अफगानिस्तान में चरम पर बाल मजदूरी
६ दिसम्बर २०१४आठ साल की फातिमा न ही साफ सुथरी स्कूल यूनिफॉर्म में है और न ही वह हंस रही है या फिर अन्य सहपाठियों के साथ खेल रही है. वह मेहनत के साथ अपना काम कर रही है. वह स्कूल के बाहर अन्य लड़कियों को आइसक्रीम बेचती है. आइसक्रीम के छोटे ठेले के जरिए उसकी कोशिश पर्याप्त कमाने की है जिससे उसके विकलांग पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का पेट पल सके.
फातिमा भी अपने छोटे ग्राहकों की तरह स्कूल जाने के लिए तरसती है लेकिन वह परिवार की एकमात्र पैसा कमाने वाली सदस्य है. फातिमा के पिता, उसकी दो पत्नी और छह बच्चे टूटे फूटे मकान के दो कमरों में किराये पर रहते हैं. घर पर एक पलंग और कुछ अन्य समान है.
मेहनत में घुलता बचपन
फातिमा सुबह सात बजे से लेकर शाम के चार बजे तक काम करती है. उसके लंबे दिन की शुरुआत होलसेलर के यहां से आइसक्रीम लेने से होती है. उसके बाद वह ठेला गाड़ी को हेरात के उबड़ खाबड़ रास्तों पर ढकेल कर स्कूल तक ले जाती है.
फातिमा कहती है, "मेरा एकमात्र और सबसे बड़ा सपना पैसे कमाना है, जिससे मुझे काम करना नहीं पड़े और मैं अन्य लड़कियों की तरह स्कूल जा पाऊं. जब मैं इस स्कूल के बाहर आइसक्रीम बेचती हूं और अन्य लड़कियों को अंदर जाते हुए देखती हूं तो मुझे भी लगता है कि काश मैं भी ऐसा कर पाती."
अफगानिस्तान में बाल मजदूरी आम है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) के मुताबिक 7 से 14 वर्ष की आयु वाली 17 फीसदी लड़कियां या तो घर के बाहर काम करती हैं या फिर पूरे समय घर का कामकाज करती हैं.
फातिमा थोड़ा बहुत ही कमा पाती है और पूरी कमाई परिवार की देख रेख और खान पान में चली जाती है. उनके पिता ईरान में काम करते वक्त घायल हो गए थे और तभी से व्हील चेयर पर हैं. जिस दिन उसके पिता की तबीयत बेहतर होती है तो वह अपनी बेटी की मदद की कोशिश मोबाइल फोन कार्ड बेचकर करते हैं. घर पर भी फातिमा अपने पिता की देख रेख का काम संभालती है. छोटी बच्ची के लिए यह बहुत भारी बोझ है.
फातिमा कहती है, "आइसक्रीम खाना मेरी पहुंच में नहीं है, हालांकि वह मुझे पसंद है. मुझे गरीबी में जीना पसंद नहीं."
एए/एजेए(एएफपी)