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“हर मर्द, औरत, बच्चा भारत के खिलाफ लड़ेगा”

विवेक कुमार३ जून २०१६

कश्मीर बदल रहा है. कश्मीरी बदल रहे हैं. अब गोली चलने पर वे घर के अंदर नहीं रहते, सामने आ जाते हैं. आतंकवादियों की ढाल बनकर सेना की बंदूकों के सामने खड़े हो जाते हैं.

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Indien Protest
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

फरवरी की उस सुबह कश्मीर में भारतीय सैनिक लेलहार के एक गांव के इर्द-गिर्द जमा हो रहे थे. वे लोग पोजिशंस ले रहे थे. खबर मिली थी कि गांव में तीन आतंकवादी छिपे हैं. उन्हीं को घेरने की तैयारी हो रही थी. लेकिन अचानक सैनिक चौंक गए. उन पर पत्थर बरसने लगे थे. स्थानीय ग्रामीण पथराव कर रहे थे. यह एकदम नई बात थी क्योंकि आमतौर पर जब सेना किसी गांव को घेरती थी तो ग्रामीण अपने-अपने घरों में घुसकर दरवाजे बंद कर लेते थे. लेकिन उस सुबह वे पथराव कर रहे थे और सैनिकों को चले जाने को कह रहे थे. इसी बीच आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी. अब सेना को दो मोर्चों पर लड़ना था. इस लड़ाई में एक आतंकवादी मारा गया और साथ में दो छात्र भी. बाकी दो आतंकवादी भागने में कामयाब रहे.

यह घटना एक संकेत है कि कश्मीर के लोग बदल रहे हैं. अब भारतीय सेना कोई कार्रवाई करती है तो स्थानीय लोग सैकड़ों और कई बार तो हजारों की तादाद में जमा हो जाते हैं. कश्मीर में दशकों से चल रही सैन्य कार्रवाइयों से स्थानीय लोग आजिज आ चुके हैं. लेलहार के अब्दुल राशिद कहते हैं, “अब हम सब के सब आतंकवादी हैं. हमारे मर्द, औरतें और बच्चे भारतीय शासन के खिलाफ लड़ाई में सैनिक हैं. पत्थर हमारे हथियार हैं.”

सेना जब लेलहार के उसी गांव में अप्रैल में लौटी तो ग्रामीण फिर से तैयार थे. मस्जिदों से ऐलान हो रहा था कि औरतें और बच्चे भारतीय सैनिकों को खदेड़ने के लिए आगे आएं. सैनिकों का स्वागत पत्थरों से हुआ. तीखी झड़पें हुईं लेकिन इस बार सेना ने गोली नहीं चलाई. तीन आतंकवादी भागने में कामयाब रहे.

भारतीय सैन्य अधिकारियों का अनुमान है कि इलाके में लगभग 200 आतंकवादी हैं. 1990 के दशक में यह संख्या 20 हजार है लिहाजा एक बड़ी गिरावट तो दर्ज हुई है. लेकिन अधिकारी कहते हैं कि अब उनका काम ज्यादा मुश्किल हो गया है क्योंकि ग्रामीण कार्रवाई के बीच में आने लगे हैं. वरिष्ठ कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुड्डा कहते हैं, “यह बड़ी दिक्कत है. आतंकवाद विरोधी कार्रवाई करना अब हमारे लिए काफी मुश्किल हो गया है. सच कहूं तो अब बड़ी भीड़ हो तो मैं ऑपरेशन करने के पक्ष में नहीं होता. सेना के तौर पर हम जो कर सकते थे, कर चुके हैं.” लेफ्टिनेंट जनरल हुड्डा बड़ी बात कहते हैं. उन्होंने कहा कि सहानुभूति जीतने की लड़ाई तो हम हार रहे हैं.

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दरअसल, आतंकवादी कम हो गए हैं लेकिन उनका प्रभाव बढ़ गया है. मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज कहते हैं कि अब बम और बंदूकों के अलावा उनके पास स्मार्टफोन जैसे हथियार भी हैं. उनके मुताबिक आतंकवादी गांव में अपने समर्थकों के साथ संपर्क करते हैं और गतिविधियां तय करते हैं. सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी करते हैं. परवेज कहते हैं, “अब यह एक सांकेतिक आतंकवाद जैसा है. आतंकवादियों को हीरो बनाया जाता है. विरोध और विद्रोह को आकर्षक बनाया जाता है और आजादी के लिए समर्थन जुटाया जाता है. लोग उनकी बात सुनते हैं और अब खुल्लमखुल्ला उनका साथ देते हैं.”

सेना इस बात से काफी चिंतित है. वरिष्ठ सैन्य अधिकारी नलिन प्रभात कहते हैं, “एक सामान्य आतंकवादी विरोधी ऑपरेशन के दौरान कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा बन जाती है. उसे संभालना असल ऑपरेशन से भी ज्यादा मुश्किल काम हो जाता है. यह बहुत बड़ी चिंता की बात है.”

सेना इसके लिए दूसरे तरीके अपना रही है. मसलन स्कूलों में युवाओं तक पहुंचकर उनसे संपर्क बनाने की कोशिश. स्कूलों में वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित कराना, भारत भ्रमण जैसे कार्यक्रम आयोजित करना और खेल कार्यक्रमों में उन्हें ले जाना ताकि वे भारत विरोधी आंदोलनों और आतंकवादियों से दूर रहें. लेकिन यह कथित “गुडविल ऑपरेशन” ज्यादा कामयाब नहीं हुआ है. कश्मीर दुनिया के उन इलाकों में है जहां सबसे ज्यादा हथियार हैं. सबसे ज्यादा सेना तैनात है और जिन्हें सबसे खतरनाक इलाके कहा जाता है. जब घर से निकलते ही बंदूक लिए फौजी नजर आए, तो बच्चों को विद्रोह से दूर करना संभव कैसे हो पाएगा? इसलिए कश्मीर बदल रहा है. 48 साल के एक ग्रामीण के शब्दों में, अब लोगों के मन का डर निकल गया है, हर कोई कहता है, करो या मरो.

वीके/आईबी (एपी)

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