और करजई के बीच चर्चा में पाकिस्तान की तरफ से अमेरिका से अलग होने के लिए सुझाव देने वाली खबरें गलत हैं." पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय तो इससे एक कदम और आगे निकल गया और उसने कहा, "इससे ज्यादा मूर्खतापूर्ण खबर तो आज तक आई ही नहीं." अमेरिकी अखबार में कहा गया है कि गिलानी करजई को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि वह अमेरिका का साथ छोड़ कर चीन और पाकिस्तान के साथ जुड़ जाएं, दोनों अफगानिस्तान में स्थायी अमेरिकी बेस के पक्ष में नहीं हैं.

सहयोगी है

अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव जे कार्ने से जब इन खबरों पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो उनका कहना था, "पाकिस्तान अभी भी अमेरिका का सहयोगी है."

लीसा कर्टिस का कहना है कि इन खबरों पर भरोसा किया जा सकता है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान और चीन के साथ अपने दांव खेलने के फैसला लिया है जिससे कि वह अफगानिस्तान में अपने मकसद में कामयाब हो सके. कर्टिस ने कहा, "पाकिस्तान ने अपने रणनीतिक हितों के लिए कड़ी भाषा के इस्तेमाल में कभी झिझक नहीं दिखाई, वह सख्त भाषा और कूटनीतिक कुशलता को मिलाने में काफी दक्ष हैं. हम उम्मीद कर सकते हैं कि पाकिस्तानी राजनयिकों की तरफ से सख्त भाषा में कुछ और इनकार आएंगे."

कर्टिस ने सलाह दी है कि अमेरिका को पाकिस्तानी कार्रवाइयों की पड़ताल करनी चाहिए ना कि उनके बयानों और कथित बयानों की. उन्हें यह देखना चाहिए कि क्या पाकिस्तान से साझेदारी आपसी उद्देश्यों को पूरा कर रही है.

Hamid Karzai Afghanistan in Kunar
अफगानी राष्ठ्रपति हामिद करजईतस्वीर: DW/Shama Ahmadzai

साझेदारी अहम

कर्टिस ने कहा, "पिछले 10 साल में पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद देने और आतंकवाद से जंग में दोमुंहे रवैये की खबरों पर कूटनीतिक संयम बनाए रखने के बाद अमेरिका को ये उम्मीद करनी चाहिए कि वह पाकिस्तान की जमीन पर तालिबान के गढ़ और अलकायदा से तालिबान को आजाद करने की पाकिस्तानी कोशिशों में गंभीरता देखेगा." उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान और अमेरिका अपनी साझेदारी टूटना सहन नहीं कर सकते हैं.

समझेगा पाकिस्तान

कर्टिस के मुताबिक, "अमेरिका इस बात की इजाजत नहीं दे सकता कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान को दोबारा स्थापित कर दे. पाकिस्तान की सीमा भले ही अफगानिस्तान से जुड़ी है लेकिन 11 सितंबर के हमलों ने ये साफ कर दिया कि अमेरिका इस इलाके में लंबे समय तक सैन्य और कूटनीतिक रूप से दखल देता रहेगा."

कर्टिस ने यह भी कहा, "अगर ओबामा प्रशासन अफगान मिशन के लिए पूरी प्रतिबद्धता दिखाएगा तो पाकिस्तानी नेतृत्व को भी यह बात समझ में आएगी और आतंकवाद को उखाड़ फेंकने में हमारा ज्यादा सहयोग करेंगे जो उनके स्थायित्व के लिए भी खतरा है."

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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