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आंख के बदले आंख का कानून अफगानिस्तान में फिर से

२९ दिसम्बर २०२२

पूर्वी अफगानिस्तान के गजनी कोर्ट ऑफ अपील में एक छोटे से कमरे में जज के सामने एक बुजुर्ग आदमी घुटनों पर झुक कर रहम की भीख मांग रहा है. उसे मौत की सजा मिली है. अफगानिस्तान में शरिया कानून के लागू होने का असर दिखने लगा है.

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Afghanistan | Berufungsgericht in Ghazni
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP

75 साल के इस बुजुर्ग ने अपने रिश्तेदार को गोली मारने का जुर्म कबूल किया है. उसका कहना है कि उसने उस रिश्तेदार के अपनी बहू के साथ अवैध रिश्तों के बारे में अफवाहें सुनी थीं, उसी का बदला लेने के लिए उसे गोली मार दी.

आंख के बदले आंख के कानून के तहत अब उसे सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दी जायेगी. इस सजा को पीड़ित के किसी रिश्तेदार के हाथों अंजाम दिया जायेगा. बूढ़े आदमी ने कहा, "हमारे परिवारों में सुलह हो गई है. मेरे पास इस बात के गवाह हैं जो इसका सबूत देंगे कि हमने मुआवजा तय कर लिया है."

तालिबान के प्रतिबंध से छात्राओं में हताशा

पिछले महीने ही तालिबान के सुप्रीम लीडर ने शरिया कानून को देश में लागू किया है. समाचार एजेंसी एएफपी के पत्रकार बड़ी मुश्किलों से गजनी की इस अदालत तक ये जानने के लिए पहुंचे कि यह प्रशासन कैसे काम करता है. पिछले साल अगस्त महीने में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया उसके बाद इन्हीं अदालतों से लोगों को न्याय मिल रहा है.

2001 में तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता से हटाने के बाद देश में न्याय प्रशासन का तंत्र खड़ा करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किये गये. इसके लिए इस्लामिक और धर्मनिरपेक्ष कानूनों के साथ ही योग्य अभियोजक, बचाव पक्ष के वकील और जज भी तैयार किये गये. न्याय तंत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं की भी नियुक्ति की गई जो तालिबान के लड़ाकों से जुड़ों मामलों से लेकर पारिवारिक अदालतों को लैंगिक रूप से ज्यादा संतुलित कर सकें.

सत्ता में तालिबान की वापसी के बाद सबकुछ तहस नहस हो गया.अब यह सारा काम मुकदमा चलाने से लेकर सजा सुनाने और उस पर अमल की जिम्मेदारी मौलवियों के हाथ में आ गई है.

अफगानिस्तान में कैसे काम करती हैं अदालतें
गजनी कोर्ट ऑफ अपीलतस्वीर: Wakil Kohsar/AFP

इस्लामी कानून या शरिया 

दुनिया भर के मुसलमानों के लिए शरिया ही उनके जीवन के तौर तरीके तय करता है. इममें पर्दा से लेकर संपत्ति और अपराध तक से जुड़े नियम हैं. हालांकि इन नियमों की व्याख्या स्थानीय रिवाजों, संस्कृति और अलग अलग धार्मिक विचारों के आधार पर होती है. 

अफगानिस्तान में तालिबान के विद्वानों ने शरिया की सबसे कठोर व्याख्या की है. ज्यादातर उदार मुस्लिम देशों में भी मौत और शारीरिक सजाओं से परहेज किया जाता है.

फिर बरसे स्टेडियम में कोड़े

गजनी कोर्ट के प्रमुख मोहिउद्दीन उमरी का कहना है कि पुरानी सरकार और आज के तंत्र के बीच फर्क, "जमीन और आसमान का है." गजनी के अधिकारियों ने पश्चिमी देशों जैसे कोर्टरूम का इस्तेमाल छोड़ दिया है. उसकी बजाय अब अदालती कार्यवाही छोटे कमरों में होती हैं जिसमें हिस्सा लेने वाले लोग फर्श पर बिछी दरियों पर बैठते हैं. लोगों से भरे इस कमरे को लकड़ी के चूल्हों से गर्म किया जाता है, एक तरफ तख्त पर धार्मिक किताबें और कलाश्निकोव राइफल रखी है.

अदालत की कार्यवाही

युवा जज मोहम्मद मोबिन शांति से सारी बात सुन कर फिर कुछ सवाल करते हैं. उसके बाद अगले कुछ दिनों में अगली सुनवाई की तारीख देते हैं. इस तरह बुजुर्ग शख्स को कुछ दिन का समय मिल जाता है कि वह गवाह जुटा सके जो परिवारों के बीच हुई सुलह का सबूत देंगे. मोबिन ने कहा, "अगर वह अपने दावे की पुष्टि कर देता है तो फैसला बदला जा सकता है. अगर ऐसा नहीं होता तो यह तय है कि शरिया के मुताबिक किसास (आंख के बदले आंख) लागू होगा."

हाथ से लिखे दस्तावेजों और धागे से बंध कर रखी गई फाइलों के बीच बैठे मोबिन 2021 में तालिबान की वापसे के बाद से ही अपील कोर्ट में हैं. उनका कहना है कि गजनी प्रांत में अब तक दर्जन भर मौत की सजाएं सुनाई गई हैं लेकिन अभी इनमें से किसी पर अमल नहीं हुआ है. इसका एक कारण यह भी है कि उनके खिलाफ अपील की प्रक्रिया अभी चल रही है. 34 साल के मोबिन ने कहा, "इस तरह के फैसले करना बहुत कठिन होता है और हम बहुत सावधान रहते हैं. हालांकि अगर पक्के सबूत हों तो खुदा हमें निर्देश देते हैं और हमसे कहते हैं कि ऐसे लोगों से सहानुभूति मत रखो."

कुर्सी टेबल नहीं दरियों पर बैठते हैं जज और दूसरे लोग
पश्चिमी देशों की तर्ज पर बने कोर्टरूम की जगह इन अदालतों ने ले ली हैतस्वीर: Wakil Kohsar/AFP

अगर बुजुर्ग आदमी की अपील नाकाम हो गई तो फिर काबुल के सुप्रीम कोर्ट में मामला जायेगा और उसके बाद सुप्रीम लीडर हैबतुल्लाह अखुंदजादा जो मौत की सजा की पुष्टि करते हैं. इसी महीने पश्चिमी अफगानिस्तान के फराह का एक मामला था जिसमें तालिबान ने दोबारा सत्ता में आने के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से मौत की सजा दी. इस सजा की विदेशी सरकारों और मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी निंदा की.

अदालतों में भ्रष्टाचार

गजनी कोर्ट के प्रमुख उमरी इस बात पर जोर देते हैं कि शरिया का तंत्र पहले के तंत्र से बहुत अच्छा है. हालांकि वह यह भी मानते हैं कि अधिकारियों को ज्यादा अनुभव की जरूरत है.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने दुनिया के 180 सबसे भ्रष्ट देशों की सूची में अफगानिस्तान को 177वें नंबर पर रखा है. यहां कि अदालतें घूसखोरी के लिए कुख्ता हैं जहां सालो तक मामले चलते रहते हैं.

बहुत से अफगान लोग कहते हैं कि वो शरिया कोर्ट की बजाय दूसरी अदालतों में मुकदमा लड़ना चाहते हैं जहां कम भ्रष्टाचार है. हालांकि जूरी के लोगों का कहना है कि आपराधिक मामलों पर काबू पाने में नया सिस्टम ज्यादा कारगर है. एक बेरोजगार हो चुके अभियोजक ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, "कुछ मामलों में अगर जल्दी फैसला हो तो अच्छा रहता है लेकिन ज्यादातर मामलों में तेजी का मतलब बिना सोचा समझा फैसला होता है."

उमरी का कहना है कि सारे मामलों की गहराई से पड़ताल होती है और "अगर किसी जज ने कोई गलती की हो तो हम उसकी छानबीन करते हैं." हालांकि जिस शख्स को मौत की सजा मिली है उसका कहना है कि उसके पास वकील नहीं था और उसकी अपील पर महज 15 मिनट सुनवाई हुई, "अदालत में मुझे मौत की सजा नहीं मिलनी चाहिए थी. मैं आठ महीने से ज्यादा से जेल में हूं. वो (परिवार) मुझे छोड़ने को तैयार है."

एनआर/आरपी (एएफपी)