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वायु प्रदूषण से सालाना 60 लाख मौतें

९ मार्च २०१६

अगर हवा को साफ करने के लिए कुछ किया नहीं गया तो 2050 तक सालाना 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो सकती है. जर्मनी में रिसर्च.

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China Peking Journalisten tragen Masken
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Wei Yao

महानगरों के आसमान में धुएं का गुबार. घनी आबादी वाले इलाकों में सूक्ष्म कणों से भरी धूल की चेतावनी. जहरीली हवा लोगों को बीमार कर रही है. दुनिया भर में हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की वायु प्रदूषण से मौत होती है. सबसे ज्यादा मौतें एशिया में होती है.

जर्मनी के माइंस शहर में माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर योहानेस लेलीफेल्ड के मुताबिक, "लोगों को फेफड़े और दिल की बीमारियां हैं. दिल का दौरा पड़ने से या स्ट्रोक से लोगों की मौत हो जाती है. इसके अलावा धूल के बेहद छोटे कण हैं जो खून में भी जा सकते हैं. वे कुछ हद तक टॉक्सिक भी होते हैं, इस तरह से जहरीले तत्व फेफड़े में चले जाते हैं और फिर वहां उनका असर होता है."

एशिया में सबसे ज्यादा मौतें

योहानेस लेलीफेल्ड की टीम ने पहली बार इस बात की खोज की है कि कितने लोग हवा में धूल के सूक्षम कण, ओजोन और सल्फर डाय ऑक्साइड की वजह से बीमार होते हैं और अपनी जान गंवाते हैं. और किन जगहों पर इस बीमारी से कितनी मौतें हुई हैं. लेलीफेल्ड ने बताया, "वायु प्रदूषण से एशिया में होने वाली सबसे ज्यादा मौतों की वजह यह है कि हवा तो खराब है ही, आबादी का घनत्व भी ज्यादा है. बड़े शहरों में बहुत से लोगों को सूक्ष्म धूलकणों का सामना करना पड़ता है और इसका नतीजा बीमारी और वक्त से पहले मौत के रूप में सामने आता है. चीन में हर साल 14 लाख लोग समय से पहले मर रहे हैं और भारत में उनकी तादाद सात लाख है. यह बहुत ही ज्यादा है."

माक्स प्लांक के वैज्ञानिकों ने इस स्टडी के लिए खुद अपनी रीडिंग और धरती का चक्कर लगाते उपग्रहों से मिलने वाले डाटा का सहारा लिया है. इन सूचनाओं के आधार पर उन्होंने एक कंप्यूटर सिमुलेशन सिस्टम डेवलप किया है जिससे पता चलता है कि जहरीले तत्वों का फैलाव कैसे होता है. इसे मौत के आंकड़ों के साथ जोड़कर देखा जाता है कि जहरीले तत्व के किस घनत्व पर लोग सचमुच मरते हैं. रिसर्चरों को सबसे ज्यादा इस बात ने हैरान किया कि शहरों में हवा को प्रदूषित करने के लिए यातायात और औदि्योगिक कारखानों की चिमनियां मुख्य रूप से जिम्मेदार नहीं हैं.

मुख्य कारण

लेलीफेल्ड ने बताया, "एशिया में वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है जगह जगह लगाई जाने वाली छोटी आग, खाना पकाने के लिए, सर्दी से बचने के लिए या फिर कूड़ा जलाने के लिए लगाई गई आग, इनसे काफी धुआं पैदा होता है. भारत, बांग्लादेश और दक्षिण एशिया में यह मुख्य वजह है."

धुंआ एशिया में बहुत सारा सूक्ष्म धूलकण पैदा करता है. अत्यंत छोटे कण डीजल जेनरेटरों, कोयले के चूल्हों और जलती लकड़ी से पैदा होते हैं. चीन में यह कुल सूक्ष्म कणों का एक तिहाई पैदा करता है. इंडोनेशिया और भारत में तो इसका अनुपात 50 से 60 प्रतिशत है.

जरूरी कदम

हैरानी की बात यह है कि दुनिया भर में जहरीले सूक्ष्म कणों का स्रोत कारखाने नहीं बल्कि कृषि उद्योग है. यूरोप, जापान और अमेरिका के पूर्वोत्तर में खाद के बड़े पैमाने पर इस्तेामल और पशुपालन से बड़ी मात्रा में अमोनिया गैस पैदा होती है. और इसकी वजह से सूक्ष्मकण बनते हैं. ऐसे में सूक्ष्म धूल कणों की समस्या से निबटने के लिए नई रणनीति की जरूरत है.

लेलीफेल्ड के मुताबिक, "यूरोप में कोशिश करनी होगी कि कृषि क्षेत्र में उत्सर्जन को कम किया जाए. इसके लिए पशुपालन उद्योग पर ध्यान देना होगा. एशिया में लोगों को बिना धुआं पैदा किए खाना पकाने और घर गर्म करने के लिए नई तकनीक दिए जाने की जरूरत है. यह तकनीक उपलब्ध है और यह महंगी भी नहीं है." लेकिन अगर इसमें कामयाबी नहीं मिलती है, तो 2050 तक 60 लाख से ज्यादा लोग असामयिक मौत के शिकार होंगे और इनमें से 40 लाख एशिया में ही होंगे.

मार्टिन रीबे/एसएफ