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सुरक्षा को प्राथमिकता

बैर्न्ड रीगर्ट/एमजे१९ जनवरी २०१५

बेल्जियम में पिछले दिनों एक संदिग्ध आतंकी हमले को रोक लिया गया जबकि फ्रांस इसमें चूक गया. सुरक्षा अधिकारियों को हमले रोकने के लिए औजार चाहिए. डॉयचे वेले के बैर्न्ड रीगर्ट का कहना है कि डाटा सुरक्षा को फिलहाल भूलना होगा.

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Belgien Sicherheit Polizei Armee Anti Terror vor US Botschaft 17.01.2015
तस्वीर: Reuters/E. Vidal

बेल्जियम अपने शहरों फेर्फियर्स और ब्रसेल्स में एक आतंकी नेटवर्क के खिलाफ छापों के जरिए नियोजित हमलों को रोकने में कामयाब रहा. इस देश में जहां आम तौर पर अक्सर आंखें मूंद ली जाती हैं और जटिल प्रशासनिक ढांचे के कारण कुछ हद तक अव्यवस्था दिखती है, असली खतरों की स्थिति में पुलिस और खुफिया सेवा ऐसे काम करते हैं जैसे उन्हें करना चाहिए. वे नागरिकों की सुरक्षा करते हैं. लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं है. ब्रसेल्स में पिछली मई में यहूदी म्यूजियम पर हुए हमले के बाद बेलजियम के पुलिस अधिकारियों ने सबक ली है. रोकथाम की कार्रवाई अब उनका मूलमंत्र है. सितंबर में भी पुलिस यूरोपीय आयोग के दफ्तर पर नियोजित हमले का समय रहते पता करने और उसे रोकने में कामयाब रही थी.

Deutsche Welle Bernd Riegert

निगरानी की जरूरत

पुलिस हमलावरों का पता करने में किस हद तक कामयाब रही है यह बात तकनीकी कारणों से नहीं बताई जा रही है. लेकिन आतंकी नेटवर्क के टेलिफोन संपर्क की निगरानी की इसमें अहम भूमिका है. स्मार्टफोन से मोबाइल और इंटरनेट में इंक्रिप्टेड संपर्क करने वाले आतंकियों का सामना करने के लिए पुलिस को आधुनिक और चतुर तकनीक चाहिए. अपराधियों का मुकाबला करना प्राथमिकता है, डाटा सुरक्षा की चिंता बाद में की जा सकती है. बेल्जियम में टेलिफोन और संचार डाटा की कॉपी करने का व्यापक कानून है. इसके विपरीत जर्मनी में इसके लिए कोई कानून नहीं है. यूरोपीय अदालत द्वारा पुराने कानून को निरस्त किए जाने के बाद यूरोपीय आयोग को अब बेहतर नियम तैयार करने होंगे. समय आ गया है कि इसके लिए तेजी से कदम उठाए जाएं.

इस्लामी चरमपंथियों और सीरिया तथा इराक जैसे देशों से वापस लौटने वाले जिहादियों से सचमुच का खतरा है. उसके गंभीर नतीजे हैं जैसा कि पेरिस के हमलों ने दिखाया है. इसलिए अब यूरोप में किसी को सुरक्षा अधिकारियों को जरूरी सूचनाएं और औजार हाथ में देने में देर नहीं लगानी चाहिए, जिनकी उन्हें आतंकवादियों को समय रहते पकड़ने के लिए जरूरत है. यह पैसेंजर डाटा के लिए भी लागू होता है जिसे यूरोप में अबतक केंद्रीय तौर पर न तो जमा किया जाता है और न ही उसका आकलन होता है. अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जाते समय अपने बारे में जानकारी देनी जरूरी होती है, फिर यूरोप में क्यों नहीं?

मौके का इस्तेमाल

स्वाभाविक रूप से इससे संभावित आतंकवादियों की यात्राओं को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन यूरोप के चरमपंथी युवाओं का ट्रेनिंग कैंपों में जाना मुश्किल जरूर हो जाएगा. पेरिस में शार्ली एब्दो के दफ्तर पर हमला करने वाले दोनों क्वाची भाई अमेरिका की उड़ान प्रतिबंध लिस्ट पर थे. उनका अमेरिका जाना संभव नहीं था लेकिन यूरोप में वे बेरकटोक के घूम सकते थे. यूरोप में पुलिस अधिकारियों को संभावित हमलावरों का पता करने और उनकी निगरानी करने के लिए अधिक लोगों की जरूरत है. यह स्कैंडल ही है कि फ्रांस ने पुलिसकर्मियों की कमी के कारण क्वाची भाइयों की निगरानी हमले से कुछ ही महीने पहले रोक दी थी. हमें जेल में इस्लामी कट्टरपंथियों को अलग थलग करने की भी जरूरत है ताकि जेल में लोग चरमपंथी न बन सकें.

इस सिलसिले में अमेरिकी खुफिया सेवा एनएसए के बारे में नए सिरे से विचार होना चाहिए. भारी निगरानी के कारण उसके पास विश्व भरे के आतंकी नेटवर्क के बारे में मूल्यवान जानकारियां हैं, जिसका यूरोपीय खुफिया सेवाएं भी इस्तेमाल कर रही हैं. डाटा सुरक्षा और निजता भी जरूरी है लेकिन क्या आतंकवाद से सुरक्षा के लिए हमें उसमें कुछ सीमाएं स्वीकर नहीं करनी चाहिए? आतंकी नेटवर्क के बारे में ज्यादा जानकारी से हर हमले को रोकना संभव नहीं होगा लेकिन यह कोशिश न करने की दलील नहीं हो सकती.

किसी यहूदी सुपर बाजार में या सड़क पर पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले चरमपंथी राक्षसों को रोकना आसान नहीं है. लेकिन यह हमलावर भी अकेला नहीं था, वह एक नेटवर्क का सदस्य था, उसकी गर्लफ्रेंड उसकी राजदार थी. उसने हथियार का बंदोबस्त बेल्जियम में किया. उसने जरूर किसी न किसी से बात की होगी, इसके निशान छोड़े होंगे. फ्रांसीसी अधिकारियों को समय रहते इसका पता नहीं चला. आखिर क्यों?