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इतिहासब्रिटेन

ब्रिटेन में कुएं से निकले 17 कंकालों का यहूदी कनेक्शन

क्लेयर रोठ
९ सितम्बर २०२२

ब्रिटेन के एक निर्माणाधीन शॉपिंग मॉल के पास मध्यकालीन कुएं में 17 कंकाल मिले थे. इन शवों ने इतिहासकारों को कई वर्षों तक भ्रम में रखा. आनुवंशिकी जांच के बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि ये अश्केनाजी यहूदी थे.

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Großbritannien Aschkenasim Juden  Überreste in gefunden
वैज्ञानिकों ने कुएं से मिले कंकालों के चेहरे फिर डेवलप करने के प्रयासों के बाद ये नतीजे हासिल किए हैं.तस्वीर: John Moores University

साल 2004 में यूके के नॉर्विच शहर में कुछ मजदूर एक निर्माणाधीन मॉल में काम कर रहे थे. वहां उन्हें कुछ ऐसा मिला, जिसे देखकर वे मजदूर हैरान रह गए. उन लोगों ने एक मध्यकालीन कुएं में इंसानों के 17 कंकाल देखे. इन कंकालों ने न सिर्फ आम लोगों का, बल्कि इतिहासकारों का भी ध्यान आकर्षित किया.

इन नर कंकालों को देखकर पहला अनुमान यह लगाया गया कि शायद ये यहूदियों के थे. अब करीब 18 साल बाद शोधकर्ता इस मामले की तह तक पहुंच चुके हैं. डीएनए परीक्षण के जरिए शोधकर्ताओं ने खोज निकाला है कि ये शव निश्चित तौर पर अश्केनाजी यहूदियों के हैं.

यह शोध मध्यकालीन अश्केनाजी यहूदियों के डीएनए के बारे में पहली वैज्ञानिक जानकारी देता है. मध्यकाल में इस समुदाय के चिकित्सकीय इतिहास के बारे में भी कई जानकारी मिलती हैं.

कौन थे अश्केनाजी यहूदी

अश्केनाजी यहूदी, यहूदियों का ही एक समुदाय था, 12वीं सदी से पहले ही जर्मनी में राइन नदी के किनारे और इटली में बस गया था. आज दुनियाभर में यहूदियों की कुल आबादी का 80 फीसद हिस्सा अश्केनाजी यहूदियों का है.

आनुवंशिकी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को यह समुदाय खूब आकर्षित करता रहा है, क्योंकि इस समुदाय के लोगों में आनुवंशिक विविधता और इन्हें दूसरों से अलग बनाने वाले गुण बहुत कम होते हैं. उदाहरण के लिए इनमें सिकल सेल एनीमिया और सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी ऑटोसोमल रेसेसिव बीमारियों की प्रधानता होती है. साथ ही, पार्किंसन्स और ब्रेस्ट और ओवरी कैंसर का जोखिम भी इनमें काफी होता है.

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अश्केनाजी यहूदी समुदाय में कुछ असामान्य जीन्स की अधिकता और आनुवंशिक विविधता की कमी मिलकर एक विशेष आनुवंशिक समीकरण बनाते हैं. वैज्ञानिक इसे 'फाउंडर इफेक्ट' कहते हैं. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब कुछ लोगों का एक छोटा समूह एक बड़ी आबादी से अलग कर दिया जाता है.

अमेरिका स्थित नेशनल ह्यूमन जीनोम रिसर्च इंस्टीट्यूट का कहना है कि जिस समुदाय में फाउंडर इफेक्ट पाया जाता है, उनके जीनोटाइप और शारीरिक गुण उनके प्रारंभिक समूहों से मेल खाते हैं और ये बड़ी आबादी से काफी अलग हो सकते हैं.

Bosnien und Herzegowina | Aschkenasim Synagoge in Sarajevo
तस्वीर: Selma Boracic-Mrso/DW

जनसंख्या की समस्या

आनुवंशिकी वैज्ञानिक कहते हैं कि फाउंडर इफेक्ट की कई वजहें हो सकती हैं. लेकिन अमूमन ये जिस वजह से होता है, उसे जनसंख्या की समस्या या 'पॉपुलेशन बॉटलनेक' कहते हैं. 'पॉपुलेशन बॉटलनेक' की स्थिति तब आती है, जब किसी समुदाय की जनसंख्या किन्हीं परिस्थितियों की वजह से अचानक काफी कम हो जाती है. जनसंख्या में इस गिरावट की वजह भूकंप, सुनामी या फिर सामूहिक नरसंहार भी हो सकता है.

शोधकर्ताओं ने अश्केनाजी यहूदियों में इस बॉटलनेक का प्रमाण 2014 में प्रकाशित एक लेख के जरिए सामने रखा था. वैज्ञानिकों ने बताया कि आज इस समुदाय के लोगों की पहचान 600-800 साल पहले रहने वाले इसी समुदाय के 350 लोगों से की जा सकती है.

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अश्केनाजी यहूदियों को बीती सदियों में यहूदी-विरोधी हिंसा की वजह से कई 'बॉटलनेक्स' यानी बाधाओं का सामना करना पड़ा. वैसे वैज्ञानिकों की दिलचस्पी खासकर उस बाधा में है, जो आनुवंशिक विविधताओं का कारण बनी हैं.

यह नया शोध 30 अगस्त को विज्ञान पत्रिका 'करेंट बायोलॉजी' में प्रकाशित हुआ है और बताता है कि ऐसी घटनाएं इतिहास में कभी हुई होंगी. इस रिसर्च पेपर के लेखक और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन में इवॉल्यूशनरी जेनेटिक्स के प्रोफेसर मार्क थॉमस कहते हैं कि हो सकता है कि ऐसा पूर्व मध्यकाल में किसी समय हुआ हो.

