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पनामा लीक पर सरकार का आश्वासन या महज जुमला?

कुलदीप कुमार५ अप्रैल २०१६

पनामा दस्तावेज इस धारणा को और पुष्ट करते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में लोकतंत्र वास्तव में "जनता के द्वारा, जनता का और जनता के लिए" शासन नहीं, बल्कि "पूंजीपतियों के द्वारा, पूंजीपतियों का और पूंजीपतियों ले लिए" शासन है.

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Panama Papers Mossack Fonseca Webseite
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.Pelaez

जर्मनी के दैनिक जुडडॉयचे साइटुंग ने पनामा की कंपनी मोसैक फॉन्सेका के एक करोड़ दस लाख से भी अधिक गोपनीय दस्तावेज हासिल करके इंटरनेश्नल कंसॉर्टियम ऑफ ​इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म और 100 से भी अधिक मीडिया संगठनों के साथ मिलकर उनकी गहन जांच की है. इन मीडिया संगठनों में भारत का अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस भी शामिल है जिसने सोमवार और मंगलवार को अपने मुखपृष्ठ पर उन कुछेक जाने-माने भारतीयों के बारे में सनसनीखेज विवरण प्रकाशित किया है जिन्होंने टैक्स बचाने के लिए पनामा की इस कंपनी के जरिये उन देशों में फर्जी कंपनियां खोलीं जहां टैक्स नहीं लगता.

इनमें हिन्दी फिल्म जगत के शिखर पुरुष अमिताभ बच्चन और उनकी पुत्रवधू एवं प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय, चोटी के वकील हरीश साल्वे, भवन निर्माण क्षेत्र के शीर्षस्थ उद्योगपति कुशल पाल सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीब माने जाने वाले उद्योगपति गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी समेत 500 से भी अधिक भारतीयों के नाम शामिल हैं और इनमें एक नाम कुख्यात माफिया सरगना और आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के सहयोगी इकबाल मिर्ची का भी है. उल्लेखनीय बात यह है कि हाल ही में यह चर्चा खासी जोरों पर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले राष्ट्रपति के लिए अमिताभ बच्चन को उम्मीदवार बनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं.

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे

दरअसल पनामा दस्तावेज जनता की इस धारणा को और पुष्ट करते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में लोकतंत्र वास्तव में "जनता के द्वारा, जनता का और जनता के लिए" शासन नहीं बल्कि "पूंजीपतियों के द्वारा, पूंजीपतियों का और पूंजीपतियों ले लिए" शासन है. अभी कुछ ही दिनों पहले खबर थी कि बैंकों ने, जिनमें अधिकांश सरकारी बैंक हैं, उद्योगपतियों के डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज माफ किए थे.

31 मार्च 2015 तक देश के पांच प्रमुख सरकारी बैंकों का केवल उन चवालीस कर्जदारों पर चार लाख सत्तासी करोड़ रुपया बकाया था जिन्होंने बैंक से पांच हजार करोड़ या उससे अधिक का कर्ज लिया था. पनामा दस्तावेजों से पता चलता है कि भारत ही नहीं, दुनिया भर के अमीर एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, फिर वे चाहे उद्योगपति हों, अभिनेता या वकील हों, या नवाज शरीफ और व्लादिमीर पुतिन जैसे राजनेता हों. इन्हें टैक्स का स्वर्ग कहे जाने वाले बाहामास या मॉरीशस जैसे देशों में पैसा इसलिए भेजना पड़ता है क्योंकि वे जितना अपनी सरकारों को बताते हैं, उससे कई गुना ज्यादा अमीर हैं.

इधर से उधर घूमता पैसा

जहां तक भारत का सवाल है, जब यहां कोई "उद्योगपति" नई परियोजना की शुरुआत करता है, तो अक्सर उसकी लागत को कई गुना बढ़ा कर दिखाया जाता है. उसके लिए मशीनरी और अन्य जरूरी सामान सप्लाई करने वाले उसे ऑर्डर के बदले कमीशन देते हैं जो कहीं दिखाया नहीं जाता. यानि जो जितनी अधिक परियोजनाएं या कारखाने शुरू करता है, वह उतना ही अधिक धनी होता जाता है. इस काले धन को मोसैक फॉन्सेका जैसी कंपनियों के जरिये फर्जी कंपनियां खोल कर उनमें लगा दिया जाता है. फिर सिंगापुर या मॉरीशस जैसे देशों के जरिये इसे भारत में लाया जाता है.

आश्चर्य नहीं की 2015 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देशों में मॉरीशस और सिंगापुर का नाम सबसे ऊपर था और उन्होंने कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का क्रमशः 27 प्रतिशत एवं 21 प्रतिशत निवेश किया था. पनामा, केमैन आइलैंड्स, बेरमुडा और लिष्टेनश्टाइन जैसे देशों में जमा धन मॉरीशस और सिंगापुर जैसे देशों में स्थित कंपनियों के जरिये भारत में वापस लाया जाता है.

सरकार पर भरोसा नहीं

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर एक बहु-एजेंसी विशेष जांच दल का गठन किया जा रहा है जो इंडियन एक्सप्रेस में किए जा रहे रहस्योद्घाटन की तह तक पहुंचेगा और किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा. अगर ऐसा होता है तो आम नागरिक का सरकार और लोकतंत्र में विश्वास बहाल होगा लेकिन चाहते हुए भी इस आश्वासन पर भरोसा नहीं होता. अक्सर इस तरह के मामलों में यह दलील दी जाती है कि यदि दोषियों को सजा दी गई तो पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाएगी. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के कारण मजबूर होकर जब भारतीय रिजर्व बैंक ने उसे उन उद्योगपतियों के नाम सौंपे जिन्होंने बैंकों का कर्जा नहीं लौटाया है, तो साथ ही यह जोरदार आग्रह भी किया कि इनके नाम सार्वजनिक न किए जाएं.

क्या मोदी सरकार अडानी समूह के खिलाफ कार्रवाई कर पाएगी जिसके साथ प्रधानमंत्री की निकटता जगजाहिर है? आने वाले दिन ही इस बात का फैसला करेंगे कि जेटली का यह बयान कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा, गंभीरता से किया हुआ वादा है या सिर्फ जुमला ही है!

ब्लॉग: कुलदीप कुमार