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पाकिस्तान: आतंकवाद का दंश झेलती विधवाएं और अनाथ बच्चे

एस खान, इस्लामाबाद
१२ मई २०२३

पाकिस्तान में आंतक से युद्ध और उसके बाद तालिबान के विद्रोह के कारण हजारों लोगों की जान जा चुकी है. मरने वाले अपने पीछे उन परिवारों को छोड़ गए हैं, जो टूट रहे हैं और महिलाएं उन्हें बचाने की कोशिश कर रही हैं.

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दुश्वार हुई पाकिस्तानी विधवाओं की जिंदगी
दुश्वार हुई पाकिस्तानी विधवाओं की जिंदगीतस्वीर: Saba Rehman/DW

2001 के आतंकी हमलों के बाद अमेरिका ने आतंक के खिलाफ जिस युद्ध की शुरुआत की, वो सिर्फ अफगानिस्तान की सीमा तक ही नहीं रुका. इस युद्ध में अमेरिका के साथी पाकिस्तान को तालिबान विद्रोह से निपटने के लिए छोड़ दिया गया था, जिसकी वजह से माना जाता है कि करीब तीस हजार लोग मारे गए.

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इस लड़ाई के चलते हजारों महिलाएं विधवा हो गईं. पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम ट्राइबल इलाके के कुछ गांवों में ऐसी महिलाओं की संख्या बहुतायत में है जो गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही हैं.

‘इस युद्ध ने मेरा सब कुछ छीन लिया'

जाहिदा बीबी दक्षिणी वजीरिस्तान के ट्राइबल क्षेत्र से आती हैं जो अफगानिस्तान की सीमा से लगा हुआ है और यह इलाका पाकिस्तानी तालिबान का जन्मस्थान माना जाता है. इस इलाके में अरब, चेचन और उजबेक देशों से आए तमाम विदेशी लड़ाके भी रहते थे जो अमेरिकी आक्रमण के दौरान भागकर अफगानिस्तान चले गए.

जाहिदा बीबी के पिता एक स्थानीय बुजुर्ग कबीलाई थे जो विदेशी आतंकवादियों के यहां होने का विरोध करते थे. वो इन आतंकवादियों को यहां से भगाने की मांग करते थे और उनकी इस मांग ने तालिबान को भड़का दिया. 23 अगस्त 2009 को उनकी हत्या कर दी गई. उनके साथ ही, जाहिदा बीबी के पति, चाचा और उनके बड़े भाई की भी हत्या कर दी गई.

डीडब्ल्यू से बातचीत में बीबी कहती हैं, "इस घटना ने हमारे परिवार की चार महिलाओं को विधवा बना दिया और हमारा जीवन तबाह हो गया.”

वह कहती हैं कि वे भयावह दृश्य उनके सामने अभी भी ताजा हैं.

हाल के दिनों में पाकिस्तानी तालिबान उनके इलाके में फिर सक्रिय हो गया है. बीबी को अब अपने बेटे की चिंता सताती है जो एक पुलिस अधिकारी है.

वह कहती हैं, "इस युद्ध ने मुझसे सब कुछ छीन लिया. कुछ महीने पहले मेरे एक चचेरे भाई की एक पुलिस स्टेशन पर हुए आतंकी हमले में मौत हो गई. वो भाई भी पुलिस में काम करता था. मेरे दो बेटे भी पुलिस अधिकारी हैं और मैं उनकी सुरक्षा को लेकर हर समय चिंतित रहती हूं.”

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बीबी और परिवार की अन्य विधवा महिलाओं को अपने अलावा अपने और परिवार के उन बच्चों की भी देखभाल करनी पड़ती है जो अनाथ हो गए हैं और जिनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है.

दक्षिणी वजीरिस्तान में स्थानीय काउंसिलर और सामाजिक कार्यकर्ता आसिया बीबी कहती हैं कि तालिबान विद्रोह और आतंक के खिलाफ युद्ध इस इलाके के लोगों के लिए विनाशकारी साबित हुआ. पर इस तबाही का सबसे खराब अनुभव महिलाओं को हो रहा है. वह कहती हैं कि उनके अपने गांव कुरी कोट में 200 से ज्यादा महिलाएं विधवा हो गई थीं.

आसिया बीबी कहती हैं, "हमारे गांव को तो विधवाओं का गांव कहा जाता है. ये महिलाएं केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं मुस्लिम धार्मिक त्योहारों पर मिलने वाली सहायता पर ही निर्भर हैं.”

‘सरकार जिम्मेदार है'

आतंक के खिलाफ युद्ध, तालिबान विद्रोह और ड्रोन हमलों से प्रभावित ज्यादातर महिलाएं गरीब परिवारों से आती हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि समाज के ऊंचे तबके से आने वाली महिलाओं पर इसका असर नहीं है. 2012 में एक आत्मघाती हमले में उत्तरपश्चिमी प्रांत खैबर पख्तूनख्वाह के वरिष्ठ मंत्री बशीर बिलूर की मौत हो गई थी. 2018 में एक आत्मघाती हमले में ही उनके बेटे की मौत हो गई. ये दोनों ही तालिबान के घोर विरोधी थे.

मुसर्रत अहमद जेब स्वात की पूर्व सांसद हैं. नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई यहीं की रहने वाली हैं. एक समय यहां का शासन तालिबान के ही हाथ में था. जेब का परिवार काफी प्रभावशाली था और उन लोगों ने आतंकवाद का सख्त विरोध किया था. तालिबान विद्रोह के दौरान मारे गए हजारों लोगों की विधवाओं की सहायता में कमी के बारे में वो डीडब्ल्यू को बताती हैं. उन्होंने सरकार से बच्चों की मदद करने की भी अपील की है कि और सरकार को चेताया है कि उनके इलाके में केवल कुछ ही अनाथालय हैं.

वह कहती हैं, "विधवाओं को अपने बच्चों की देखभाल करनी है. यदि यहां अनाथालयों की संख्या ज्यादा रहती तो बच्चों को वहां भेजा जा सकता था और ये महिलाएं अपने जीवन-यापन के लिए कुछ कमाई कर सकती थीं.”

पेशावर के रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर सईद आलम महसूद कहते हैं कि विद्रोह ने पुरुषों को खत्म कर दिया. कई उदाहरण तो ऐसे हैं जहां एक ही परिवार में पांच से ज्यादा या नौ पुरुषों की मौत हो गई और ज्यादातर पुरुष अपने पीछे विधवा पत्नियों को छोड़ गए हैं. इन महिलाओं की दुर्दशा के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

वह कहते हैं, "यह सरकार की नीति थी कि इन कट्टरपंथियों का समर्थन किया जाए जिन्होंने मेरे प्रांत और देश के एक हिस्से को बर्बरता की खाई में धकेल दिया. महिलाएं इस सरकारी नीति का खामियाजा भुगत रही हैं.”

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