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भारत को भरोसा दिलाए पाकिस्तान

ग्रैहम लूकस/एमजे१३ अगस्त २०१५

भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता की तैयारियों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में अहम प्रगति के आसार नहीं हैं. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि दोनों पड़ोसियों के रिश्ते कश्मीर में हिंसा के कारण और खट्टे हो गए हैं.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

हाल के महीनों में इस बात के संकेत थे कि भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सालों के संदेह और दुश्मनी को पीछे छोड़ने और पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश करेंगे. उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को मई 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने का अप्रत्याशित कदम उठाया. और पिछले ही महीने मोदी और शरीफ ने रूस में हुई मुलाकात में शांति वार्ता का नया दौर शुरू करने का फैसला लिया. लेकिन इन प्रयासों के बावजूद संबंधों में बेहतरी की संभावना धूमिल लगती है. दोनों ही देशों में समझौते के लिए भारी विरोध है. दोनों देश ऐसी रियायतें मांग रहे हैं जो दूसरा देश देना नहीं चाहता या दे नहीं सकता.

भारत के विदेशनीति निर्माताओं के नजरिये से नई दिल्ली को इसका सबूत चाहिए कि पाकिस्तान शांति और उससे होने वाले फायदे के प्रति गंभीर है. यह प्रधानमंत्री शरीफ के भी हित में है यदि वे बेरोजगारी पर काबू पाना चाहते हैं. लेकिन पाकिस्तान की असैनिक सरकार हमेशा ही सेना की दया पर निर्भर रही है. और अब भी कुछ बदला नहीं है. सेना को अपने वर्चस्व के लिए भारत के साथ तनाव चाहिए, लड़ने वाली टुकड़ी के रूप में भी और अर्थव्यवस्था में प्रमुख हिस्सेदार के रूप में भी. और जब भी सेना को अपना हित खतरे में दिखता है, सेना का ताकतवर जासूसी तंत्र आईएसआई भारत को उकसाने के लिए गैरसरकारी तत्वों को इस्तेमाल शुरू कर देता है. पड़ोसी से तीन युद्ध हारने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि आईएसआई अपने बड़े पड़ोसी को लेकर हमेशा सशंकित रहता है.

आईएसआई को काबू में लाने की इस्लामाबाद में असैनिक सरकार की सारी कोशिशें नाकाम रही हैं और होती रहेंगी. सालों से विभाजित कश्मीर आईएसआई के रुख का बैरोमीटर रहा है. सीमापार से इस्लामी आतंकवादियों का आना भारत के साथ संबंध सामान्य करने के इस्लामाबाद के प्रयासों के लिए आईएसआई के विरोध का संकेत देता है. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मोदी-शरीफ भेंट के बाद भारतीय कश्मीर में आतंकी हमले बढ़ गए हैं.

रिश्तों को सामान्य बनाने में दूसरी बड़ी बाधा 2008 में मुंबई के आतंकी हमलों में किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी से पाकिस्तान का इंकार करना है. इस हमले में करीब 170 लोग मारे गए थे. इस बात के सबूत हैं कि कम से कम आईएसआई ने आतंकी संगठन लश्करे तैयबा के लोगों के पाकिस्तान की भूमि से हमला करने के प्रयासों में भूमिका निभाई. लेकिन पाकिस्तान अपने नागरिकों की भागीदारी से इंकार करता रहा है. अब तक पाकिस्तान में ना तो इसके लिए किसी को सजा दी गई है और न ही भारत को सौंपा गया है. इतना ही नहीं संदिग्ध रिंगलीडर हाफीज सईद, जिसका मकसद दक्षिण एशिया में इस्लामिक राज्य का गठन है, वह लाहौर में पाकिस्तान पुलिस के संरक्षण में रहता है. अमेरिका ने उस पर 1 करोड़ डॉलर का इनाम घोषित कर रखा है.

23 अगस्त को नई दिल्ली में होने वाली शांति वार्ता से पहले दोनों पक्षों ने अपनी अपनी रणनीति तय कर रखी है. मोदी निश्चित तौर पर कामयाबी चाहेंगे ताकि वे अपने देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा सकें. लेकिन वे भारतीय जनमत के गुलाम हैं और उन्हें पाकिस्तान से इस बात का बाध्यकारी वादा चाहिए कि वह भारत के खिलाफ इस्लामी आतंकवाद का समर्थन नहीं करता. लेकिन जब तक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का देश की विदेशनीति पर दबदबा है इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती.