यह आतंकवाद का सबसे डरावना चेहरा है
१९ जुलाई २०१६17 साल का एक लड़का जो अफगानिस्तान से अकेला जाने कैसे जर्मनी पहुंच गया, एक शाम घर से निकलता है. घर, जो उसे जर्मनी ने दिया. घर, जिसमें एक परिवार रहता है जो उसे अपने बच्चे की तरह अपने साथ रखे हुए है. घर, जिसकी तलाश में वह हजारों मील दूर आया था. इस घर के मिल जाने के बाद लड़के के दिल में जर्मनी, जर्मनों और दुनिया के लिए मोहब्बत की उम्मीद होनी चाहिए थी ना! लेकिन उसके दिल में मोहब्बत नहीं नफरत थी. उसके हाथ में चाकू था. लड़का ट्रेन में चढ़ा और अपने अगल-बगल बैठे लोगों पर टूट पड़ा. उसे अपने घर, अपनी जान की परवाह नहीं थी. वह बस मार देना चाहता था. अपने ईश्वर के नाम पर. अपने मजहब के नाम पर. और जैसा कि ऐसे मामलों में अक्सर होता है, वह खुद मारा गया.
यह आतंकवाद का मौजूदा रूप है. एक इन्सान जिसका कोई संगठन नहीं है, जिसे कोई ट्रेनिंग नहीं मिली है, जिसके दिमाग में किसी ने जहर नहीं भरा है, जिसे किसी ने कुर्बान हो जाने को तैयार नहीं किया है, जिसे किसी ने जन्नत में 70 हूरों का वादा नहीं किया है, वह भीड़ में चलता चलता अचानक आतंकवादी हो जाता है. कत्ल ए आम मचा देता है. ऐसा ही फ्रांस के नीस में हुआ जब एक आदमी ट्रक पर चढ़ा और उस ट्रक से सैकड़ों लोगों को कुचलता हुआ तब तक चलता रहा जब तक कि उसे मार नहीं दिया गया. ऐसा ही पिछले साल अमेरिका के सैन बर्नाडीनो में हुआ था जब एक पाकिस्तानी पति-पत्नी लोगों पर गोलियां बरसाते हुए मारे गए थे. ऐसा ही इस साल जून में ऑरलैंडो में हुआ था जब एक व्यक्ति ऑटोमेटिक राइफल लेकर एक क्लब में घुस गया और अंधाधुंध गोलियां चलाकर 49 लोगों को मार कर मर गया. ऐसे लोग आतंकवादियों के सबसे खतरनाक और सबसे कारगर हथियार हैं. वे ना सिर्फ आतंक फैलाते हैं बल्कि और लोगों को तैयार भी करते हैं.
देखें, जब गाड़ियों पर चढ़कर आती है मौत
नीस के हमलावर मोहम्मद लाहोएज बोहलेल के भीतर एक आतंकवादी छिपा होगा, ऐसा उसके घर-परिवार और शहर वालों ने ख्वाब में भी नहीं सोचा था. वह तो एक सामान्य सा ड्राइवर था. अधिकारी उसे जानते थे. जांच में पता चला कि वह उसकी जिंदगी में धर्म की कोई खास जगह नहीं थी. हां, वह घरेलू हिंसा में लिप्त था. वह परेशान रहता था. और इस वजह से वह परेशान हो चला था. वह इतना नाजुक हो गया था कि उसके भीतर का गुस्सा बारूद बन चुका था जिसे बस एक चिंगारी की जरूरत थी. इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों के बयान और आह्वान इसी चिंगारी का काम करते हैं. ऐसे कितने ही बारूद हमारे आसपास घूम रहे होंगे जो किसी दिन किसी एक खबर, किसी एक फेसबुक पोस्ट, किसी एक बयान, किसी एक चुटकुले तक से भड़क कर आत्मघाती विस्फोट बन जाएंगे.