Bosnien und Herzegowina | Aschkenasim Synagoge in Sarajevo
1902 में बनाया गया सिनेगॉग (पूजास्थल), जहां अश्केनाजी यहूदी आराधना करते थे.तस्वीर: Selma Boracic-Mrso/DW

कंकाल अवशेषों पर आनुवंशिक परीक्षण

वैज्ञानिकों ने कुएं में मिले मध्ययुग के कंकालों में से छह पर परीक्षण किया. उन्हें अश्केनाजी और गैर-अश्केनाजी यहूदियों में तुलनात्मक रूप से कुछ अंतर मिले.

इन अंतरों का महत्व समझने के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन किया और सवाल पूछा कि अगर अश्केनाजी की इस आबादी में रोग वैरिएंट्स की तीव्रता आज के अश्केनाजी समुदाय की तरह है, तो हमें दोनों में कितनी विभिन्नताएं होने की उम्मीद करनी चाहिए? साथ ही, अगर उनकी तीव्रता आज के गैर-यहूदी यूरोपीय लोगों से मेल खाती है, तो उनमें कितनी विभिन्नताओं की उम्मीद करनी चाहिए.

थॉमस कहते हैं, "हमने देखा कि इन नमूनों में आनुवंशिक रोगों के होने की संभावना उतनी ही है, जितनी आज के अश्केनाजी यहूदियों में है. यदि ऐसा है, तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि उनके साथ पॉपुलेशन बॉटलनेक जैसी कोई दुर्घटना हुई होगी."

शोध और नैतिकता का सवाल

यह पहली बार है, जब वैज्ञानिकों ने प्राचीन अश्केनाजी यहूदियों के डीएनए का मिलान मौजूदा लोगों से किया है, क्योंकि यहूदियों की कब्रें खोदना नैतिक रूप से प्रतिबंधित था.

अश्केनाजी यहूदियों के आनुवंशिक इतिहास के बारे में अब तक सारे अनुमान इस समुदाय के जीवित लोगों की गतिविधियों और आदतों के हिसाब से किए गए हैं. बॉटलनेक जैसे अनुमान भी ऐसे ही शोध के आधार पर लगाए गए हैं.

थॉमस कहते हैं, "डीएनए को देखकर आज हमें अतीत के बारे में जानकारी मिल रही है, लेकिन यह अतीत के डीएनए को देखने जितना अच्छा नहीं है. सीधे उस समय के डीएनए को देखना कहीं ज्यादा अच्छा होता है. यही बात जनसंख्या के इतिहास के अध्ययन पर भी लागू होती है. उदाहरण के लिए अगर प्राकृतिक चयन के संबंध में कोई शोध कर रहे हों और निष्कर्ष देखना चाहते हों. हम इन्हें आधुनिक आंकड़ों से पहचान सकते हैं, लेकिन यदि हम इन्हें प्राचीन डीएनए के आंकड़ों के आधार पर पहचान सकें, तो इससे अच्छा कुछ नहीं है."

इसकी वजह यह है कि शोधकर्ताओं ने जब शोध शुरू किया, तो उन्हें इन शवों के बारे में कुछ भी पता नहीं था. थॉमस कहते हैं, "हमारे केस में हमने किसी भी यहूदी कब्र से छेड़छाड़ नहीं की है. जो कंकाल हमें मिले हैं, ये शॉपिंग सेंटर के निर्माण के दौरान हुई खुदाई में मिले हैं और हमें नहीं पता था कि ये यहूदी ही हैं."

एरफर्ट के वैज्ञानिकों ने 14वीं सदी के 33 अश्केनाजी यहूदियों के अध्ययन के आधार पर एक शोध प्रकाशित किया है. हालांकि, रिसर्च पेपर की तुलनात्मक समीक्षा नहीं की गई है, लेकिन उनका कहना है कि उन्होंने इनमें अश्केनाजी समुदाय में पाए जाने वाले रोगों को भी देखा है.

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इतिहास पर एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

हालांकि, इस शोध के आधार पर यह पता नहीं लगता कि इन 17 लोगों की मौत कैसे हुई और न ही इसका पता चलता है कि बॉटलनेक जैसी घटना कब और कैसे हुई. फिर भी यह अश्केनाजी यहूदियों की उत्पत्ति के एक सिद्धांत को तो खारिज करती ही है. यह सिद्धांत कहता है कि अश्केनाजी यहूदियों की उत्पत्ति खजर समुदाय से हुई, जो तुर्की के रहने वाले थे और 12वीं-13वीं शताब्दी में साम्राज्य के पतन के बाद यूरोप चले गए. इस सिद्धांत का अनुमोदन आर्थर कोएस्लर ने 1976 में अपनी पुस्तक 'द थर्टींथ ट्राइब' में किया है.

थॉमस कहते हैं, "यह सच नहीं होगा. अश्केनाजी यहूदियों पर हमारे आंकड़ों के आधार पर ऐसा कतई साबित नहीं होता. ऐसा इसलिए है, क्योंकि यूके का यह आंकड़ा बहुत पहले का है."

इन शवों के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि जब स्थानीय यहूदियों को पता चला कि ये कंकाल यहूदी मूल के लोगों के हैं, तो उन्होंने इन्हें परंपरागत तरीके से दफन करने का इंतजाम किया. यूके के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में मॉलीक्यूलर वैज्ञानिक इयान बर्न्स कहते हैं कि शोधकर्ताओं ने स्थानीय प्रमुख रब्बी के कार्यालय के साथ मिलकर काम किया है. वे इस काम में कई साल से लगे हैं.

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