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अकेला पड़ने लगा है ट्रंप का अमेरिका

१८ मई २०१८

ट्रंप जैसा दोस्त हो, तो दुश्मन की क्या जरूरत है. डॉनल्ड ट्रंप के फैसलों ने अमेरिका और यूरोप की 73 साल पुरानी दोस्ती में गांठ लगा दी है. भारत का भी हाल अलग नहीं है.

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Symbolbild Verhältnis USA Deutschland
तस्वीर: picture-alliance/R. Peters

82 फीसदी जर्मनों का मानना है कि डॉनल्ड ट्रंप का अमेरिका अब भरोसमंद पार्टनर नहीं रह गया है. जर्मनी के सरकारी ब्रॉडकास्टर जेडडीएफ के सर्वे में यह बात सामने आई है. जेडडीएफ ने साप्ताहिक शो पॉलिटबारोमीटर के लिए यह सर्वेक्षण कराया.

सर्वे में सिर्फ 14 फीसदी लोगों ने माना कि अमेरिका अब भी जर्मनी का भरोसेमंद साझेदार है. चार फीसदी लोगों ने "मुझे नहीं मालूम" कहते हुए जवाब दिया. अमेरिका और जर्मनी 1945 में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद से अहम साझेदार हैं. लेकिन ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह भरोसा टूटता दिख रहा है.

ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के 16 महीने बाद हुए इस सर्वे में 94 फीसदी जर्मनों ने कहा कि अमेरिका के बदले रुख के बाद अब यूरोपीय संघ को और ज्यादा अंदरूनी सहयोग की जरूरत है. लेकिन सिर्फ 20 फीसदी लोगों को लगता है कि यूरोपीय संघ सफलतापूर्वक ऐसा कर सकेगा. 26 फीसदी को आशंका है कि यूरोपीय संघ के बीच आपसी सहयोग और कमजोर होगा.

कहां जाए जर्मनी?

सर्वे में हिस्सा लेने वाले 36 फीसदी लोगों ने रूस को जर्मनी का मजबूत सहयोगी कहा. लेकिन 58 फीसदी लोग विदेश नीति के मामलों में रूस को अविश्सनीय पार्टनर मानते हैं. 43 फीसदी लोगों को लगता है कि नया मजबूत साझेदार चीन हो सकता है. इतने ही लोग बीजिंग के साथ साझेदारी को लेकर चिंता जता रहे हैं.

रूस पर सबसे ज्यादा भरोसा जताने वालों में जर्मनी की दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी के समर्थक सबसे आगे हैं. एएफडी के 61 फीसदी समर्थकों ने क्रेमलिन को जर्मनी का सबसे बढ़िया विदेशी साझेदार बताया. लेफ्ट पार्टी के 45 फीसदी लोगों की ऐसी ही राय है. लेकिन ग्रीन पार्टी और मुख्य धारा की तीन बड़ी पार्टियों के ज्यादातर समर्थक इसके बिल्कुल खिलाफ हैं.

अंतरराष्ट्रीय राजनीति बड़ी तेजी से करवट ले रही है. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका धीरे धीरे अकेला पड़ता जा रहा है. पेरिस में हुई जलवायु संधि से बाहर निकलना, चीन और यूरोप के साथ सीमा शुल्क विवाद और ईरान डील से बाहर निकलना दुनिया भर के देशों को परेशान कर रहा है. ईरान डील और नाटो के बजट को लेकर ट्रंप के रुख से यूरोपीय साझेदार नाराज हो चुके हैं.

यही वजह है कि जर्मनी और रूस फिर से रिश्तों में गर्माहट लाना चाह रहे हैं. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक बार फिर रूस के साथ ठंडे पड़ते संबंधों में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. ट्रंप के रुख से आहत देश अब चीन और रूस की तरफ झांक रहे हैं. बीजिंग और मॉस्को दुनिया को यह यकीन दिलाने की भरसक कोशिश करेंगे कि दुनिया अमेरिका के बिना भी चल सकती है.

ओएसजे/एमजे (डीपीए)