अंग्रेजी में ऐसे लोगों को लोन वुल्फ कहते हैं. और अक्सर भ्रम है कि यह इस्लामिक आतंकवाद का ही एक रूप है. लेकिन यह गलत है क्योंकि लोन वुल्फ बनाने के पीछे दिमाग आलेक्स कर्टिस और टॉम मेत्सगेर का माना जाता है. 1990 के दशक में इन दोनों ने लोन वुल्फ की फिलॉसफी का प्रचार प्रसार किया था. कर्टिस और मेत्सेगर वाइट सुपरिमेसिस्ट हैं, यानी वे लोग जो मानते हैं श्वेत नस्ल ही सर्वोत्तम और सर्वोत्कृष्ट है और बाकी लोग उनसे निचले दर्जे के हैं. उन्होंने लोगों को लोन वुल्फ बनने का आह्वान किया था. उन्होंने कहा कि संगठन बनाकर हमले करने की जरूरत नहीं है. एक या दो व्यक्ति ही सरकारी ठिकानों या लोगों पर हमले करें और रोज करें. आतंकवाद विशेषज्ञ ब्रायन माइकल जेन्किन्स कहते हैं कि ऐसे लोगों लोन वुल्फ यानी अकेले भेड़िये कहने के बजाय आवारा कुत्ते कहा जाना चाहिए. आवारा कुत्तों से उनकी तुलना करते हुए वह लिखते हैं, "ऐसे हमले करने वाले अपने आप में ही परेशान रहते हैं. वे हिंसा को सूंघते घूमते हैं. ये लोग बहुत डरपोक होते हैं लेकिन इन्हें गुस्सा बहुत जल्दी आ जाता है."
तस्वीरों में, मुंबई हमले की यादें
ऑरलैंडो के हमलावर में भी इसी तरह के गुण देखने को मिले थे. वह बहुत गुस्सैल था. अपनी पत्नी से मार-पीट करता था. उसे मायामी पर एक बीच पर घूमते एक समलैंगिक जोड़े को देखकर बहुत गुस्सा आ गया था. ऐसे लोग बहुत आसानी से इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी संगठनों का शिकार बनते हैं और यह बात आतंकी संगठनों के सरगना बहुत अच्छे से समझते हैं. जैसी अपील कर्टिस और मेत्सगेर ने 1990 के दशक में की थी, कुछ वैसी ही अपील पिछले साल मई में इस्लामिक स्टेट के प्रवक्ता ने फेसबुक पर की थी. अबु मोहम्मद अल अदनानी ने अपने बयान में लोगों से कहा था कि वह ऐसे ही हमले करें. और यह भी बताया था कि हमले कैसे करें. उसने लिखा, "हमें पता चला है कि तुम लोगों में से कुछ इसलिए हमले नहीं करते हो क्योंकि तुम लोग सैन्य ठिकानों तक पहुंच नहीं पाते. या सोचते हो कि आम नागरिकों पर हमला करना गलत है. लेकिन समझ लो कि युद्धरत हमलावरों की जमीन पर रक्त की कोई पवित्रता नहीं होती. उस जमीन पर बेगुनाह कोई नहीं होता. इसे साबित करने के लिए बहुत सबूत मौजूद हैं जिनके जिक्र के लिए यहां जगह तक नहीं है. जैसे उनके विमान बम गिराते वक्त यह नहीं देखते कि किसके हाथ में हथियार है और किसके नहीं, कौन आदमी और कौन औरत, वैसे ही तुम भी उनसे निपटो."
इस तरह के खतरनाक अल्फाज किसी भी तुनकमिजाज और मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को भड़काने और उसे जीता जागता बम बना देने के लिए काफी होते हैं. सिडनी में 2014 में हमला करने वाले हारून मोनिस का मामला बिल्कुल ऐसा ही था. वह एक तुनकमिजाज और मानसिक रूप से बीमार आदमी था जिसने आईएस का झंडा खुद ही थामा और एक खतरनाक आतंकी हमले को अंजाम दिया.
आतंकवाद से लड़ने वाले लोग ऐसे हमलावरों को लेकर परेशान हैं. सीआईए की पूर्व अधिकारी रोली फ्लिन ने वॉशिंगटन पोस्ट को बताया कि ऐसे अकेले हमलावरों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. उन्होंने कहा, "मुझे नहीं याद कि एक दशक पहले लोन वुल्फ जैसे शब्द इस्तेमाल भी होते थे या नहीं लेकिन पिछले पांच साल में यह बढ़ गया है."
ऐसे आतंकी हमलों को रोकना मुश्किल है क्योंकि ऐसे लोगों को पहचाना मुश्किल है. इसलिए आतंकवाद और ज्यादा भयानक और डरावना होता जा रहा है.